साहिबगंज : हूल क्रांति के महानायक वीर शहीद सिदो कान्हू (Sido Kanhu) की 197वीं जयंती कोविड-19 गाइडलाइन का पालन करते हुए सादगी के साथ मनाया गया. सिदो कान्हू ने आदिवासी तथा गैर आदिवासियों को अंग्रेज व महाजनों के अत्याचार से आजाद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. रविवार को सर्वप्रथम सिदो कान्हू के वंशज परिवार ने बरहेट प्रखंड के पंचकठिया स्तिथ शहीद स्थल व भोगनाडीह स्थित सिदो कान्हू का पैतृक आवास व सिदो कान्हू पार्क में विधिवत पूजा अर्चना करके उनकी सहादत को नमन किया. उसके बाद अन्य सभी लोग माल्यार्पण व पूजा पाठ किये.
पंचकटिया स्थित क्रांति स्थल पर भी शहीद के वंशज परिवार ने सबसे पहले विधिवत पूजा अर्चना की, उसके बाद डीसी सहित अन्य ने विधिवत पूजन व माल्यार्पण किया. इसके बाद भोगनाडीह पहुंचकर सिदो कान्हू, चांद भैरव, फूलो झानो की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके उनके सहादत को नमन किया और शहीद सिदो कान्हू के वंशजों से मुलाकात करके उन्हें अंग वस्त्र भेंट किया.
डीसी रामनिवास यादव ने ग्राम प्रधान तथा ग्रामीणों से मुलाकात करते हुए उनकी समस्याएं सुनी. ग्रामीणों से राशन की पहुंच तथा अन्य चीजों उपलब्धता के बारे में जानकारी ली तथा कोरोना वायरस संक्रमण के प्रति सभी को जागरूक किया और ग्रामीणों से कहा कि जिस प्रकार जिले में कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है. अधिक बचाव की जरूरत है. इसलिए सभी एक दूसरे का सहयोग करते हुए मास्क का उपयोग करें, सोशल डिस्टेंसिंग रखें एवं कहीं भी भीड़भाड़ वाले स्थानों पर न जाए.
ग्राम प्रधान से कहा कि वह कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव हेतु लोगों को अपने स्तर से जागरूक करें. वहीं जिले सहित आस पास व अन्य प्रदेशों के लोग अपने इलाकों में हूल के महानायक को याद करके उनकी जयंती मना रहे हैं. पारंपरिक तरीके से पूजन करके जयंती मना रहे हैं. 1855 में सिदो कान्हो ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. कोविड-19 को देखते हुए हमलोग सादगी से जयंती मना रहे हैं. बरसों की परंपरा के अनुसार सिदो कान्हू का जयंती 11 अप्रैल व 30 जून हूल दिवस पर सिदो कान्हू के वंशज ही सर्वप्रथम पूजा अर्चना करते हैं. इसके बाद ही अन्य व्यक्ति, जिला प्रशासन या किसी राजनीति पार्टी के लोग माल्यार्पण करते हैं.
1855 में सिदो-कान्हो ने संथाल से फूंका था आजादी का बिगुल, तोपों व गोलियों के सामने तीर-धनुष से ही अंग्रेजों को सिदो कान्हू, चांद भैरव, फूलो झानो ने पिला दिया था. इतिहास के पन्नों को पलटें तो आजादी के लिए पहला बिगुल फूंकने का जिक्र 1857 में मिलता है. लेकिन इससे दो वर्ष पूर्व ही झारखंड में संथाल ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी की जंग छेड़ दी थी. संथाल ने नारा दिया था ‘करो या मरो, अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो’ और नारा देने वाले थे वीर शहीद सिदो-कान्हो.
अंग्रेजों के खिलाफ जिस तरह सिदो-कान्हो, चांद भैरव, फूलो झानो ने मोर्चा खोला था और उसके छक्के छुड़ा दिये थे उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिला सहित आस पास व अन्य प्रदेशों के लोग इन्हें भगवान की तरह पूजते हैं. आदिवासियों और गैर-आदिवासियों को महाजनों और अंग्रेजों के अत्याचार से मुक्ति दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. मौके पर अपर समाहर्ता अनुज कुमार प्रसाद, अनुमंडल पदाधिकारी साहिबगंज पंकज कुमार साव, जिला शिक्षा पदाधिकारी मिथिलेश झा, कार्यपालक दंडाधिकारी संजय कुमार, प्रखंड विकास पदाधिकारी बरहेट सोमनाथ बनर्जी, सिदो कान्हू के छठे वंशज मण्डल मुर्मू, गांव के ग्राम प्रधान मुखिया एवं अन्य उपस्थित थे.
Posted By: Amlesh nandan.