झारखंड के नौजवानों ने स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मान दुनिया में बनायी अलग पहचान, बढ़ाया राज्य का मान
Swami Vivekananda Jayanti 2023: बोकारो स्टील प्लांट में हाड़तोड़ मेहनत करनेवाले परिवार के नौजवानों ने दुनिया से कदमताल कर अपनी अलग राह बनायी है. स्वामी विवेकानंद की जयंती के मौके पर जाने ऐसे नौजवानों को जिन्होंने स्वामी जी के संदेशों को अपने कर्म के बल पर जीवंत कर दिया.
Swami Vivekananda Jayanti 2023: स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाए, इसे मूलमंत्र बना कोयलांचल के युवाओं ने दुनिया अपनी मुट्ठी में कर ली. मेहनतकशों की इस धरती पर यहां के नौजवानों ने अपनी किस्मत आप लिखने की ठान ली और हर क्षेत्र में परचम लहराया. कोयला, अभ्रक व भारत के प्रथम स्वदेशी इस्पात संयंत्र के रूप में जाने जानेवाले बोकारो स्टील प्लांट में हाड़तोड़ मेहनत करनेवाले परिवार के नौजवानों ने दुनिया से कदमताल कर अपनी अलग राह बनायी है. स्वामी विवेकानंद की जयंती (राष्ट्रीय युवा दिवस) के मौके पर जाने ऐसे नौजवानों को जिन्होंने दिल से ना केवल स्वामी जी को जिया बल्कि उनके संदेशों को अपने कर्म के बल पर जीवंत कर दिया. पढ़े ऐसे ही कुछ युवाओं के संबंध में.
सृष्टि की पहली उड़ान ने धनबाद का बढ़ाया मान
त्रिवेंद्रम से पहली बार हवाई जहाज उड़ा कर धनबाद की बेटी पायलट सृष्टि जीवंतिका सिंह ने यह संदेश दिया कि पूरा आसमान उनका है. कोरोना काल में वंदे भारत मिशन का हिस्सा बन दुनिया को बता दिया कि कोमल है कमजोर नहीं है शक्ति का नाम ही नारी है. फलक तक विस्तार में लगी सृष्टि के पिता कर्नल जेके सिंह के अनुसार धनबाद से स्कूलिंग शुरू हुई. उसके बाद जहां-जहां उनका ट्रांसफर हुआ वहां के आर्मी स्कूल में पढ़ी. बाद में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी से पायलट बनकर निकलीं और फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
आशा बनी नेशनल फुटबॉलर
गोमो की इंटरनेशनल फुटबॉलर आशा के पिता डीलू महतो का निधन उस समय हो गया, जब वह बहुत छोटी थी. मां पुटकी देवी सब्जी बेचती हैं. भाई बिनोद महतो लाइट व टेंट का काम करते हैं. छोटी बहन ललिता भी नेशनल फुटबॉलर हैं. आशा वर्ष 2018 में अंडर-18 में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानने की जिद ने दोनों बहनों को यहां तक पहुंचाया. आज भी दोनों मां और भाई की मदद करती हैं. बताती हैं कि शुरुआती दिनों में काफी दिक्कत हुई, पर मां व भाई की मदद के साथ ही पुराने बॉल से खेलना शुरू किया, फिर राह बनती गयी और आज इस मुकाम पर हैं. कहती हैं कि ठान लें तो कुछ भी मुश्किल नहीं.
दिहाड़ी मजदूर की फुटबॉलर बेटी रिंकी-रीना
लक्ष्मीपुर गांव की रिंकी सोरेन तथा रीना सोरेन सगी बहने हैं. माता शांति देवी, पिता नुनूलाल सोरेन तथा भाई रवि सोरेन दिहाड़ी मजदूर हैं. घर की माली हालत बहुत ही खराब है. रिंकी ने स्नातक तक की पढ़ाई की है, जबकि रीना 11वीं की छात्रा हैं. दोनों बहनें वर्ष 2008 से फुटबॉल खेल रही हैं. 58वां नेशनल स्कूल गेम्स 2012-2013 में खेल चुकी हैं. आज तक ना नौकरी मिली और ना ही कोई सुविधा, पर निराश नहीं हैं, कहती हैं कि हार नहीं मानेंगे. एक दिन दुनिया मानेगी लोहा.
धनबाद के बेटे गौरव के स्टार्टअप को 700 करोड़ की फंडिंग
ध नबाद में हाउसिंग कॉलोनी के गौरव श्रीवास्तव युवाओं के आइकॉन हैं. उनका स्टार्टअप लॉजिस्टिक की ट्रैकिंग करने वाली दुनिया की बड़ी कंपनियों में गिना जाता है. उनके स्टार्टअप फारआइ की मदद से कई ई-कॉमर्स कंपनियां अपने उत्पाद को ग्राहकों तक पहुंचाती हैं. आज 30 से अधिक देशों में उनका कार्यालय है. दुनिया में उनकी कंपनी 150 ई-कॉमर्स कंपनियों को मदद रह रही है. उनकी कंपनी का मुख्यालय अमेरिका के शिकागो शहर में है. अब तक उनकी कंपनी को 700 करोड़ रुपये से अधिक की फंडिंग मिल चुकी है. गौरव के पिता आइआइटी आइएसएम के सेवानिवृत प्रोफेसर हैं.
शाहबाज नदीम : क्लब क्रिकेट से लेकर टेस्ट तक का सफर
क्रिकेटर शाहबाज नदीम ने पूरे देश में धनबाद का नाम रोशन किया है. पिछले डेढ़ दशक से ज्यादा समय से झारखंड के लिए खेलते आ रहे नदीम भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बने और कई मैच खेले. भारतीय अंडर- 19 टीम में खेल चुके नदीम वर्तमान में झारखंड और आइपीएल में खेलते हैं. इंडियन प्रीमियर लीग के 2011 के सीजन में दिल्ली डेयरडेविल्स की टीम से डेब्यू किया. दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ रांची में हुए तीसरे टेस्ट मैच 19 अक्टूबर 2019 में में शामिल हुए. नदीम कहते हैं कि लगे रहनेवाले की कभी हार नहीं होती.
सिद्धार्थ सेन : बेरमो से निकल मायानगरी तक परचम लहराया
बेरमो जैसे छोटे शहर से निकल कर मायानगरी मुंबई में एक सफल युवा निर्देशक के तौर पर सिद्धार्थ सेन अपनी पहचान बना चुके हैं. 16 साल पूर्व मुंबई गये सिद्धार्थ ने वर्ष 2016 से ऐड फिल्मों का काम शुरू किया. अब तक दर्जनों ऐड फिल्मे निर्देशित कर चुके हैं. सिद्धार्थ ने सातवीं तक की पढ़ाई कार्मेल स्कूल करगली और दसवीं डीएवी ढोरी से की. दिल्ली से बैचलर डिग्री की पढ़ाई की. इसी दौरान दिवाकर बनर्जी निर्देशित फिल्म ओय लकी लकी ओय में रिसर्चर का काम किया. इसके बाद वह मुंबई शिफ्ट हो गये. सिद्धार्थ ने अग्निपथ, बुधिया सिंह समेत 10 फिल्मों में बतौर सहायक निर्देशक काम किया.
दिव्यांगता आड़े नहीं आयी आकाश ने अपने नाम किया गोल्ड
गिरिडीह के आकाश सिंह ने दिव्यांगता को आड़े नहीं आने दी और नेशनल पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल अपने नाम कर ली. दिव्यांग क्रिकेट के स्टार आकाश ने 2021 में भुवनेश्वर में आयोजित नेशनल बैडमिंटन ओलंपिक चैंपियनशिप में प्रभावित किया था. आकाश कहते हैं कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत और वह हारने में विश्वास नहीं रखते.
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परेशानी भी नहीं रोक पा रही ललिता की राह
लक्ष्मीपुर गांव (गोमो) की फुटबॉलर ललिता 58वां नेशनल स्कूल गेम्स 2012-13, पांचवां नेशनल लेवल रूरल टूर्नामेंट-2013 तथा ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन 2018-19 में भाग ले चुकी हैं. चार वर्ष पहले कैंसर के कारण पिता दिनेश्वर महतो का निधन हो गया. मां लोचनी देवी गोमो मार्केट में सब्जी बेचकर पांच बहनों को पाल रही हैं. पिछले दो माह से मां के घुटनाें में दर्द है. इस कारण अब वह सब्जी बेचने भी नहीं जाती हैं. दाल-रोटी मां के विधवा पेंशन व राशन में मिल रहे अनाज के भरोसे चल रही है. तमाम परेशानियों के बाद भी ललिता का प्रैक्टिस नहीं रुका है. वह कहती हैं कि देखना है मुसीबतें जीतती हैं या हौसला.
इनपुट : धनबाद से अशोक कुमार, नीरज अंबष्ट, गोमो से बेंक्टेश शर्मा, गिरिडीह से मृणाल कुमार व बेरमो से राकेश वर्मा.