The Girl On The Train Review: मनोरजंन की पटरी से उतर गयी है ‘द गर्ल ऑन द ट्रेन’, पढ़ें पूरा रिव्यू
फ़िल्म- द गर्ल ऑन द ट्रेन प्लेटफार्म-नेटफ्लिक्स निर्देशक- रिभु सेनगुप्ता कलाकार- परिणीति चोपड़ा, अदिति राव हैदरी, कृति कुल्हारी,अविनाश तिवारी और अन्य रेटिंग- दो
फ़िल्म- द गर्ल ऑन द ट्रेन
प्लेटफार्म-नेटफ्लिक्स
निर्देशक- रिभु सेनगुप्ता
कलाकार- परिणीति चोपड़ा, अदिति राव हैदरी, कृति कुल्हारी,अविनाश तिवारी और अन्य
रेटिंग- दो
The Girl On The Train Review: यह फ़िल्म पाउला हॉकिन्स की बेस्ट सेलिंग नावेल द गर्ल ऑन द ट्रेन पर आधारित है. इस पर एक सुपरहिट हॉलीवुड फ़िल्म 2016 में बन चुकी है. इसी किताब से निर्देशक रिभु की इस हिंदी फ़िल्म का भी प्लाट लिया गया है. फ़िल्म का यह देशी वर्जन भी विदेशी सरजमीं पर है. सिर्फ एक्टर्स देशी हैं जबकि निर्देशक देशी सरजमीं पर इस कहानी के प्लांट कर बहुत कुछ नया कर सकते थे. खैर जो नहीं हुआ है उसके बजाय बात करते हैं कि फ़िल्म में जो कुछ हुआ है.
फ़िल्म की कहानी मीरा कपूर( परिणीति चोपड़ा)की है.जो बहुत ही निडर वकील है. एक कार एक्सीडेंट में वह अपने गर्भस्थ शिशु को खो देती है. वह इस घटना से इतनी टूट गयी है कि उसे नशे की लत लग गयी है और नशे में वह कभी भी हिंसक हो जाती है. एमनेसिया की बीमारी भी हो गयी है. जिसके वजह से वह कई चीजों को भूल जाती है. इस सबसे परेशान हो उसके पति शेखर (अविनाश) ने उससे तलाक ले लिया है. कहानी कुछ महीने के लिए आगे बढ़ चुकी है.
नशे में धुत मीरा हर दिन ट्रेन से सफर करती है ताकि वह अपने पुराने घर को देख सकें, जिसमें वह तलाक से पहले अपने पति के साथ खुशहाल ज़िन्दगी जी रही थी. इसी ट्रेन की जर्नी में वह एक दूसरे घर और उसमें रह रही नुशरत(अदिति)को देखती है. उसे लगता है कि नुशरत वह ज़िन्दगी जी रही है जैसी उसे हमेशा से चाह थी. इसी बीच नुसरत का मर्डर हो जाता है और शक के दायरे में मीरा आ जाती है. मीरा का नुसरत के मर्डर से क्या कनेक्शन है. क्या मीरा ने मर्डर किया है या कहानी कुछ और है. इन सवालों के जवाब फ़िल्म की आगे की कहानी देती है.
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फ़िल्म की शुरुआत बहुत धीमी है. लगभग एक घंटे के बाद फ़िल्म रफ्तार पकड़ती है. फ़िल्म की कहानी गोल गोल है. कभी कोई दृश्य चल रहा है तो कभी कोई और फ़िल्म के अंत में सभी का जवाब मिल जाता है. लेकिन तब तक जवाब जानने की आपकी रुचि खत्म हो चुकी होती है. फ़िल्म का क्लाइमेक्स थोपा हुआ लगता है,जो इस कमज़ोर फ़िल्म को और कमज़ोर बना गया है.फ़िल्म में ना सस्पेन्स है ना ही थ्रिलर यह कहना गलत ना होगा.
अभिनय की बात करें तो परिणीति चोपड़ा इस फ़िल्म में अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकली है लेकिन वह अपने किरदार की परेशानी, बेचैनी और दर्द को प्रभावी ढंग से परदे पर उतार नहीं है. बस गहरे काजल से घिरी आंखें पूरी फिल्म में नज़र आईं है. कृति कुल्हारी ने फ़िल्म में सधा हुआ अभिनय किया है. अदिति राव हैदरी के लिए फ़िल्म में कुछ करने को खास नहीं था. अविनाश तिवारी एक बार फिर अपने परफॉर्मेंस से छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं. उनके किरदार में लेयर्स है. म्यूजिक की बात करें तो फ़िल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक औसत है. गीत संगीत कहानी की रफ्तार को बाधित करते हैं. फ़िल्म की लंबाई कम होती तो फ़िल्म थोड़ी एंगेजिंग हो सकती थी. फ़िल्म के संवाद सतही रह गए हैं.
आखिर में ओटीटी प्लेटफार्म पर यह फ़िल्म है और ओटीटी पर ही हॉलीवुड वाला वर्जन भी है. अगर दर्शक मर्डर मिस्ट्री वाली इस कहानी में थ्रिलर और सस्पेंस देखना चाहते हैं तो हॉलीवुड वर्जन की ओर रुख करना ज़्यादा सही फैसला होगा.