Gorakhpur News: गोरखपुर शहर से लगभग 20 से 25 किलोमीटर की दूरी पर सरदारनगर में स्थित सराया चीनी मिल के शुरू होने की आस अब भी बरकरार है. किसानों और श्रमिकों का एक समय में घर चलाने वाली यह मिल 1990 के दशक में प्रबंधन और गन्ना किसानों के बीच हुए विवाद के बाद लगभग 30 महीनों के लिए बंद कर दी गई थी.
जानकारी के मुताबिक, उसके बाद दोबारा चीनी मिल को चालू किया गया लेकिन प्रयास असफल हो गए. इसे साल 2012 में दोबारा बंद करना पड़ा जो आज तक बंद है. तमाम आश्वासनों के बाद भी आज तक इसमें ताला लगा हुआ है. खास बात यह है कि पेराई क्षमता में कभी एशिया की नंबर वन व विश्व की दूसरी पुरानी मिल रही सरदारनगर चीनी मिल अब बदतर हालत में पड़ी हुई है. उसके कलपुर्जे जंग खा रहे हैं. 9 वर्ष से बंद चीनी मिल के सैकड़ों मजदूर व एक लाख से अधिक किसानों के सामने बड़ा आर्थिक संकट खड़ा है.
चीनी मिल श्रमिकों की आरसी और किसानों की आरसी के लगभग 180 करोड़ के भुगतान के लिए 35 बार नीलामी की प्रक्रिया की गई लेकिन कोई खरीदार नहीं आया. श्रमिकों व किसानों का कहना है कि प्रदेश सरकार ने तमाम बंद चीनी मिलों को चलवा दिया है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसे भी चलवा दें ताकि विकास की एक नई किरण लोगों तक पहुंच जाए.
चीनी मिल के श्रमिक नेता बनारसी सिंह ने बताया कि इस चीनी मिल को ब्रह्म ज्ञान सिंह मजीठिया, दिलीप सिंह मजीठिया और गिरजेश सिंह मजीठिया चलाते थे. सब ठीक था. किसी का कोई बकाया नहीं था. बाद में सत्यजीत सिंह मजीठिया इस फैक्ट्री को चलाने लगे. वर्ष 1993-94 तक गन्ने के दाम और मजदूरों की मजदूरी सब पेमेंट हो चुकी थी. मगर सत्यजीत के संचालन के पहले वर्ष में 8 करोड़ रुपए गन्ने के दाम का बकाया हो गया. उसके पहले जब ब्रह्म ज्ञान सिंह मजीठिया इस फैक्ट्री को चलाया करते थे 20 करोड़ की चीनी और 5 करोड़ पर बैलेंस मिल के पास था.
वे कहते हैं, जब किसानों ने धरना-प्रदर्शन किया तो उसके बाद 1998-99 में इस फैक्ट्री को बंद कर दिया गया. उसके बाद फैक्ट्री लगभग 3 साल बंद रही. तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह की मंजूरी के बाद सत्यजीत सिंह मजीठिया ने ट्रस्ट की लगभग 15 एकड़ जमीन बेच दी. उस रुपए को लेकर वे दिल्ली चले गए. किसान और श्रमिक इंतजार करते रहे.
उन्होंने बताया कि हर बार चुनाव में मजीठिया के मुद्दे को उठाया जाता है. अकाली दल से भाजपा का गठबंधन था. सत्यजीत सिंह के समधी प्रकाश सिंह बादल हैं. उनके लड़के बिक्रम सिंह मजीठिया हैं. इन लोगों के सांठगांठ से यह फैक्ट्री नहीं खुल पाई. साल 2012 तक यह फैक्ट्री चली. पूर्व सीएम अखिलेश यादव की सरकार में हम लोगों ने इस मुद्दे को उठाया था लेकिन तत्कालिक डीएम ने यह बात कही की मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का फोन आया है कि हम लोग आपकी मदद नहीं कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि उसके बाद हमने प्रदर्शन खत्म कर लिया.
साल 2014 के चुनाव में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि हमारी सरकार आएगी तो फैक्ट्री शुरू कर देंगे. मगर कुछ नहीं हुआ. वे कहते हैं गन्ना किसानों का इस समय 40 करोड़ की जगह पर ब्याज सहित 80 करोड़ बकाया हो गया है. लेबर और कर्मचारी जो 500 से 600 की संख्या में रिटायर हुए हैं, उन लोगों का कोई भुगतान नहीं किया गया है. अब सिर्फ इंतजार ही हो रहा है.
रिपोर्टर : कुमार प्रदीप