दुनिया भर में इलेक्ट्रिक वाहनों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इन गाड़ियों में आग लगने की घटनाएं भी सामने आ रही हैं. हाल ही में क्रिसमस की रात को अमेरिका के अलबामा में एक टेस्ला मॉडल Y में आग लग गई, जिससे हाईवे को बंद करना पड़ा. आग बुझाने में दमकल विभाग को एक घंटे से ज्यादा का समय लगा और 1,36,000 लीटर पानी खर्च करना पड़ा.
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आखिर क्यों मुश्किल होता है इलेक्ट्रिक वाहनों की आग बुझाना?
पेट्रोल या डीजल से चलने वाली गाड़ियों की आग बुझाने के लिए पानी का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इलेक्ट्रिक वाहनों में लगी आग को बुझाना इतना आसान नहीं होता. दरअसल, इलेक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल होने वाली लिथियम-आयन बैटरियों में आग लगने पर एक खास तरह की रिएक्शन होती है, जिसे “थर्मल रनअवे” कहते हैं. इसमें एक बैटरी सेल में आग लगने से आसपास की बैटरी सेल भी गर्म हो जाती हैं और उनमें भी आग लग जाती है. यहां तक कि आग बुझाने के बाद भी बैटरी इतनी गर्म हो सकती है कि वह कुछ मिनट या घंटों बाद फिर से आग पकड़ ले.
इसलिए, इलेक्ट्रिक वाहनों की आग बुझाने के लिए पानी का इस्तेमाल करना कारगर नहीं होता है. इसके लिए विशेष प्रकार के रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है, जो बैटरी के तापमान को कम करके थर्मल रनअवे को रोकते हैं.
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इस समस्या का समाधान क्या है?
इलेक्ट्रिक वाहनों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए कई तरह के शोध किए जा रहे हैं. इनमें से एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है सॉलिड-स्टेट बैटरी का विकास. ये बैटरियां लिथियम-आयन बैटरियों से अलग हैं, क्योंकि इनमें तरल इलेक्ट्रोलाइट के बजाय ठोस इलेक्ट्रोलाइट का इस्तेमाल किया जाता है. ठोस इलेक्ट्रोलाइट आग पकड़ने वाला नहीं होता है, इसलिए सॉलिड-स्टेट बैटरियों में आग लगने का खतरा काफी कम होता है.
हालांकि, सॉलिड-स्टेट बैटरी टेक्नोलॉजी अभी शुरुआती दौर में है और इन बैटरियों को बनाने में अभी काफी समय लगेगा. लेकिन भविष्य में इलेक्ट्रिक वाहनों की सुरक्षा बढ़ाने में सॉलिड-स्टेट बैटरियों की अहम भूमिका होगी.
इसके अलावा, इलेक्ट्रिक वाहनों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए कुछ और उपाय किए जा सकते हैं, जैसे:
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बैटरी पैक को गाड़ी के ऐसे हिस्से में रखना जहां टक्कर या क्षतिग्रस्त होने का खतरा कम हो.
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बैटरी पैक के आसपास अतिरिक्त सुरक्षा फीचर्स लगाना, जैसे कि हीट शील्ड और आग बुझाने वाले उपकरण.
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बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम में सुधार करना, ताकि बैटरी के तापमान और वोल्टेज की लगातार निगरानी हो सके और किसी भी खतरे का पता चलते ही कार्रवाई की जा सके.
उम्मीद है कि इन प्रयासों से इलेक्ट्रिक वाहनों की सुरक्षा बढ़ेगी और लोग इन्हें बिना किसी चिंता के इस्तेमाल कर सकेंगे.
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