धनबाद
शहर की सड़कों पर आवारा पशुओं के आतंक से लोग भयभीत हैं. इनका खौफ इस कदर हावी है कि लोग अपना रास्ता बदल लेते हैं. खास कर सांड यदि बीच सड़क पर खड़ा हो जाये, तो ट्रैफिक जाम हो जाता है. हटाने पर भी ये नहीं हटते हैं. पिछले डेढ़ साल में आवारा पशुओं के हमले में तीन लोगों की मौत हो गयी है, तो दर्जनों लोग जख्मी हो गये हैं.
ऐसी बात नहीं कि नगर निगम के पास आवारा पशुओं से निबटने की व्यवस्था नहीं थी, पर कमजोर इच्छाशक्ति के कारण कुछ नहीं हो पा रहा. जानकारी के अनुसार शहर में निगम के दो-दो कांजी हाउस थे, लेकिन रखरखाव के अभाव में दोनों का अस्तित्व समाप्त हो गया. नगर निगम के पुराने भवन के पीछे स्थित एक कांजी हाउस को तोड़ कर निगम कर्मियों के लिए क्वार्टर बना दिया गया. फिलवक्त वहां मल्टी स्टोरी पार्किंग का काम चल रहा है. इधर, झरिया के इंदिरा चौक के पास भी एक कांजी हाउस था.
इसके नाम पर नगर निगम की ओर से पिछले दो साल तक बंदोबस्ती के लिए विज्ञापन निकलता रहा, लेकिन आज तक बंदोबस्ती नहीं हुई. कोढ में खाज यह कि झरिया में कांजी हाउस कहां पर है, इसकी जानकारी भी निगम के कर्मचारियों के पास भी नहीं है. निगम के कर्मचारी बताते हैं कि नगरपालिका के समय इंदिरा चौक के आसपास कहीं कांजी हाउस था.
हीरापुर हटिया, बैंक मोड़, पुराना बाजार, स्टील गेट, बरटांड़ में सांडों की वजह से अक्सर सड़क दुर्घटनाएं होती हैं. आवारा पशु झुंड में सड़कों पर घूमते रहते हैं. जेसी मल्लिक की महिला की माैत सांड के हमले से हो गयी थी. इसी तरह से एसडीओ गेट के पास विनोद नगर के व्यक्ति की मौत हो गयी, जबकि तेलीपाड़ा के एक वृद्ध की भी जान सांड ने ले ली. इसके अलावा किसी की गर्दन टूटी, तो किसी का पेट फट गया. कई जख्मी का अभी भी उपचार चल रहा है.
आवारा पशुओं को पकड़ने की जिम्मेवारी नगर निगम की है. नगर निगम के गठन को 13 साल हो गये, लेकिन आज तक इसके लिए कोई ठोस योजना नहीं बनी. एक योजना थी आवारा पशुओं को पकड़ कर उनके मालिक से जुर्माना वसूला जाये, लेकिन वह भी फाइलों में सिमटकर रह गयी. इसके बाद गोशाला कमेटी से कई दौर की बैठक हुई, लेकिन आगे किसी तरह की पहल नहीं हुई.