पश्चिम बंगाल में कामदुनी में 21 वर्षीय छात्रा के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म व हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मामले के आरोपियों पर कुछ पाबंदियां लगायी हैं. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बीआर गवई व न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ पर हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार व पीड़िता के भाई की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई हुई. मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने फिलहाल हाईकोर्ट के आदेश पर किसी प्रकार का स्थगनादेश लगाने से इंकार कर दिया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रिहा हुए आरोपियों पर कई प्रकार की पाबंदियां लगा दी है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि राजारहाट थाना की अनुमति के बिना आरोपी इलाके से बाहर नहीं जा पायेंगे. थाना क्षेत्र से बाहर जाने के लिए आरोपियों को ओसी से अनुमति लेनी होगी. प्रत्येक महीने में प्रथम व तृतीय सोमवार को थाने में हाजिरी देनी होगी. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आरोपितों को जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है. गौरतलब है कि पीड़ित छात्रा के भाई व राज्य सरकार की ओर से कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान आरोपितों की मांग पर कोर्ट ने यह आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने जेल से रिहा हो चुके आरोपितों को गुरूवार को निर्देश दिया कि वो स्थानीय पुलिस के संपर्क में रहेंगे.
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पुलिस को अपने पते और फोन की जानकारी देंगे और इस मामले में पीड़ित परिवार या गवाहों से संपर्क करने की कोशिश नहीं करेंगे. इससे पहले नौ अक्तूबर को पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आरोपितों को नोटिस जारी कर एक हफ्ते में जवाब देने को कहा था. मामले में ट्रायल कोर्ट ने छह लोगों को दोषी करार दिया था. इन छह में से तीन आरोपियों अमीन अली, सैफुल अली और अंसार अली को मौत की सजा और इमानुल इस्लाम, अमीनुल इस्लाम और भोला नस्कर को उम्रकैद की सजा सुनायी गयी थी. लेकिन छह अक्तूबर को कलकत्ता हाईकोर्ट ने मामले में फैसला सुनाते हुए अमीन अली को बरी कर दिया और सैफुल अली और अंसार अली की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था. इसके अलावा हाईकोर्ट ने बाकी तीन आरोपितों को सामूहिक दुष्कर्म के आरोप से बरी करते हुए सिर्फ सबूत मिटाने के आरोप में दोषी मानते हुए सात साल की सजा सुनायी थी. हालांकि, ये तीनों आरोपी पिछले 10 साल से जेल में बंद हैं, ऐसी परिस्थिति में हाईकोर्ट ने इन तीनों को रिहा करने का आदेश दिया था.