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खरसावां-कुचाई के ग्रामीणों के जीवन में मिठास ला रही इमली, सैकड़ों ग्रामीणों को मिल रहा रोजगार

खरसावां-कुचाई क्षेत्र में इमली के बंफर उत्पादन से लोगों के जीवन में मिठास आयी है. इससे सैकड़ों लोगों को स्वरोजगार मिल रहा है. इस क्षेत्र के हर गांव में इमली के दो-चार पेड़ लगे हैं. एक इमली के पेड़ से करीब तीन से चार क्विंटल इमली का उत्पादन हो रहा है.

Jharkhand news: खरसावां-कुचाई के ग्रामीण क्षेत्रों में इमली लोगों के जीवन में मिठास ला रही है. इस साल इमली का बंफर उत्पादन हुआ है. ऐसे में काफी संख्या में ग्रामीण इमली चुनकर हाट-बाजारों में बेच रहे हैं. इससे गांव-कस्बों के लोगों को अच्छा-खासी स्वरोजगार मिल रहा है. इमली को वनोपज की श्रेणी में रखा गया है. इमली काफी संख्या में लोगों को रोजगार दे रही है. खरसावां-कुचाई में हर साल लगभग एक हजार मीट्रिक टन इमली का उत्पादन होता है. इमली तोड़ने से लेकर उसकी कुटाई और बिक्री तक में कई परिवारों को रोजगार मिलता है.

साल के चार महीने इमली देती है रोजगार

खरसावां-कुचाई के हर गांव में इमली के दो-चार पेड़ हैं. इस वनोत्पाद के जरिए साल के चार महीने लोगों को रोजगार मिल पाता है. एक इमली के पेड़ से तीन से चार क्विंटल इमली निकलती है. इमली का कारोबार यहां की अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण है.

सैकड़ों लोग इमली के कारोबार से जुड़े हैं

खरसावां-कुचाई के ग्रामीण क्षेत्रों में फरवरी माह से लेकर जून माह तक इमली का कारोबार काफी ज्यादा होता है. इमली तोड़ने से लेकर उसे बेचने तक में काफी संख्या में लोग जुड़े हैं. इन लोगों को इमली के जरीए अच्छा-खासा रोजगार मिल रहा है. कई परिवार तो ऐसे हैं, जो इमली बेचकर ही अपनी जरूरतों को पूरा कर पाते हैं. सरकारी स्तर पर इमली का प्रोसेसिंग प्लांट लगाने की आवश्यकता है.

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बाजार में सरकारी मूल्य से कम में बेचना मजबूरी

पिछले वर्ष ही जनजातीय कार्य मंत्रालय ने झारखंड में उत्पादित होने वाली लघु वन उपज के न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price- MSP) में वृद्धि की है. वर्ष 2020 तक इमली का न्यूनतम समर्थन मूल्य 31 रुपया था. पिछले वर्ष केंद्र सरकार ने इसका MSP बढ़ाकर 36 रुपये किया है. क्षेत्र के हाट बाजारों में फिलहाल इमली की कीमत 28-30 रुपये प्रति किलो है. इसका प्रमुख कारण क्षेत्र में सरकारी स्तर पर इमली की खरीदारी नहीं होना है.

देशभर में भेजी जाती है खरसावां-कुचाई का इमली

यहां इमली के कारोबार के माध्यम से आत्मनिर्भर झारखंड को एक पहचान मिल सकती है. खासकर ऐसे उद्योगों की स्थापना करनी होगी, जिससे इमली से जुड़े उत्पाद तैयार किए जा सकें. जिसमें सॉस, जैम, चटनी, सहित कई उत्पाद तैयार हो सकते हैं. खरसावां-कुचाई क्षेत्र से उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलांगाना, तमिलनाडु आदि क्षेत्रों में इमली भेजी जाती है. इमली से संबंधित उद्योगों की स्थापना से यहां की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सकती है.

क्या कहते हैं इमली के कारोबार से जुड़े लोग

कुचाई के मनोज सोय ने कहा कि खरसावां एवं कुचाई में हर साल लगभग एक हजार मीट्रिक टन इमली का उत्पादन होता है. इमली तोड़ने से लेकर उसकी कुटाई और बिक्री तक में कई परिवारों को रोजगार मिलता है. वहीं, खरसावां के सिंगराय तियु ने कहा कि एक इमली के पेड़ से तीन से चार क्विंटल इमली निकलती है. इससे गांव के लोगों को कुछ रोजगार मिल जाता है. इमली की खेती को बढ़ावा मिला, तो लोगों का रोजगार भी बढ़ेगा. इसके अलावा खरसावां के सूरज मंडल ने कहा कि क्षेत्र में हाट-बाजार में इमली 28 से 30 रुपये प्रति किलो के दर से बिक्री हो रही है. सरकारी स्तर पर इमली की खरीदारी होने पर ग्रामीणों को सही दाम मिल सकेगा.

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रिपोर्ट : शचिंद्र कुमार दाश, खरसावां.

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