Teja Dashami 2022: क्यों मनाई जाती है तेजा दशमी, कौन थे तेजाजी महाराज, जानें क्या है लोक कथा

Teja Dashami 2022: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तेजा दशमी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को तेजाजी महराज की पूजा की जाती है. इस साल 5 सितंबर को तेजा दशमी मनाई जा रही है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 5, 2022 11:58 AM

Teja Dashami 2022: भारत के कई इलाकों में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन तेजा दशमी मनाया जाता है. तेजा दशमी मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. यह पर्व श्रद्धा, आस्था और विश्वास का प्रतीक बताया जाता है. इस बार यह पर्व (5 सितंबर) सोमवार को यानी आज मनाया जा रहा है.

तेजादशमी की बात करें तो इस पर्व में भाद्रपद शुक्ल नवमी की पूरी रात रातीजगा किया जाता है. इसके बाद दूसरे दिन यानी दशमी तिथि को जिन-जिन स्थानों पर वीर तेजाजी के मंदिर हैं, वहां मेले लगाने की परंपरा है. इस दिन मेले और तेजा जी महाराज की सवारी के रूप में जगह-जगह शोभायात्राएं निकालते लोग नजर आते हैं.

इसके पीछे की क्या है कथा(Teja Dashmi Katha)

दंतकथाओं और मान्यताओं के साथ-साथ यदि इतिहास पर नजर डालें तो वीर तेजाजी का जन्म विक्रम संवत 1130 माघ शुक्ल चतुर्दशी (गुरुवार 29 जनवरी 1074) के दिन खरनाल में हुआ था. नागौर जिले के खरनाल के प्रमुख कुंवर ताहड़जी के वे बेटे थे. माता का नाम राम कंवर था. दंतकथाओं में अब तक जो जानकारी दर्ज थी उसके अनुसार तेजाजी का जन्म माघ सुदी चतुर्दशी को 1130 में हुआ था जबकि ऐसा नहीं है. तेजाजी का जन्म विक्रम संवत 1243 के माघ सुदी चौदस को हुआ था.

तेजाजी के जन्म की कहानी

वहीं, दंतकथाओं में तेजाजी की वीर गति का साल 1160 दर्ज है. जबकि सच्चाई इसके दलट है. तेजाजी को 1292 में वीर गति अजमेर के पनेर के पास सुरसुरा में प्राप्त हुई थी. हालांकि तिथि भादवा की दशम ही है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव की उपासना और नाग देवता की कृपा से ही वीर तेजाजी जन्मे थे. जाट घराने में जन्मे तेजाजी को जाति व्यवस्था का विरोधी भी बताया जाता है.

बचपन में हुआ था तेजाजी का जन्म

बताया जाता है कि वीर तेजाजी का विवाह उनके बचपन में ही हो गया था. पनेर गांव की रायमलजी की बेटी पेमल से उनकी शादी हुई थी. पेमल के मामा इस रिश्ते के खिलाफ थे. उन्होंने ईर्ष्या में तेजा के पिता ताहड़जी पर हमला कर दिया. ताहड़जी को बचाव के लिए तलवार चलानी पड़ी, जिससे पेमल के मामा की मौत हो गई. इस बात से पेमल की मां आहत थी. इस रिश्ते की बात तेजाजी से छिपा ली गई.

तेजाजी ने सांप को दिया था वचन

बहुत बाद में तेजाजी को अपनी पत्नी के बारे में पता चला तो वह अपनी पत्नी को लेने ससुराल गए. वहां ससुराल में उनकी अवज्ञा की गई जिससे वे नाराज हो गये. जब तेजाजी लौटने लगे तब पेमल की सहेली लाछा गूजरी के यहां वह अपनी पत्नी से मिले, लेकिन उसी रात मीणा लुटेरे लाछा की गाएं चुरा ले गए. वीर तेजाजी गाएं छुड़ाने का प्रयास करने लगे. रास्ते में आग में जलता सांप मिला जिसे तेजाजी ने बचाया, लेकिन सांप अपना जोड़ा बिछड़ने से दुखी था. उसने डंसने के लिए फुंफकार लगाई. वीर तेजाजी ने वचन दिया कि पहले मैं लाछा की गाएं छुड़ा लाऊं फिर मुझे डंस लेना. मीणा लुटेरों से युद्ध में तेजाजी गंभीर रूप से घायल हो गए. घायलावस्था में भी वह सांप के बिल के पास आये.

ग्राम देवता के रूप में पूजे जाते हैं तेजाजी

ऐसा माना जाता है कि पूरा शरीर घायल होने के कारण तेजाजी ने अपनी जीभ पर डंसवाया. भाद्रपद शुक्ल (10) दशमी संवत् 1160 (28 अगस्त 1103) को उनका निर्वाण हो गया. यह देख पेमल सती हो गई. इसी के बाद से राजस्थान के लोकरंग में तेजाजी की मान्यता की बात कही गई है. गायों की रक्षा के कारण उन्हें ग्राम देवता के रूप में लोग पूजते हैं. नाग ने भी उन्हें वरदान दिया था. उस दिन से तेजादशमी पर्व मनाने की परंपरा लोगों ने अपनाई

तेजाजी महराज के संतान

दंत कथाओं पर गौर करें तो इसमें तेजाजी के चार से पांच भाई का जिक्र मिलता है. जबकि वंशावली के अनुसार तेजाजी तेहड़जी के एक ही पुत्र थे तथा तीन पुत्रियां कल्याणी, बुंगरी व राजल थी. तेजाजी के पिता तेहड़जी के कहड़जी, कल्याणजी, देवसी, दोसोजी चार भाई थे. जिनमें देवसी की संतानों से आगे धोलिया गौत्र की बात कही गई है. धोलिया वंश की उत्पति खरनाल से ही हुई थी. इसके बाद वि.सं. 1650 में कुछ लोग गांव छोड़कर दूसरी जगहों पर जाकर बस गए जिससे राज्य भर में धोलिया जाति फैलती चली गई.

नोट : उपरोक्त लेख सिर्फ आपकी जानकारी के लिए है. जो परंपरा सदियों से चली आ रही है केवल उसी संबंध में उक्त बातें कही गई है.

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