12.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

दोनों हाथ से दिव्यांग होने के बावजूद शीतल देवी ने एशियाई पैरा गेम्स में जीते मेडल, जानें कैसे बदली उनकी जिंदगी

जम्मू-कश्मीर की रहनेवाली 16 वर्षीया शीतल देवी ने एशियाई पैरा गेम्स 2023 में एक बार फिर बड़ी कामयाबी हासिल कर नजीर पेश की है. चीन के हांगझाऊ में महिलाओं की व्यक्तिगत कंपाउंड तीरंदाजी स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने देश का नाम रोशन किया है

रांची : जिंदगी में कुछ कर गुजरने का जुनून हो, तो इंसान हर चुनौती को मात दे सकता है. चुनौती चाहे जैसी भी हो, इंसान के बुलंद हौसले के सामने उसे झुकना ही पड़ता है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है भारतीय महिला तीरंदाज शीतल देवी ने. उन्होंने बीते दिनों एशियाई पैरा गेम्स 2023 में दो स्वर्ण समेत तीन मेडल जीतकर इतिहास रच डाला है.

दुनिया की एकमात्र बिना हाथ वाली महिला तीरंदाज

जम्मू-कश्मीर की रहनेवाली 16 वर्षीया शीतल देवी ने एशियाई पैरा गेम्स 2023 में एक बार फिर बड़ी कामयाबी हासिल कर नजीर पेश की है. चीन के हांगझाऊ में महिलाओं की व्यक्तिगत कंपाउंड तीरंदाजी स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने देश का नाम रोशन किया है. इस जीत के साथ उनकी यह कामयाबी उन लोगों के लिए मिसाल बन गयी है, जो परिस्थितियों का रोना रोते रहते हैं. दोनों हाथ से दिव्यांग होने के बाद भी छाती के सहारे दांतों व पैर से निशाना साधने वाली तीरंदाज शीतल ने इससे पहले भी कई उपलब्धियां अपने नाम कर चुकी हैं.

निर्धन परिवार में हुआ जन्म

शीतल देवी का जन्म 10 जनवरी, 2007 को जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के सुदूर गांव लोई धार में एक गरीब परिवार में हुआ था. उनके पिता खेतीबाड़ी करते हैं और मां घर में बकरियां पालती हैं. निर्धन परिवार में जन्मी इस बेटी की कहानी हिम्मत और संघर्ष की साक्षात मिसाल है. बमुश्किल किसी तरह से उनके घर का खर्च चल पाता था. जन्म से ही उनके दोनों हाथ नहीं थे. दरअसल, वह जन्म से ही फोकोमेलिया नामक बीमारी से पीड़ित हैं. लिहाजा, सेना ने उन्हें बचपन में ही गोद ले लिया.

14 साल की उम्र तक शीतल को तीरंदाजी के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी, पर साल 2021 उनकी जिंदगी में बड़ा बदलाव आया. उस साल शीतल ने सेना के एक कार्यक्रम में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया. यहां एक एनजीओ की नजर उन पर पड़ी. उस एनजीओ ने शीतल की जिंदगी संवारने का बीड़ा उठाया. शुरुआत में कृत्रिम हाथ लगवाने की योजना थी, पर कुछ कारणवश ऐसा नहीं हो सका. इसके बाद कुछ और जांच हुए और इनमें पाया गया कि शीतल के पैर काफी मजबूत हैं. इस पर एनजीओ ने उनको पैरों से तीरंदाजी करने की सलाह दी. बस यहीं से शीतल की जिंदगी बदल गयी.

तीरंदाजी कोच ने किया प्रोत्साहित

इसके बाद वह कटरा स्थित माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड तीरंदाजी अकादमी के कोच कुलदीप वेदवान के संपर्क में आयीं.उनकी प्रतिभा देख कुलदीप ने काफी रिसर्च कर उनके लिए विशेष धनुष तैयार करवाया, जिसे हाथ से नहीं, बल्कि पैर से चलाया जाता है. 27.50 किलो का धनुष पैरों से पकड़ना और उसे स्थिर रखते हुए मुंह से तीर चलाना आसान नहीं था. इसका तोड़ भी कुलदीप ने निकाल लिया. उन्होंने शीतल को दुनिया के पहले बिना हाथों वाले तीरंदाज अमेरिका के मैट स्टुट्जमैन के विडियो दिखाये. इससे काफी प्रेरणा मिली.

पिछले साल नवंबर में जूनियर नेशनल गेम्स में किया डेब्यू

शीतल सुबह ही प्रैक्टिस के लिए अकादमी पहुंच जातीं. फिर यहीं से स्कूल जातीं और छुट्टी होते ही फिर अकादमी में शाम तक अभ्यास करतीं. छुट्टी के दिन तो वह पूरा समय अकादमी में ही बितातीं. इस तरह छह महीने में ही शीतल ने अपनी मेहनत और लगन के बूते इसमें महारत हासिल कर ली. उन्होंने नवंबर, 2022 में पहली बार जूनियर नेशनल गेम्स में हिस्सा लिया और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. वह इसी साल जुलाई में चेक गणराज्य में खेली गयी विश्व पैरा तीरंदाजी के फाइनल में पहुंचने वाली दुनिया की पहली बिना हाथों की महिला तीरंदाज थीं. शीतल की नजर अब पैरा ओलिंपिक खेलों पर है. पेरिस में 2024 होने वाले इन खेलों के लिए वह पहले ही क्वालिफाई कर चुकी हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें