बिक्रमगंज (रोहतास) : शहीद खुर्शीद खान बुधवार की अहले सुबह सुपुर्द-ए-खाक हो गये. इससे पहले जनाजे की नमाज अदा की गयी. इसमें घुसियां कला निवासी बिहार सरकार के पूर्व मंत्री अखलाख अहमद समेत काफी संख्या में ग्रामीण शामिल हुए. उससे पहले शहीद के जनाजे पर सीआरपीएफ के आइजी ने गुलदस्ता दे कर गार्ड ऑफ ऑनर दिया.
उसके बाद सीआरपीएफ के असिस्टेंड कमांडेंट, जिलाधिकारी रोहतास पंकज दीक्षित, एसपी रोहतास सत्यवीर सिंह, विधायक संजय यादव, जिला परिषद अध्यक्ष नथुनी पासवान, पूर्व मंत्री अखलाक अहमद, एसडीएम विजयंत, डीएसपी राजकुमार, एडिशनल डीएसपी व सीआरपीएफ के कई पदाधिकारियों ने शहीद के जनाजे पर श्रद्धा के फूल चढ़ा नमन किया.
”मेरे पापा का चेहरा दिखाओ ना मामू, मेरे पापा क्यों नहीं उठ रहे हैं, चाचू जान… मैं भी पापा पर फूल चढ़ाऊंगी….” पांच वर्षीय अफसा के सवालों को सुन नमाजे जनाजा में शामिल होनेवाले लोगों का कलेजा मानों फट रहा था. एक शख्स ने तभी कहा, इसके हाथों भी एक गुलदस्ता चढ़वाइये. इसके बाद अफसा खुर्शीद के मामू उसे अब्बा खुर्शीद के जनाने के पैर के तरफ ले गये. और नन्हीं अफसा ने अपने प्यारे अब्बू जान को गुलदस्ता देकर उन्हें सलाम किया. यह दृश्य जिसने भी देखा, वह भावुक हो उठा. सीआरपीएफ के एक जवान ने बच्चे को गुलदस्ता चढ़ाते अपने कैमरे में कैद कर लिया.
गांव की जिस गलियों में हिंदू-मुस्लिम एकता की दीवार कई बार दागदार हुई हो, वहां से एक साथ गूंजते नारे ”अल्लाह हो अकबर” और ”वंदे मातरम्” हर किसी को विचलित कर रही थी. लेकिन, यह सत्य है और इसी सत्यता के साथ कश्मीर में शहीद घिसियां कला के लाल को अंतिम विदाई दी गयी. सीआरपीएफ के साथियों की सलामी व नमाजे जनाजा की अदायगी के साथ सदा-सदा के लिए वह बेटा सुपुर्द-ए-खाक हो गया. उसकी एक झलक पाने के लिए घुसियां कला की गलियों में रात 12 बजे तक बच्चे, बुजुर्ग व महिलाएं अपने-अपने घरों की छतों की मुंडेर पर टकटकी लगाये खड़ी थीं.
छह तोरणद्वारों से सजी गलियों में हर ओर शहीद खुर्शीद अमर रहे के पोस्टर लगे थे, तो हजारों की संख्या में तिरंगा झंडे इस बात की गवाही दे रहे थे कि आज जिस शख्स का जनाजा आया है, वह कोई आम नहीं है. लोगों ने कहा, या अल्लाह किसी की मौत नसीब हो, तो ऐसी ही हो. इस मौत से यादगार मौत कुछ हो ही नहीं सकती. घर से जब खुर्शीद का जनाजा निकला, तो जितने जोर से नारे की आवाज गूंजी, उतनी ही ताकत से ‘वंदे मातरम’ भी गूंज रहा था. घर से कब्रिस्तान तक कि दूरी करीब डेढ़ किलोमीटर थी. लेकिन, देशप्रेम के आगे यह दूरी बहुत नाकाफी साबित हुई.
खुर्शीद का जनाजा अपने घर से निकल कर घुसियां कला बाल स्थित उनके ससुराल होते कब्रिस्तान तक पहुंचा. चारों ओर जहां रात के 12 बजे भी हजारों की संख्या में लोगों का हुजूम मौजूद था. कब्रिस्तान तक जनाजा पहुंचते ही वहां सैनिक रीति-रिवाज से गार्ड ऑफ ऑनर हुआ, सलामी हुई. जनाजे की नमाज के बाद शहीद को उसके सबसे छोटे भाई मुर्शिद ने पहली मिट्टी दी. उसके बाद एक-एक करके सारे संबंधियों ने मिट्टी दे अपनी फर्ज निभायी और इस प्रकार दुश्मन की गोली से देश के लिए शहीद हुए घुसियां कला का लाल घर की मिट्टी में सुपुर्द-ए-खाक हो गया.
घुसियां कला गांव दो भागों में बंटा है. काव नदी इसके बीचों-बीच चीरती निकलती है. एक तरफ घनी आबादी, तो दूसरी तरफ घने पेड़ और दूर तक बालमट्ट मिली से भरा मैदान है. उसकी हरी भरी घासों पर खेलते-कूदते दोनों तरफ के लड़के वर्दी पाने की जंग में शामिल होते हैं. आज उसी बाल का इकबाल है कि घुसियां कला गांव के सैकड़ों हिंदू और मुस्लिम लड़के वर्दी के साथ बिहार पुलिस और सेना में कार्यरत हैं. सुबह-शाम बाल पर दौड़ते-दौड़ते ये इतने माहिर धावक हो जाते है कि इन्हें फिजिकली हराना किसी अन्य गांव के युवकों के लिए मुश्किल हो जाता है. उसी में से एक सोमवार को शहीद हुए गांव का लाल खुर्शीद भी था.
खुर्शीद की शादी घुसियां कला बाल पर ही हुई थी. पंचायत के मुखिया पति उमेश कुशवाहा ने बताया कि जब 2005 में मुदी खान की बेटी नगमा खातून से उनका निकाह हुआ था. हम लोग यहीं से बैंड पर नाचते झूमते बाल पर पहुंचे थे. ग्रामीण शमशाद खान कहते हैं कि अभी मुदी खान साहब की तबीयत ठीक नहीं है. उनका ऑपरेशन हुआ है, जिसके कारण उन्हें परिवारवालों ने यह जानकारी नहीं दी कि उनकी प्यारी बेटी नगमा अब बेवा हो चुकी हैं. मंगलवार को उनके घर के बाहर खामोशी थी. घर के अंदर कुछ मिलने वाले परिवार के साथ गपशप करने में वह मशगूल थे.