Jharkhand news: लातेहार शहर के रेलवे स्टेशन रोड स्थित चटनाही मुहल्ला से जवाहर नवोदय विद्यालय और कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय समेत दर्जनों राजस्व गांव को जोड़ने वाली औरंगा नदी पुल का अस्तित्व खतरे में आ गया है. पुल के आसपास से अवैध बालू का उठाव किये जाने से पुल के पिलर का कैप सतह से ऊपर आ गया है.
जानकार बताते हैं कि पुल के पिलर कैप को बालू या जमीन के नीचे होना चाहिए, तभी पुल की मजबूती बनी रहती है. लेकिन, औरंगा नदी के आसपास नियमित बालू का उठाव होने के कारण पुल के पिलर के कैप बालू से काफी ऊपर आ गया है. इस कारण पुल के ध्वस्त होने की आशंका बढ़ गयी है. हर दिन सुबह 4-5 बजे रात के अंधेरे में ही औरंगा नदी पुल के आसपास से बालू का उठाव ट्रैक्टर मालिकों द्वारा किया जाता है. यही कारण है कि पुल के ऊपर चारों ओर बालू पसरा रहता है.
प्रावधानों के मुताबिक, किसी भी पुल के 50 मीटर की परिधि में बालू का उठाव नहीं करना है. ऐसा करते पाये जाने पर कानूनी कार्रवाई की जाती है. बावजूद इसके औरंगा नदी पुल के पास से अवैध ढंग से बालू का उठाव हर दिन किया जा रहा है. हालांकि, जिला खनन विभाग द्वारा अवैध बालू उठाव रोकने के लिए छापामारी की जाती है, लेकिन रात के अंधेरे में ही ट्रैक्टरों से बालू की अवैध ढुलाई कर ली जाती है.
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इस संबंध में पूछे जाने पर ग्रामीण कार्य विभाग के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर दीपक कुमार ने बताया कि किसी भी पुल को सुरक्षित रखने में उनके स्तंभों का महत्वपूर्ण योगदान होता है. स्तंभ कैप पर ही टिके होते हैं. कैप को बालू के नीचे होना चाहिए. अन्यथा पुल की मजबूती प्रभावित हो सकती है.
वर्ष 2014-15 में औरंगा नदी पुल का दो स्तंभ नीचे की ओर धंस गया था. स्तंभ के धंसने से पुल के स्लैब भी धंस गये थे. इसके बाद यहां तकरीबन दो महीने तक वाहनों का आवागमन बंद था. बाद में इंजीनियर्स की टीम ने आधुनिक उपकरणों से इसे दुरूस्त किया था.
वर्ष 2002-03 में इस बहुप्रतिक्षित औरंगा नदी पुल का निर्माण कराया गया था. उस समय पुल की प्राक्कलित राशि एक करोड़ 60 लाख रुपये थी. कार्यकारी एजेंसी विशेष प्रमंडल के द्वारा इस पुल का निर्माण कराया गया था. इस पुल के निर्माण में तत्कालीन डीसी कमल किशोर सोन का अहम योगदान था.
मालूम हो कि इस पुल के निर्माण की मांग वर्षों से की जा रही थी. पुल नहीं होने के कारण खासकर जवाहर नवोदय विद्यालय के शिक्षक एवं छात्र-छात्राओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. बरसात के दिनों में लोगों को भाया बाजकुम व रेलवे स्टेशन होते हुए तकरीबन 10 किलोमीटर की अतिरिक्त यात्रा कर लातेहार पहुंचना पड़ता था.
रिपोर्ट : आशीष टैगोर, लातेहार.