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बरेली में ‘भाजपा की गुगली में फंसी सपा’, मेयर उमेश गौतम ने रचा इतिहास, जानें आईएस तोमर की हार के कारण

बरेली में सपा के समर्थन से चुनाव लड़ने वाले डॉ.आईएस तोमर लंबे अंतर से चुनाव हार गए हैं. भाजपा प्रत्याशी डॉ. उमेश गौतम ने सपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी को बड़े अंतर से चुनाव हराया है. खास बात रही कि निकाय चुनाव में सपा खुद ही आउट होकर पवेलियन में बैठ गई.

Bareilly: उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव को हल्के में लेना समाजवादी पार्टी (सपा) को भारी पड़ा है. बरेली में सपा से टिकट के कई दावेदार थे. मगर, पार्टी ने जनाधार वाले नेताओं को नजरअंदाज कर दो वर्ष पहले सियासत में कदम रखने वाले संजीव सक्सेना पर दांव खेला. भाजपा से निवर्तमान मेयर डॉ. उमेश गौतम को टिकट मिलने के बाद सपा में हलचल तेज हुई. एक धड़े ने सपा के कुछ बड़े नेताओं से संपर्क किया.

निकाय चुनाव में सपा के नेताओं ने उमेश गौतम की नाराजगी में निर्दलीय प्रत्याशी डॉ.आईएस तोमर की जीत का भरोसा दिलाया. इसके बाद संजीव सक्सेना का नामांकन वापस कराते हुए दो बार मेयर रहे निर्दलीय प्रत्याशी डॉ.आईएस तोमर को समर्थन दिलाने का दांव खेला. इससे सपा खुद ही आउट होकर पवेलियन में बैठ गई.

बरेली में कितनों मतों से हुई हार-जीत

सपा के समर्थन से चुनाव लड़ने वाले डॉ.आईएस तोमर लंबे अंतर से चुनाव हार गए हैं. भाजपा प्रत्याशी डॉ. उमेश गौतम ने सपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी को 56328 वोटों के बड़े अंतर से चुनाव हराया है. भाजपा प्रत्याशी को 167271 वोट मिले, जबकि निर्दलीय प्रत्याशी डॉ.तोमर को 110943 वोट मिले हैं. डॉ. उमेश गौतम ने भाजपा से प्रत्याशी बनने के बाद बाद काफी मेहनत की. उनके चुनाव में संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी काफी मेहनत की. सपा को लगातार भाजपा में गुटबाजी की फर्जी सूचनाएं आती रही.

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इस तरह रहा सियासी माहौल

अहम पहलू ये भी है कि चुनाव के दौरान भाजपा का बेस वोटबैंक वैश्य, कायस्थ, कुर्मी आदि निर्दलीय प्रत्याशी डॉ. आईएएस तोमर को मिलने की अफवाह उड़ाई गई. सपा प्रत्याशी इसी गलतफहमी में जीतने का सपना देखते रहे. मगर, भाजपा खामोशी से मतदाताओं के बीच चुनाव लड़ रही थी. सपा नेताओं से लेकर अन्य सियासी दल के नेता 5 से 10 हजार के बीच कड़ा मुकाबला होने की उम्मीदों में थे. लेकिन, भाजपा प्रत्याशी ने लगातार दूसरी बार प्रचंड जीत हासिल की. उन्होंने नगर निगम चुनाव में इतिहास रच दिया है. 1989 से लेकर कोई भी प्रत्याशी दूसरी बार लगातार मेयर नहीं बना है. मगर, डॉ. उमेश गौतम ने दूसरी बार जीत दर्ज कर सियासत के मैदान में एक बड़ी लाइन खींच दी है.

जाने डॉ. उमेश गौतम की जीत के कारण

भाजपा प्रत्याशी एवं निवर्तमान मेयर डॉ. उमेश गौतम पहले ही दिन से चुनाव काफी मेहनत से लड़ रहे थे. भाजपा में कई नेता और पार्षदों ने टिकट कटने पर बगावत की. मगर, उन्होंने बगावत पर ध्यान नहीं दिया. वह लगातार अपने चुनाव पर फोकस करते रहे. मुख्यमंत्री से लेकर डिप्टी सीएम और कैबिनेट मिनिस्टर की मीटिंग कराई गई. इनके माध्यम से मतदाताओं से संपर्क साधा गया.

चुनाव के अंतिम दो दिनों में काफी मेहनत की गई, जिससे कोई कसर नहीं रह जाए. खास बात रही कि नगर निगम में पांच वर्ष के कार्यकाल में डॉ. उमेश गौतम ने अपनी कोई विवादित छवि नहीं बनाई. सेकुलर छवि के कारण मुस्लिम मतदाताओं में भी उनके भाजपा प्रत्याशी होने के बावजूद कोई नाराजगी नहीं थी. उमेश गौतम को मुसलमानों के भी वोट मिले.

सपा समर्थित प्रत्याशी की हार की वजह

सपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी डॉ. आईएस तोमर के पास सपा का सिंबल नहीं था. वहीं नगर निगम के 80 वार्ड में चुनाव लड़ने वाले सपा के पार्षद प्रत्याशी साइकिल चुनाव निशान पर ही वोट मांगते रहे. उन्होंने निर्दलीय मेयर प्रत्याशी डॉ. आईएस तोमर के चुनाव निशान जीप को लेकर वोट नहीं मांगा. इसकी एक वजह ये भी थी कि पार्षद चुनाव में एक चुनाव निशान ईवीएम में कार थी. सपा वाडॅ प्रत्याशियों को लगा कि अगर वह डॉ. तोमर के लिए लिए वोट मांगेगे तो संभव है लोग धोखे में जीप की जगह कार चुनाव निशान के आगे का बटन ना दबा दें, जिससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है.

सपा का बेस वोट मुस्लिम कम पढ़ा लिखा होने के कारण गफलत में पड़ गया, और ईवीएम में डॉ. तोमर का चुनाव निशान जीप काफी नीचे होने के कारण वह असमंजस में रहे. इसके साथ ही सपा में गुटबाजी भी चुनाव में हार का कारण बनी. खास बात है कि डॉ. तोमर की खुद की बिरादरी (जाट) के बरेली नगर निगम में करीब 500 से 1000 के बीच वोट हैं. ये वोट भी उन्हें नहीं मिल पाए. इसके साथ ही डॉक्टर तोमर के जीतने के बाद भाजपा में शामिल होने की अफवाह भी उनके लिए काफी नुकसानदेह साबित हुई.

रिपोर्ट- मुहम्मद साजिद, बरेली

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