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संवाद से ही बुझेगी मणिपुर में हिंसा की आग

ऐसी विषम परिस्थिति कभी असम में पैदा हुई थी. बोडो संगठन अलग बोडो राज्य की मांग के लिए आंदोलन कर रहे थे. व्यापक हिंसा हुई थी. लंबे आंदोलन के बाद असम के बोडो बहुल इलाके के लिए अलग प्रशासन क्षेत्र का गठन किया गया. उसके बाद हिंसा थम गयी. इसे लेकर असम में अन्य हिस्से में ज्यादा विरोध नहीं हुआ था.

रवि शंकर रवि

मणिपुर एक ऐसी जगह पर खड़ा है, जहां से सुलह का कोई सूत्र नजर नहीं आ रहा है. सुरक्षाबलों की भारी मौजूदगी के बावजूद एक महीने से ज्यादा समय से हिंसा जारी है. मैतेई और कुकी समुदाय के बीच अविश्‍वास की खाई इतनी गहरी हो गयी है कि आपसी संवाद की कोई संभावना नहीं दिख रही है. कुकी संगठनों का आरोप है कि राज्य सरकार के संरक्षण में कुछ सशस्त्र समूह कुकी नागरिकों पर हमले कर रहे हैं, जबकि मैतेई संगठनों का आरोप है कि कुकी संगठन अपने उग्रवादी समूहों की मदद से पहाड़ी जिले में बसे मैतेई नागरिकों पर हमले कर रहे हैं.

हिंसा को रोकने और आपसी बातचीत का सूत्र तलाशने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तीन दिनों तक मणिपुर में रहे तथा दोनों समुदायों के प्रतिनिधियों से बात की. समस्या के स्थायी समाधान के लिए उन्होंने राज्यपाल की अगुवाई में एक शांति समिति के गठन का प्रस्ताव दिया था. लेकिन, कुकी संगठनों ने समिति में मुख्यमंत्री वीरेन सिंह को शामिल करने के विरोध में इसका बहिष्कार कर दिया है. भाजपा के कुकी विधायक ही मुख्यमंत्री पर कुकी विरोधी होने का आरोप लगा रहे हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोगों का आरोप है कि मणिपुर हिंसा के पीछे चर्च का हाथ है और हिंदू मैतेई समुदाय को अल्पसंख्यक बनाने की साजिश चल रही है.

इंफाल घाटी में बुधवार को जहां नौ लोगों की मौत हुई, वहीं इससे पहले एंबुलेंस में तीन लोगों को जिंदा जलाने की एक घटना हुई जिससे अंदाजा मिलता है कि हालात कितने खतरनाक हो गये हैं. हमला दो हजार की भीड़ ने किया और मृतकों में एक घायल बालक और उसकी मां भी शामिल थी. इससे पूर्व पूर्वोत्तर में उग्रवादी समूहों ने कभी किसी बच्चे या महिला पर जान-बूझकर हमला नहीं किया है. लेकिन मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जारी हिंसा ने सारी हदें पार कर दी हैं. अब तो मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता के समक्ष एक नया खतरा पैदा हो गया है. अब तक नगा बागी संगठन मणिपुर के चार पहाड़ी जिलों को ग्रेटर नगालैंड में शामिल करने की मांग करते रहे हैं. लेकिन, अब कुकी विधायक और संगठन कुकी बहुल पहाड़ी जिलों को मिजोरम में शामिल करने की मांग करने लगे हैं.

भाजपा के कुकी विधायक कुकी बहुल पहाड़ी जिले के लिए अलग प्रशासनिक तंत्र बनाने की मांग पहले से ही कर रहे हैं. लेकिन अब तो उन जिलों को मिजोरम में शामिल करने की मांग शुरू हो गयी है. मणिपुर के एक हिस्से को मिजोरम में शामिल करने का प्रस्ताव इस राज्य की क्षेत्रीय अखंडता के लिए नया खतरा बन गया है. यह सच है कि कुकी बहुल इलाके की सीमा पड़ोसी राज्य मिजोरम से सटती है. हिंसा के दौरान बहुत सारे कुकी लोगों ने मिजोरम की सीमा में शरण ली हुई है. उनके लिए मिजोरम में राहत शिविर बनाये गये हैं और शिविरों के संचालन के लिए मिजोरम सरकार ने एक समिति का गठन कर दिया है. ज्यादातर कुकी विधायक राज्य के बाहर जाने के लिए मिजोरम-असम के रास्ते का उपयोग कर रहे हैं. वे मिजोरम की राजधानी आइजल के एयरपोर्ट का उपयोग कर रहे हैं. उनके प्रति मिजोरम सरकार की सहानुभूति भी है.

कुकी विधायक पी हाओकिप का कहना है कि चाहे उनके लिए एक अलग प्रशासन तंत्र का गठन हो या मिजोरम में शामिल करके मणिपुर के कुकी बहुल इलाके लिए एक स्वायत्त परिषद का गठन कर दिया जाए. मणिपुर में दस कुकी विधायक हैं. इनमें ज्यादातर भाजपा के सदस्य हैं. मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता के लिए यह बिल्कुल नया संकट है. इसके पहले मणिपुर को एक हिस्से को मिजोरम में शामिल करने की मांग नहीं उठी थी. इस मांग से मैतेई और कुकी समुदायों के बीच दूरी बढ़ेगी. मैतेई किसी भी कीमत पर मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता के साथ समझौते को स्वीकार करने को तैयार नहीं है.

इस बात को मैतेई संगठनों तथा राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त संगठनों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इंफाल दौरे के दौरान स्पष्ट कर दिया था. इससे पहले भी एक बार नगा बागियों के साथ जारी संघर्ष विराम की सीमा को मणिपुर के चार पहाड़ी जिलों तक बढ़ाने देने के खिलाफ इंफाल घाटी में व्यापक हिंसा हुई थी. उत्तेजित लोगों ने मणिपुर विधानसभा समेत कई महत्वपूर्ण भवनों को आग के हवाले कर दिया था. यह भी आरोप लगते रहे हैं कि म्यांमार से आकर बसे अवैध नागरिक भी इसे बढ़ावा दे रहे हैं. संघर्ष विराम में शामिल कुकी संगठनों की सक्रियता बढ़ गयी है.

ऐसी विषम परिस्थिति कभी असम में पैदा हुई थी. बोडो संगठन अलग बोडो राज्य की मांग के लिए आंदोलन कर रहे थे. व्यापक हिंसा हुई थी. लंबे आंदोलन के बाद असम के बोडो बहुल इलाके के लिए अलग प्रशासन क्षेत्र का गठन किया गया. उसके बाद हिंसा थम गयी. इसे लेकर असम में अन्य हिस्से में ज्यादा विरोध नहीं हुआ था. लेकिन मणिपुर की स्थिति इससे इतर है. ऐसे में मैतेई और कुकी संगठनों से संवाद जारी रखने और स्थिति सामान्य होने तक सुरक्षाबलों की पर्याप्त मौजूदगी के अलावा और कोई विकल्प नहीं है.

(लेखक दैनिक पूर्वोदय के संपादक हैं.)

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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