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Sushant Singh Rajput Death : सुसाइड से पहले कई संकेत देता है मरीज, जरूरत है उसे समझने की…

Sushant Singh Rajput Death : कोई इंसान आत्महत्या जैसे कदम क्यों उठाता है? इस संबंध में जब हमने मनोवैज्ञानिक भूमिका सच्चर से बात की तो उन्होंने बताया कि हमारे देश आज भी मेंटल हेल्थ को बहुत महत्व नहीं दिया जाता है और लोगों के बीच इस तरह का भ्रम है कि अगर आप किसी मनोवैज्ञानिक की सलाह लेते हैं या उनसे उपचार कराते हैं, तो यह बदनामी वाली बात है. उनको ऐसा महसूस होता है कि अगर वे डिप्रेशन की दवा लेते हैं तो लोग क्या कहेंगे. इसलिए वे मेंटल हेल्थ को छुपाते हैं.

सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या से पूरा देश सदमे में है, सब यही जानना चाहते हैं कि आखिर उसके साथ ऐसा क्या हुआ कि उसने आत्महत्या जैसा कदम उठाया. गूगल सर्च में 10 लाख लोगों ने सुशांत सिंह राजपूत को सर्च किया. इंस्टाग्राम पर 11 लाख लोगों ने उनके बारे में लिखा और दो लाख लोगों ने ट्‌वीट किया. बॉलीवुड से कई बड़े नाम निकलकर सामने आ रहे हैं, जो यह कह रहे हैं कि सुशांत सिंह राजपूत ने इस बात के संकेत दिये थे कि वे ऐसा कुछ कर सकते हैं, लेकिन कोई उनकी मदद नहीं कर पाया.

कोई इंसान आत्महत्या जैसे कदम क्यों उठाता है? इस संबंध में जब हमने मनोवैज्ञानिक भूमिका सच्चर से बात की तो उन्होंने बताया कि हमारे देश आज भी मेंटल हेल्थ को बहुत महत्व नहीं दिया जाता है और लोगों के बीच इस तरह का भ्रम है कि अगर आप किसी मनोवैज्ञानिक की सलाह लेते हैं या उनसे उपचार कराते हैं, तो यह बदनामी वाली बात है. उनको ऐसा महसूस होता है कि अगर वे डिप्रेशन की दवा लेते हैं तो लोग क्या कहेंगे. इसलिए वे मेंटल हेल्थ को छुपाते हैं. घर वाले भी ऐसी सलाह देते हैं कि यह कोई समस्या नहीं है, इसपर ज्यादा सोचो मत यह खुद ही ठीक हो जायेगा. कई बार ऐसा भी होता है कि स्थिति गंभीर होती है, लेकिन परिवार समझता नहीं और पेशेंट का मजाक उड़ाता है, यह बहुत ही गलत है और यह पेशेंट को और अधिक डिप्रेशन में लेकर जाता है.

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मनोवैज्ञानिक भूमिका बताती हैं कि सुशांत सिंह राजपूत का ही केस अगर हम लें तो यह पता चलता है कि वे गहरे डिप्रेशन में थे और कई तरह के संकेत भी दे रहे थे, लेकिन उसे सही से समझा नहीं गया और ना ही उनकी मदद की गयी जिसका परिणाम हमारे सामने आ गया. सुसाइड के कई कारण हो सकते हैं. कोई व्यक्ति सुसाइड का निर्णय तभी करता है जब वह अत्यधिक दबाव में होता है. उसके अंदर नकारात्मक सोच प्रबल हो जाती है. वह हमेशा यह सोचता है कि उसकी जिंदगी अब कभी ठीक नहीं होगी और उसके अंदर सुसाइड के ख्याल आते हैं. सुसाइड के लिए आर्थिक कारण, पारिवारिक कारण, कैरियर, लव अफेयर या फिर वैसे मुद्दे भी प्रभावकारी होते हैं, जो उसे दबाव में ले आते हैं.

ऐसा व्यक्ति को जो किसी तरह बड़ी परेशानी जैसे किसी करीबी की मौत, कैरियर संबंधित बड़ी परेशानी या कोई और दबाव बनाने वाली समस्या से गुजरा हो या गुजर रहा हो, उसका खास ख्याल रखने की जरूरत है, ताकि वह आत्महत्या की ओर अग्रसर ना हो.

मनोचिकित्सक पवन वर्णवाल का कहना है कि जब भी कोई व्यक्ति सुसाइड करता है तो वह सीवियर डिप्रेशन का शिकार होता है. जब वह कंप्लीटेड सुसाइड यानी सुसाइड की ऐसी कोशिश जिसमें उसकी मौत हो जाये, इसकी कोशिश करता है, तो उसके पहले वह कम से कम एक हजार बार इसके बारे में सोच चुका होता है. सुसाइड की योजना अचानक नहीं बनती वह इसकी प्लानिंग कई बार कर चुका होता है. कंप्लीटेड सुसाइड करने की कोशिश से पहले वह एक हजार बार इसके बारे में सोचता है, यानी वह कम से कम एक साल से डिप्रेशन में हो सकता है. चूंकि सुसाइड की कोशिश वह एक दिन में नहीं करता और डिप्रेशन का शिकार रहता है, इसलिए उसके आवभाव से यह समझा जा सकता है कि वह परेशानी में है. वह निराश रहता है, ऐसी बातें करता है जो निराशाजनक होती हैं. ऐसे में उसके परिवार और दोस्तों की यह जिम्मेदारी है कि वह उन संकेतों को समझें, उससे बात करें कि आखिर वह ऐसा क्यों कर रहा है, क्या परेशानी है. अगर उन्हें लगता है कि परेशानी हल हो सकती है तो ठीक है, लेकिन अगर परेशानी ज्यादा दिखती है तो उन्हें मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिक के पास लेकर जायें.

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कई बार ऐसा भी होता है कि परिवार वाले या दोस्त उसके संकेतों को समझ नहीं पाते, इसका कारण यह है कि हमारे देश में ‘मेंटल हेल्थ’ को लेकर जागरूकता बहुत कम है. आम लोग इसे बीमारी नहीं मानते और इसे छुपाते हैं, उन्हें लगता है कि मानसिक बीमारी की चर्चा करने या इलाज करने से उनकी बदनामी होगी, इसलिए यह देश की बहुत बड़ी जरूरत है कि मेंटल हेल्थ के प्रति लोगों को जागरूक किया जाये. अवयरनेस की कमी के कारण मेंटल हेल्थ को गलत तरीके से परिभाषित किया जाता है जिसका प्रभाव मनोरोगियों पर पड़ता है. मनोरोगियों को इग्नोर नहीं किया जाना चाहिए बल्कि उसकी मदद की जानी चाहिए.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर आनंद प्रकाश का कहना है कि सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या की खबर सन्न करने वाली है. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक उभरता सितारा आत्महत्या जैसे कदम उठा सकता है. फिल्म में किरदार के जरिये समाज को संदेश देने वाले नायक से किसी को आत्म हत्या जैसे कदम उठाने की उम्मीद नहीं थी. ऐसा कदम किसी भी व्यक्ति को नहीं उठाना चाहिए, क्योंकि जीवन में सफलता और असफलता मिलना सामान्य बात है. लेकिन सफलता में फिसलन भी अधिक होती है. वह भी तब जब यह कम उम्र में मिल जाती है. यह कहना कि पिछले 6 महीने से सुशांत डिप्रेशन में थे, लेकिन इसमें लोग आत्म हत्या नहीं करते हैं. सुशांत फिल्म से जुड़े थे और यहां सफलता मिलने पर काफी शोहरत मिल जाती है. इस शोहरत को बरक़रार रखना काफी चुनौती पूर्ण काम है. इसके लिए मानसिक संतुलन बनाये रखना होता है. साथ ही कई प्रतिस्पर्धी भी उभर जाते हैं. ऐसे में मानसिक, आर्थिक और सामाजिक स्टैट्‌स को बरकरार की चुनौती भी बड़ी हो जाती है. ऐसे समय अपनी भावनाओं को साझा करने के लिये क़रीबी लोगों का होना जरूरी होता है. नहीं तो कुछ समस्या ऐसी होती है, जो लोग साझा नहीं करना चाहते हैं. ऐसे में घुटन होने लगती है और लगने लगता है कि जीवन समाप्त किये बिना इसका समाधान संभव नहीं है. जबकि जीवन समाप्त करना किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है. आज के युवाओं को सफलता और विफलता दोनों के बीच संतुलन साध आगे बढ़ने की सीख लेनी चाहिए.

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