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The Kerala Story Review: विषय है संवेदनशील, लेकिन एजेंडा बेस्ड है पूरा ट्रीटमेंट

The Kerala Story Review: सुदीप्तो सेन की फिल्म द केरल स्टोरी आज सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. फिल्म की कहानी शालिनी की है, जो सीरिया की एक जेल में है, सीरिया की पुलिस और अमेरिकी जांच एजेंसीज के पास पुख्ता सबूत है कि शालिनी एक आतंकवादी है.

फ़िल्म – द केरल स्टोरी

निर्देशक – सुदीप्तो सेन

कलाकार – अदा शर्मा, सोनिया बलानी, योगिता बिहानी,सिद्धि, प्रणव मिश्रा, प्रणय पचौरी और अन्य

प्लेटफार्म – सिनेमाघर

रेटिंग – डेढ़

आतंकवाद और युवाओं का ब्रेनवॉश होना एक गंभीर विषय है. इस पर बातचीत करने की जरूरत है. फ़िल्में भी बननी चाहिए, लेकिन अगर फ़िल्म ऐसी बनती हैं, जहां एक धर्म के खिलाफ ही सबकुछ दिखाना है और दूसरे धर्म के लोगों को पूरी तरह से मासूम बताना है, तो यह फिल्म के असल मकसद को जाहिर कर देता है. द कश्मीर फाइल्स के बाद इसकी अगली कड़ी द केरल स्टोरी बनी है. अब दर्शकों को खुद से सवाल पूछने की जरूरत है कि वह फ्रीडम ऑफ़ स्पीच के नाम पर इन फिल्मों में तथ्यात्मक बनाम रचनात्मक अंतर को समझना है या नफरत को पोषित करना है.

अतिनाटकीय है फिल्म का ट्रीटमेंट

फिल्म की कहानी शालिनी (अदा शर्मा) की है, जो सीरिया की एक जेल में है, सीरिया की पुलिस और अमेरिकी जांच एजेंसीज के पास पुख्ता सबूत है कि शालिनी एक आतंकवादी है. केरल के एक नर्सिंग कॉलेज में नर्स की पढ़ाई करने वाली शालिनी किस तरह से पहले फातिमा बनती है और फिर आतंकवाद से जुड़ती है. उसकी इसी जर्नी को फिल्म में दिखाया है. इसका पूरा ताना बाना विवादित शब्द लव जिहाद पर बुना गया है. किस तरह से लव जिहाद काम करता है. यह फिल्म में दिखाया गया है.फिल्म फ्लैशबैक और वर्तमान में चलते हुए धीरे-धीरे कहानी की भयावहता को दर्शाती है. फिल्म की कहानी को कई सारी असल घटनाओं से प्रेरित बताया गया है.

फिल्म की क्या है कहानी

फिल्म की कहानी असल घटनाओं के प्रेरित हो सकती है, लेकिन फिल्म में जिस तरह से इसे दिखाया गया है. वह अखरता है. फिल्म को संवेदनशीलता से ट्रीट किए जाने की जरूरत थी, लेकिन एक धार्मिक नफरत को फैलाने वाला पूरा ट्रीटमेंट है. फिल्म ग्रे में जाकर कुछ टटोलने की कोशिश नहीं करती है. फिल्म में सबकुछ ब्लैक या वाइट है. फिल्म में जो भी मुस्लिम है, वो खलनायक है और आतंकवाद से जुड़ा है और जो दूसरे धर्म के लोग हैं. उनमें कुछ बुराई ही नहीं है. वह एक दम भोले भाले से हैं. उनमे दिमाग़ नहीं है. फिल्म देखने के बाद अगर अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं करेंगे, तो यह सोच आना लाजमी है कि केरल में हिन्दू महिलाएं खतरे में है. केरल के सभी मुस्लिम, हिन्दू महिलाओं को लव जिहाद के नाम पर मुस्लिम आतंकी बना रहे हैं. फिल्म में एक संवाद भी है कि केरल को बचा लीजिए. हमारे एक्स सीएम नें कहा है कि कुछ सालों में केरल इस्लामिक स्टेट बन जाएगा. फिल्म रियल घटना पर आधरित बतायी जा रही है लेकिन फिल्म पुख्ता तौर पर कोई भी ऐसे साक्ष्य को सामने नहीं रख पायी है, जो फिल्म में दिखायी गयी भयावह स्थिति को सामने ला पाए. यह कहानी हकीकत नहीं है, इससे इंकार नहीं है, लेकिन हर कौम में बुरे लोग हैं, लेकिन उन चंद लोगों के लिए पूरी कौम को दोषी बताना कहां तक जायज है . फिल्म में पुलिस या प्रशासन की भी कोई भूमिका नहीं है.लड़कियों और उसके परिवार वालों किसी से कोई मदद नहीं मांगते हैं. सबकुछ चुपचाप सहन कर रहे हैं. एक बार को लगता है कि निर्देशक शायद इस बात को भूल गया है कि कहानी में ये घटनाएं सीरिया या अफगानिस्तान नहीं बल्कि भारत के केरल में दिखाया जा रहा है. लड़कियों के हिजाब ना पहनने पर भीड़ के सामने उन्हें परेशान किया जा रहा है और भीड़ चुप है.

संवाद कर जाते हैं असहज

फिल्म में ऐसे संवादों की भरमार है. फिल्म के संवाद फिल्म के मकसद को और जाहिर करते हैं. हिन्दू देवी देवताओं को जिस तरह से कमज़ोर बताया गया है, उससे हिन्दुओं को गुस्सा आना लाजमी है. मुस्लिम धर्म ही नहीं कम्युनिस्ट विचारधारा को भी जमकर कोसा गया है. आपने कम्युनिस्ट विचारधारा के बारे में बताया, हिन्दू देवी देवताओं के बारे में बताते तो यह स्थिति नहीं होती थी. कम्युनिस्ट सबसे बड़े कपटी होते है.गौरतलब है कि क्रिस्चियन धर्म पर कुछ नहीं कहा गया है, जबकि एक दशक पहले क्रिस्चियनों द्वारा हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन एक बड़ा मुद्दा हुआ करता था, लेकिन अब यह मुद्दा नहीं रह गया है, क्योंकि पूरा फोकस किसी एक धर्म को टारगेट करने में है. फिल्म के संवादो को सुनकर यह सवाल भी आता है कि सेंसर बोर्ड ने इन संवादों को पास कैसे कर दिया.

अदा शर्मा की दमदार परफॉरमेंस

अभिनय की बात करें तो अदा शर्मा पर इस फिल्म की कहानी है और उन्होंने इस किरदार में पावरफुल परफॉरमेंस दी है. एक मासूम सी लड़की से आइएसआइ के चंगुल से भागने वाली महिला बनने के किरदार के ग्राफ को उन्होने परदे पर हर सीन के साथ शिद्दत से जिया है.सिद्धि और सोनिया बलानी भी अपनी भूमिका में प्रभावित करती हैं. बाकी के किरदारों नें भी अपनी- अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है.

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ये पहलू है खास यहां हुई चूक

फिल्म के गीत संगीत की बात करें, तो फिल्म में मलयालम भाषा में दो गीत को भी रखा गया है. यह पहलू फिल्म को वास्तविकता के और करीब ले जाता है. फिल्म की शूटिंग डॉक्यूमेंट्री स्टाइल में की गयी है और जमकर हिंसा परोसी गयी है.

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