Sheetala Ashtami 2023: शीतला अष्टमी के दिन लगाया जाता है बासी खाने का भोग, ये है वजह
Sheetala Ashtami 2023: उदयातिथि के अनुरूप ही शीतला सप्तमी आज 14 मार्च की है. इस दिन शीतला माता को सुबह 06.31 बजे से शाम 06.29 बजे पूजा जा सकेगा. वहीं शीतला अष्टमी 15 मार्च यानी कल है. देश के कुछ स्थानों पर इस त्योहार को बासौड़ा कहते हैं.जो कि बासी भोजन का भोग लगाने के कारण कहा जाता है.
Sheetala Ashtami 2023: मां दुर्गा के अनेक रूप है, और उन्हीं में से एक रूप है देवी शीतला माता का. माता शीतला आरोग्य और शीतलता प्रदान करने वाली देवी है. शीतलाष्टमी के दिन मां शीतला की पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में सुख की प्राप्ति होती है, और वह सदैव निरोग रहता है. जिस तरह मां काली ने राक्षसों का नाश किया था, ठीक उसी तरह से मां शीतला देवी व्यक्ति के अंदर छिपे रोग रूपी असुर का नाश करती हैं.
शीतला अष्टमी तिथि और शुभ मुहूर्त
इस बार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर यानि की शीतला सप्तमी तिथि 13 मार्च 2023 की रात 9:27 मिनट से शुरू हो चुकी है और इसका समापन आज 14 मार्च 2023 की रात 8: 22 मिनट पर माना जाएगा. उदयातिथि के अनुरूप ही शीतला सप्तमी आज 14 मार्च की है. वहीं शीतला अष्टमी 15 मार्च यानी कल है. इस दिन शीतला माता को सुबह 06.31 बजे से शाम 06.29 बजे पूजा जा सकेगा.
उत्तर भारत में कहा जाता है बासौड़ा
पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान व मध्य प्रदेश के कुछ स्थानों पर इस त्योहार को बासौड़ा कहते हैं.जो कि बासी भोजन का भोग लगाने के कारण कहा जाता है.इस त्योहार को मनाने के लिए लोग सप्तमी की रात को बासी भोजन तैयार कर लेते हैं और अगले दिन देवी को भोग लगाने के बाद ही ग्रहण करते हैं.कहीं पर हलवा पूरी का भोग तैयार किया जाता है तो कुछ स्थानों पर गुलगुले बनाए जाते हैं.गन्ने के रस की बनी खीर का भोग भी लगाया जाता है.ये सभी व्यंजन सप्तमी की रात को तैयार कर लिए जाते हैं और इनका अष्टमी का भोग लगाया जाता है.
ऐसे करें शीतला माता की पूजा
इस दिन से सूर्य के एक दम ऊपर आ जाने से गर्मी बढ़ जाती है इसलिए सुबह जल्दी उठकर ठंडे पानी से स्नान करें.पानी में गंगाजल अवश्य डालें.
नारंगी रंग के वस्त्र पहनें
पूजा की थाली तैयार करें – थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, सप्तमी को बने मीठे चावल, नमक पारे और मठरी रखें.वहीं दूसरी थाली में आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, मोली, होली वाली बड़कुले की माला, सिक्के और मेहंदी रखें और साथ में ठंडे पानी का लोटा रखें.
नीम के पेड़ में जल चढ़ाएं और घर के मंदिर में शीतला माता की पूजा करें और दीपक को बिना जलाए ही घर के मंदिर में रखें.सभी चीजों का भोग लगाएं.
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घर में पूजा के बाद दोपहर करीब 12 बजे शीतला माता के मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करें.पहले माता को जल चढ़ाएं, रोली और हल्दी का टीका करें, मेहंदी, रोली और वस्त्र अर्पित करें. बासी खाने का भोग लगाएं और कपूर जलाकर आरती करें और ऊं शीतला मात्रै नम: मंत्र का जाप करें.
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इसके बाद जहां होलिक दहन हुआ था वहां पूजा करें.
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अगर पूजन सामग्री बच जाए तो उसे किसी गाय या ब्राह्मण को दे दें.