Somvati Amavasya 2023: कार्तिक मास की सोमवती अमावस्या आज, जानें इस दिन का महत्व और प्रचलित कथाएं

Somvati Amavasya 2023: कार्तिक मास की अमावस्या का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व होता है. विवाहित स्त्रियों द्वारा इस दिन अपने पतियों के दीर्घायु कामना के लिए व्रत करने का विधान है, इस दिन मौन व्रत रहने से सहस्र गोदान का फल मिलता है.

By Radheshyam Kushwaha | November 13, 2023 9:02 AM

Somvati Amavasya 2023: पंचांग के अनुसार आज कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार अमावस्या तिथि पर स्नान-दान का विशेष महत्व है. अमावस्या तिथि सोमवार दिन को पड़ने के कारण सोमवती अमावस्या है. सोमवती अमावस्या वर्ष में लगभग एक या दो ही बार पड़ती है. इस अमावस्या का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व होता है. विवाहित स्त्रियों द्वारा इस दिन अपने पतियों के दीर्घायु कामना के लिए व्रत करने का विधान है, इस दिन मौन व्रत रहने से सहस्र गोदान का फल मिलता है. शास्त्रों में इसे अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत की भी संज्ञा दी गयी है. अश्वत्थ यानि पीपल वृक्ष. इस दिन विवाहित स्त्रियों द्वारा पीपल के वृक्ष की दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन इत्यादि से पूजा और वृक्ष के चारों ओर 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा करने का विधान है. वहीं कुछ अन्य परम्पराओं में भंवरी देने का भी विधान होता है. इसके साथ ही इस अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष महत्व है.


सोमवती अमावस्या कथा

सोमवती अमावस्या से सम्बंधित अनेक कथाएं प्रचलित हैं. परंपरा है कि सोमवती अमावस्या के दिन इन कथाओं को विधिपूर्वक सुना जाता है. एक गरीब ब्रह्मण परिवार था, जिसमे पति, पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी. पुत्री धीरे धीरे बड़ी होने लगी. उस लड़की में समय के साथ सभी स्त्रियोचित गुणों का विकास हो रहा था. लड़की सुन्दर, संस्कारवान एवं गुणवान भी थी, लेकिन गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था. एक दिन ब्रह्मण के घर एक साधू पधारे, जो कि कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न हुए. कन्या को लम्बी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधू ने कहा की कन्या के हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है. ब्राह्मण दम्पति ने साधू से उपाय पूछा कि कन्या ऐसा क्या करे की उसके हाथ में विवाह योग बन जाए.

साधू ने कुछ देर विचार करने के बाद अपनी अंतर्दृष्टि से ध्यान करके बताया कि कुछ दूरी पर एक गांव में सोना नाम की धूबी जाती की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो की बहुत ही आचार- विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है. यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिन्दूर लगा दे, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है. साधू ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती जाती नहीं है. यह बात सुनकर ब्रह्मणि ने अपनी बेटी से धोबिन कि सेवा करने कि बात कही.

कन्या तड़के ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, सफाई और अन्य सारे करके अपने घर वापस आ जाती. सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि तुम तो तड़के ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता. बहू ने कहा कि मांजी मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम ख़ुद ही ख़तम कर लेती हैं. मैं तो देर से उठती हूं, इस पर दोनों सास बहू निगरानी करने करने लगी कि कौन है जो तड़के ही घर का सारा काम करके चला जाता है. कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक एक कन्या मुंह अंधेरे घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है, जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं. तब कन्या ने साधू द्बारा कही गई सारी बात बताई.

सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था. वह तैयार हो गई. सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे. उसमे अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा. सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर कन्या की मांग में लगाया, उसके पति मर गया. उसे इस बात का पता चल गया. वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भंवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी. उस दिन सोमवती अमावस्या थी. ब्रह्मण के घर मिले पूए- पकवान की जगह उसने ईंट के टुकड़ों से 108 बार भंवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया. ऐसा करते ही उसके पति के मुर्दा शरीर में कम्पन होने लगा.

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पीपल के पेड़ में सभी देवों का वास होता है. अतः सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन भंवरी (परिक्रमा करना ) देता है, उसके सुख और सौभग्य में वृद्धि होती है, जो हर अमावस्या को न कर सके, वह सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या के दिन 108 वस्तुओं कि भंवरी देकर सोना धोबिन और गौरी-गणेश कि पूजा करता है, उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है.

पीपल के पेड़ में सभी देवताओं का वास होता है अतः पीपल के वृक्ष पर शनिवार को प्रातः काल एक लोटा जल में काले तिल, फूल डालकर चढ़ाने एवं सायंकाल के समय सरसों के तेल का दीपक जलाने, शिव चालीसा, हनुमान चलीसा, शनि चालीसा का पाठ करने से मनुष्य के सुख और समृद्धि के सभी बन्द द्वार धीरे-धीरे स्वयं ही खुलने लगते हैं.

ऐसी परम्परा है कि पहली सोमवती अमावस्या के दिन धान, पान, हल्दी, सिन्दूर और सुपाड़ी की भंवरी दी जाती है. उसके बाद की सोमवती अमावस्या को अपने सामर्थ्य के हिसाब से फल, मिठाई, सुहाग सामग्री, खाने कि सामग्री इत्यादि की भंवरी दी जाती है. भंवरी पर चढ़ाया गया सामान किसी सुपात्र ब्रह्मण, ननद या भांजे को दिया जा सकता है. अपने गोत्र या अपने से निम्न गोत्र में वह दान नहीं देना चाहिए.

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