श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी केस: वकील हरिशंकर जैन का दावा- सर्वे में मिले मंद‍िर के सबूत हटाए जा रहे

ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर अलग-अलग तर्क सामने आ रहे हैं. इस बीच ज्ञानवापी-बाबा विश्वनाथ मंदिर विवाद के मुख्य पक्षकार और वरिष्ठ वकील हरिशंकर जैन ने बताया कि मस्जिद के अंदर पिछले सर्वे में जितने सबूत मंदिर से जुड़े मिले थे, उन प्रतीकों को धीरे-धीरे हटाया जा रहा है.

By Prabhat Khabar News Desk | May 10, 2022 6:10 PM

Varanasi News: आखिर सर्वे को रोकने के लिए किस बात का डर सामने आ रहा है? ऐसा क्या है ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर जिसको लेकर प्रतिवादी पक्ष कोर्ट के आदेश को मानने से इनकार कर रहा है? इन सारे मामलों पर बीते कई दिनों से श्रृंगार गौरी और ज्ञानवापी प्रकरण में क़ई मोड़ सामने आए हैं. ऐसे में इस पूरे मसले को बारीकी से समझने की आवश्‍यकता है.

‘मंदिर के म‍िटाये जा रहे सबूत’

इतने सारे विवादों के बीच यह प्रकरण उलझता जा रहा है. ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर अलग-अलग तर्क सामने आ रहे हैं. इस बीच ज्ञानवापी-बाबा विश्वनाथ मंदिर विवाद के मुख्य पक्षकार और वरिष्ठ वकील हरिशंकर जैन ने भी बातचीत में बताया कि मस्जिद के अंदर पिछले सर्वे में जितने सबूत मंदिर से जुड़े मिले थे, उन प्रतीकों को धीरे-धीरे हटाया जा रहा है. हरिशंकर जैन के मुताबिक, ‘बाहर से किए गए इस सर्वे में भी हमें मंदिर के तमाम प्रतीक चिन्ह मिले हैं. दो बड़े-बड़े स्वास्तिक के चिन्ह ज्ञानवापी की दीवारों पर मिले. खंडित मूर्तियों के अवशेष मिले हैं. कई पत्थरों पर भगवान की उकेरी हुई प्रतिमा मिली है. साथ-साथ मंदिर का पूरा स्वरूप इसकी दीवार पर हमें मिला है.’ इस केस से जुड़े वकील विष्णु जैन ने भी कहा कि मंदिर या मस्जिद सबूतों से तय होगा. मंदिर के पूरे सबूत मौजूद हैं. हिंदू पक्ष के वकीलों ने जो तस्वीरें अदालत को सौंपी हैं. उससे यह साफ होगा कि ज्ञानवापी मस्जिद को आदि विशेश्वर मंदिर को तोड़कर बनाया गया है.

बाबरी कांड के बाद बढ़े नमाजी

दरअसल, न्यायालय ने 6 मई को सर्वे करने का आदेश दिया था. मगर प्रतिवादी पक्ष ने वीडियोग्राफी करने आये अधिवक्ता कमिश्नर पर ही सवालिया निशान लगाते हुए उन्हें बदलने के लिए कोर्ट में याचिका दायर कर दी. इस बीच काशी विश्वनाथ मंदिर के व्यास पीठ का दावा है कि जहां ज्ञानवापी है, उसकी जमीन का मालिकाना हक उनके पास है. दावे के मुताबिक, करीब 150 सालों से वह इस जमीन पर पूरा हक पाने के लिए केस लड़ रहे हैं. इसके दस्तावेज भी उनके पास हैं. साल 1937 से 1991 तक इस मामले में कोई विवाद नहीं हुआ लेकिन बाबरी केस के बाद ज्ञानवापी में नमाजियों की संख्या बढ़ने लगी.

क्‍या है मुस्‍ल‍िम पक्ष का तर्क?

इस मामले में हिंदू पक्ष रोजाना पूजा करने की इजाजत मांग रहा है. इसके लिए याचिकाकर्ताओं ने पूरे परिसर के निरीक्षण की मांग की है. हिंदू पक्ष का कहना है कि श्रृंगार गौरी की मूर्ति का अस्तित्व प्रमाणित करने के लिए मस्जिद के अंदर जाना पड़ेगा. यही वजह है कि सर्वे टीम बार-बार मस्जिद के अंदर जाकर सर्वे और वीडियोग्राफी करने की कोशिश कर रही है जबकि मुस्लिम पक्ष का दावा है कि मस्जिद की पश्चिमी दीवार के बाहर श्रृंगार गौरी की मूर्ति है. मुस्लिम पक्ष का ये भी कहना है कि उन्हें सर्वे से आपत्ति नहीं है. सर्वे टीम के मस्जिद के अंदर जाने से आपत्ति है. मुस्लिम पक्ष के मुताबिक, कोर्ट ने मस्जिद के अंदर जाकर सर्वे करने का ऑर्डर नहीं दिया है. इसके अलावा मुस्लिम पक्ष का ये भी कहना है कि जिस प्लॉट का जिक्र है, वो कहां है ये तय नहीं है. प्लॉट का रेवेन्यू नक्शा भी कोर्ट में जमा नहीं है. सर्वे टीम को मस्जिद से अंदर जाने से रोकने के पीछे मुस्लिम पक्ष का तर्क ये है कि देवी-देवताओं की मूर्तियां पश्चिमी दीवार के बाहरी ओर हैं न कि मस्जिद के अंदर. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि तार्किक तौर पर सर्वे बाहरी दीवार के अगल-बगल वाली मूर्तियों का होना चाहिए न कि मस्जिद के अंदर.

इलाहाबाद हाइकोर्ट करेगा तय…

अब देखना ये है कि कोर्ट के आदेश के बाद श्रृंगार गौरी और ज्ञानवापी प्रकरण में क्या फैसला और परिणाम सामने आता है. क्या विवादित जगह पर हमेशा से मस्जिद ही थी या फिर करीब चार सौ साल पहले मंदिर को तोड़कर वहां मस्जिद का निर्माण कराया गया था. यह विवाद तो वाराणसी की अदालत से ही तय होगा लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट को उससे पहले यह तय करना है कि वाराणसी की अदालत उस मुकदमे की सुनवाई कर सकती है या नहीं, जिसमें 31 साल पहले यह मांग की गई थी कि विवादित जगह हिंदुओं को सौंपकर उन्हें वहां पूजा-पाठ की इजाजत दी जाए. हाइकोर्ट में इस विवाद से जुड़े मुकदमों की अगली सुनवाई दस मई को होनी थी लेकिन वकीलों को हड़ताल की वजह से अब 16 मई को सुनवाई होगी. वैसे कानूनी पेचीदगियों में यह मामला इतना उलझ चुका है कि इसमें अब तथ्य और रिकॉर्ड दरकिनार होते जा रहे हैं. इस विवाद में अब सब कुछ इलाहाबाद हाईकोर्ट से जल्द आने वाले फैसलों पर ही निर्भर करेगा.

रिपोर्ट : विपिन सिंह

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