एंटीक चीजों के शौकीन हैं हजारीबाग के सुरेंद्र प्रसाद ,100 साल पुरानी लालटेन और इन चीजों को रखा है संभालकर
सुरेंद्र प्रसाद सिन्हा रिटायर्ड असिस्टेंट सेटलमेंट ऑफिसर थे. वे अपने पद से 1994 में रिटायर हुए हैं. उन्होंने बताया कि उनके दादा जी ने यह लालटेन खरीदा था, जो उनके खानदानी मकान जोकि डालटनगंज में स्थित है वहीं रखा था.
वर्तमान दौर में अगर किसी किशोर या किशोरी से यह पूछा जाये कि क्या तुमने लालटेन इस्तेमाल किया है? तो निश्चित तौर पर उनका जवाब ना ही होगा. आज के आधुनिक युग में लालटेन जैसी चीजें लुप्तप्राय सी होती जा रही हैं इस दौर में हजारीबाग के सुरेंद्र प्रसाद सिन्हा एक ऐसे व्यक्ति हैं जो कई पुरानी और एंटीक चीजों को अपने पास संजोकर रखे हुए हैं. प्रभात खबर के साथ बातचीत में उन्होंने बताया कि उनके पास एक सौ साल से अधिक पुरानी एक लालटेन है, जिसे उन्होंने संजोकर रखा है और वह आज भी रौशनी देने में समर्थ है.
सौ साल पुरानी है लालटेनसुरेंद्र प्रसाद सिन्हा रिटायर्ड असिस्टेंट सेटलमेंट ऑफिसर थे. वे अपने पद से 1994 में रिटायर हुए हैं. उन्होंने बताया कि उनके दादा जी ने यह लालटेन खरीदा था, जो उनके खानदानी मकान जोकि डालटनगंज में स्थित है वहीं रखा था. उन्होंने बताया कि लालटेन के शीशे पर 12-4-23 अंकित है. यानी अब यह लालटेन सौ वर्ष की हो चुकी है. इस लालटेन पर मेड इन न्यूयार्क लिखा हुआ है.
सुरेंद्र जी ने बताया कि उनका जन्म 1936 में दुमका हुआ था. कामकाज के सिलसिले में वे चाईबासा और रांची में भी रहे. खानदानी मकान डालटनगंज से 1970 में वे इस लालटेन को लेकर आये थे. सुरेंद्र प्रसाद ने बताया कि उन्हें पुरानी चीजों को संभालकर रखने की आदत है क्योंकि उनसे भावनाएं और यादें जुड़ी होती हैं.
45 रुपये में खरीदी थी साइकिलसुरेंद्र प्रसाद सिन्हा ने बताया कि उनके पास एक रेले साइकिल भी है जो उनके जन्म के समय ही खरीदी गयी थी. उन्होंने बताया कि मेरी आयु अभी 87 साल है, मेरा जन्म 1936 में हुआ था और उसके कुछ ही महीने बाद मेरे पिताजी ने रेले (इंग्लिश) साइकिल खरीदी थी. उस साइकिल को मैंने काफी चलाया. आज भी वह साइकिल मेरे पास है. साइकिल का फ्रेम, उसका हैंडिल और मर्ड गार्ड ओरिजिनल है. मैंने इस साइकिल का कैश मैमो रखा है, जिसपर 45 रुपये अंकित है. चूंकि साइकिल कोलकाता से आई थी इसलिए उसपर ट्रांसपोर्टेशन चार्ज पांच रुपये लगा था. उन्होंने बताया कि टायर-ट्यूब बदलवा देने से यह साइकिल अभी भी चल सकती है. मैंने इस साइकिल से रांची में 10 हजार किलोमीटर तक की दूरी तय की है. रांची शहर और तैमारा घाटी तक मैं इस साइकिल से जाता था. उस वक्त रांची में इतनी भीड़ नहीं होती थी.
मेड इन स्वीडन स्टोवसुरेंद्र प्रसाद सिन्हा ने बताया कि मेरे पास एक स्टोव भी है जो मेड इन स्वीडन है और वह 1927-28 का है. पहले वह स्टोव हमारे घर में इस्तेमाल होता था लेकिन अब मैंने उसे एंटीक के रूप में सहेज कर रखा है. सुरेंद्र प्रसाद ने बताया कि उनके पास एक काफी पुराना चरखा भी था, लेकिन एक बार घर में चोरी हुई तो चोरों ने उसे भी निशाना बना लिया. उन्हें पुराने सिक्के भी जमा करने का शौक था. उनके पास 12 पाई और आने के भी सिक्के थे, लेकिन सब चोरों ने उड़ा लिया. इसके अलावा और भी कई चीजें हैं, जो वर्षों से उनके पास है, जिनमें पुराने समय के ताले, पलंग, संदूक एवं बरतन इत्यादि शामिल हैं. सुरेंद्र प्रसाद वर्तमान में हजारीबाग के रामनगर में रहते हैं. 87 साल की उम्र में भी ऊर्जावान हैं और काफी एक्टिव रहते हैं. वे यह कहते हैं कि कुछ दिन में वे अपनी साइकिल को फिर से चलायेंगे. वे वर्षों से पेंशनधारियों की निशुल्क सेवा में जुटे रहते हैं.