जमशेदपुर में एक गांव है नारवा. वहीं ओलिंपियन तीरंदाज लक्ष्मी रानी माझी का जन्म हुआ था. वह इसी गांव में पली-बढ़ी. पिता कोयले की खदान में मजदूर थे. चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी लक्ष्मी रानी को मां पद्मिनी ने पढ़ाने का फैसला किया और सरकारी स्कूल में दाखिला करवा दिया. वहीं एक दिन कुछ खेल अधिकारियों के तीरंदाजी के राष्ट्रीय कोच धर्मेद्र तिवारी एक दौरे पर पहुंचे थे. उन्होंने सभी बच्चों से पूछा कि कौन तीरंदाजी सीखना चाहता है. लक्ष्मी आगे आयी और तीरंदाजी सीखने लगी.
बाद में अपनी मेहनत के दम पर उसने 2015 में डेनमार्क में आयोजित विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप के व्यक्तिगत और टीम इवेंट में रजत पदक जीता. इसी प्रदर्शन के आधार पर लक्ष्मी रानी माझी का चयन 2016 के रियो ओलिंपिक के लिए हुआ.रियो में लक्ष्मी रानी माझी को एकल स्पर्धा में हार का सामना करना पड़ा और वह बाहर हो गयीं. लक्ष्मी को राउंड-32 एलिमिनेटर मुकाबले में स्लोवाकिया के एलेक्जेंड्रा लोंगोवा ने 108-101 से हराया. लक्ष्मी को टीम इवेंट में अपनी साथी तीरंदाजों दीपिका कुमारी और लैशराम बोमल्या देवी के साथ क्वार्टर फाइनल में भी हार मिली थी.
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भारतीय महिला रिकर्व तीरंदाजी टीम यहां अंतिम क्वालीफायर में ओलिंपिक कोटा हासिल नहीं कर सकी थी, लेकिन उसने शुक्रवार को विश्व कप के तीसरे चरण के फाइनल में प्रवेश किया. दीपिका कुमारी, अंकिता भगत और कोमोलिका बारी की तिकड़ी को रविवार को निचली रैंकिंग की कोलंबिया से हार का सामना करना पड़ा था, जिससे टीम ओलिंपिक टीम क्वालीफिकेशन गंवा बैठी थी. शुक्रवार को उन्होंने एक सेट गंवाया और छठी रैंकिंग के फ्रांस को सेमीफाइनल में 6-2 से हरा दिया. विश्व कप का तीसरा चरण ओलिंपिक क्वालीफाइंग टूर्नामेंट नहीं है.