Sir Syed Ahmed Khan : मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा के उजाले में लाने के लिए जिसने घुंघुरू बांधकर मांगा चंदा
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के संस्थापक सर सैयद अहमद खान की आज (27 मार्च) 125 वीं पुण्यतिथि है. सर सैयद ने फतवों का सामना किया. पैरों में घुंघुरू बांधे, घर- घर जाकर चंदा मांगा तब कहीं जाकर वे मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा के उजाले में ला सके. AMU संस्थापक पर किताब लिखने वाले ने क्या- क्या कहा.
अलीगढ़. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के संस्थापक सर सैयद अहमद खान को आधुनिक स्कूल की स्थापना के लिए फतवों का सामना करना पड़ा था. मुसलमान बेहतर शिक्षा हासिल कर सकें इसके लिये पैरों में घुंघरू बांध कर चंदा मांगा . सर सैयद अहमद खान ने गुलाम भारत के मुसलमानों में शिक्षा का अलख जगाने की मुहिम चलाई थी. 1875 में अलीगढ़ में मदरसा की नींव रखी थी. 27 मार्च 1898 में आज ही के दिन सर सैयद का निधन हुआ. करीब 22 साल बाद 1920 में अलीगढ़ का यह मदरसा (Muhammadan Anglo-Oriental College) अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में एक वट वृक्ष बन गया. एएमयू आज मुस्लिम शिक्षा का बड़ा केंद्र बन गया है.
बदकिस्मती से मुसलमानों ने भुला दिया मूल मंत्र : राहत अबरार
सर सैयद अहमद खान पर कई किताबें लिख चुके एएमयू के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी राहत अबरार इस बात को लेकर चिंतित हैं कि सर सैयद अहमद खान ने आधुनिक चिंतन को लेकर बड़ा काम किया. स्कूल की स्थापना से बड़ा उनका राजनीतिक और धार्मिक विचार है लेकिन उनको केवल एएमयू के संस्थापक के रूप में सीमित कर दिया गया है. सर सैयद अहमद खान शिक्षा को राजनीतिक सशक्तिकरण और उन्नति का माध्यम मानते थे. अबरार कहते हैं कि बदकिस्मती से सर सैयद के मूल मंत्र को मुसलमानों ने भुला दिया है.
सर सैयद अहमद खान के राजनीतिक विचारों पर कम लिखा गया
राहत अबरार ने बताया कि सर सैयद अहमद खान के राजनीतिक विचारों पर कम लिखा गया. सर सैयद ने 857 की क्रांति को लेकर असबाब बगावत ए हिंद किताब लिखी. 1860 में सर सैयद के किताब का उर्दू से अंग्रेजी में ट्रांसलेशन हुआ था. वह पहले व्यक्ति थे जिनकी किताब को लेकर ब्रिटिश पार्लियामेंट में डिबेट हुई थी.इसके बाद अंग्रेजों ने 1857 में अपनी कमजोरी पहचानी और कमियों को दूर किया. उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी से शासन ब्रिटेन की रानी मलिका विक्टोरिया के हाथ में चला गया था.
राजनीतिक- आर्थिक उन्नति के लिये शिक्षा का रास्ता दिखाया
सर सैयद बड़े आदमी नहीं थे. न ही उनके पास दौलत- जागीर थी. अलीगढ़ मदरसा की स्थापना के लिए लोगों से वह अपील करते थे. चंदा में जो व्यक्ति 25 रुपये देगा उसका नाम बाउंड्री वॉल पर लिखा जाएगा. 250 रुपये देने वाले का नाम हॉस्टल- क्लासरूम तथा 500 रुपये देने वाले के नाम पर पत्थर स्ट्रेची हॉल में लगाया गया. राहत अबरार कहते हैं कि वर्तमान में मुसलमानों की आर्थिक स्थिति बेहतर है . उनको अपनी शिक्षण संस्थाएं खुद स्थापित करनी चाहिये. सर सैयद अहमद खान ने कहा था कि जो कौम भीख मांगती है, कभी तरक्की नहीं करती है. मुसलमानों को अपनी शिक्षा व्यवस्था में तब्दीली लानी होगी. सरकार पर निर्भरता खत्म करनी होगी.
सर सैयद के कॉलेज का पहला ग्रेजुएट छात्र हिन्दू
एएमयू के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी राहत अबरार बताते हैं कि सर सैयद अहमद खान शिक्षा को अविभाजित मानते थे. इससे बड़ा क्या उदाहरण होगा कि उनके कॉलेज का पहला ग्रेजुएट हिंदू छात्र था. छात्रावासों के नाम हिंदुओं के नाम पर हैं. बनारस के राजा शंभू नारायण ने एएमयू की आधारशिला में काफी मदद की थी. MAO कालेज की आधारशिला के समय बनारस से ही टेंट, शामियाना, क्रोकरी के सामान मंगाये गये थे. सर सैयद अहमद खान के साथ राजा शंभू नारायण, राजा जय किशन दास, उस समय के वायसराय और मुसलमानों का एक तबका खड़ा था.
AMU में सर सैयद अहमद खान की कब्र पर आज भी पढ़ा जाता है फतिहा
वह भी उस दौर में जब देश अंग्रेजों का गुलाम था. सर सैयद अहमद खान की मौत पर प्रिंसिपल थियोडोर बेक ने उनका बड़ा मकबरा विक्टोरिया गेट के सामने बनाने का प्रस्तवा रखा, लेकिन बेटे ने जामा मस्जिद के अंदर दफन का फैसला किया था. आज भी लोग जामा मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ते हैं. उसके बाद सर सैयद अहमद खान की कब्र पर फातिहा पढ़ा जाता है.
रिपोर्ट- आलोक