परंपरागत गीत और वेस्टर्न म्यूजिक के जरिये नयी पीढ़ी को विरासत से जोड़ रहे सीवान के सुशांत, गाने सुन कर प्रवासियों को सताती है गांव की याद

सीवान से अमरनाथ शर्मा : जिले के पचरुखी प्रखंड के सहलौर गांव निवासी योगेंद्र प्रसाद अस्थाना के 35 वर्षीय पुत्र सुशांत अस्थाना परंपरागत पुराने भोजपुरी गानों में वेस्टर्न म्यूजिक को कनेक्ट कर पुराने भोजपुरी गाने, जिसे लोग भुल चुके हैं, उसे लोगों के सामने पेश कर भोजपुरी को नयी ऊंचाई देने में जुटे हैं. शादी-विवाह के अलावा किसी भी धार्मिक अवसर पर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में भगवान शिव का गीत गाने का चलन है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 14, 2020 5:37 PM
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सीवान से अमरनाथ शर्मा : जिले के पचरुखी प्रखंड के सहलौर गांव निवासी योगेंद्र प्रसाद अस्थाना के 35 वर्षीय पुत्र सुशांत अस्थाना परंपरागत पुराने भोजपुरी गानों में वेस्टर्न म्यूजिक को कनेक्ट कर पुराने भोजपुरी गाने, जिसे लोग भुल चुके हैं, उसे लोगों के सामने पेश कर भोजपुरी को नयी ऊंचाई देने में जुटे हैं. शादी-विवाह के अलावा किसी भी धार्मिक अवसर पर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में भगवान शिव का गीत गाने का चलन है.

”गाय के गोबर महादेव, अंगना लिपाई…” एक ऐसा गीत है, जो हर पीढ़ी की जुबान पर होता है. किसी घर आंगन से जब ये गीत हवा में घुलता है, तो पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है. गिटार के साथ सुशांत जब इसे आवाज देते हैं, तो प्रवासी बिहारियों को गांव की याद आना लाजिमी है. दिल में हुक-सी उठती है. बिहार के लोगों की एक बड़ी आबादी महानगरों में जिंदगी गुजारने के लिए अभिशप्त है. अक्सर पीड़ा होती है कि नयी पीढ़ी पारंपरिक और लोक गीतों से महरूम हैं. लेकिन, सुशांत एक उम्मीद दिखा रहे हैं.

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सोशल मीडिया पर उनके चाहनेवालों की अच्छी खासी तादाद है. इनमें युवा ज्यादा हैं. पारंपरिक भोजपुरी गीतों की चमत्कारिक दुनिया ना सिर्फ आबाद रहेगी, बल्कि बाजारू और फूहड़ गीतों को मात भी देगी. ट्रीनिटी कॉलेज ऑफ लंदन से वेस्टर्न म्यूजिक एवं वेस्टर्न पियानो का कोर्स करने के बाद देश और विदेश में कई हिंदी गानों का लाइव शो करने के बाद अब भोजपुरी माटी की सेवा में जुट गये हैं.

सुशांत झारखंड में ‘भोजपुरी रत्न’, ‘माटी के लाल पुरस्कार’, ‘दी ग्लोरी ऑफ इंडिया’, ‘बिहार अस्मिता सम्मान’, ‘पूर्वांचल गौरव’ आदि सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं. उन्होंने करीब 16 साल बनारस और दिल्ली घराने में शास्त्रीय संगीत और कई वाद्य यंत्र जैसे पियानो, ड्रम, तबला, सितार आदि की शिक्षा ली है. महुआ के सुर संग्राम सीजन-2 से भोजपुरी गायन का शुरुआत करने के बाद कई देशों जैसे-मॉरीशस, दुबई, कनाडा, यूएस में लाइव शो कर चुके हैं.

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सुशांत फिलहाल आलाप (एक सांगीतिक वर्कशॉप) के फाउंडर हैं, जो 12 सालों से कई जगहों पर बच्चों को संगीत सिखाने का काम कर रहा है. स्ट्रिंग विब्स स्टूडियों दिल्ली के फाउंडर भी हैं. 10 सालों से संगीत निर्देशन का काम कर रहे सुशांत ने बॉलीवुड के कई नामचीन गायकों को अपने संगीत निर्देशन में गवाने का मौका मिला है. प्रभात खबर से बातचीत में उन्होंने बताया कि भोजपुरी भाषा में आधुनिक प्रयोगों के साथ परंपरागत साहित्य और संगीत से आज की युवा पीढ़ी को जोड़ने का प्रयास है. यहीं मेरा मौलिक विजन है.

भोजपुरी हमारी मातृभाषा होने के कारण इससे अगाध लगाव है. हमारा सोचना यह है कि भोजपुरिया क्षेत्र के वे लोग जो अपने इलाके को छोड़ कर बहुत दिनों से बाहर रहते हैं और उनके बच्चे आधुनिकता में पैदा होते हैं. उनके बच्चे सदियों पुरानी भोजपुरी की उन विरासत और परंपरागत गानों को इसलिए सुनना नहीं चाहते हैं कि उनमें उन्हें कुछ ‘मॉडर्न फील’ नहीं मिलता है. ऐसे 30-40 प्रतिशत लोग जो भोजपुरी से वंचित हो गये हैं तथा उनके बच्चे भोजपुरी गाने सुनना पसंद नहीं करते. ऐसे पीढ़ी के लिए वेस्टर्न म्यूजिक को कनेक्ट कर नये तरीके से भेजपुरी गानों को लोगों के सामने पेश कर रहें हैं.

उन्होंने बताया कि इसमें उन्हें काफी सफलता भी मिल रही है. उनके गानों को सिंगापुर, अफ्रीका, नाइजीरिया, अटलांटा एवं नीदरलैंड जैसे देशों में लोग उनके गानों को शेयर कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि मॉरीशस की विदेश मंत्री अपने वॉल पर उनके भोजपुरी गानों को शेयर किया है. नये तरीके से पेश किये गये भोजपुरी गानों को आज के स्मार्ट यूथ काफी पसंद कर रहे हैं. आपने दादी और मां की आवाज में तो ये गीत जरूर सुने होंगे. गांव-कस्बों से लेकर शहरों तक इन गीतों के साथ ही शादी-ब्याह संपन्न होते हैं. सुशांत अस्थाना इन गीतों को अपनी पुर-कशिश आवाज में नयी पहचान दे रहे हैं.

”कहवां के पियर माटी…’ विवाह के रस्म मटकोर का गीत है. शादी की विधिवत शुरुआत मटकोर से ही होती है. इसके लिए पहले महिलाएं कुदाल लेकर मिट्टी लाने घर से बाहर जाती हैं. जो मिट्टी लायी जाती है, उससे आंगन का मंडप तैयार किया जाता है. इसी मंडप में शादी की रस्में होती हैं. जिन लोगों ने बचपन में मटकोर की रस्म देखी है, उनके लिए ये मजेदार अनुभव रहा है. घर की चहारदीवारी से बाहर उन्मुक्त होकर महिलाएं आपस में हास-परिहास करती हैं. गीतों के माध्यम से रिश्तेदारों को गाली और उलाहना दी जाती है. खूब मस्ती होती है.

पीढ़ी-दर-पीढ़ी महिलाओं ने मटकोर के इस गीत को आवाज दी है. इनमें ”पटना के पियर माटी….” और ”छपरा की सात सुहागिनों…” का जिक्र आता है. सुशांत दिल्ली में रहते हुए गीत-संगीत की दुनिया में अपनी पहचान बना रहे हैं. वह गाने कंपोज भी करते हैं. भोजपुरी भाषी होने की वजह से उनके पास पारंपरिक और लोक गीतों का अथाह खजाना विरासत के तौर पर मौजूद है.

Posted By : Kaushal Kishor

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