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रचनात्मक सांकेतिकता से समृद्ध हैं रश्मि शर्मा की ‘बंद कोठरी का दरवाजा’ की कहानियां

युवा कथाकार रश्मि शर्मा के इस संग्रह की कहानियों में  जीवन अनुभव प्रत्यक्ष प्रकट न होकर स्मृतियों के अनुभव की भांति दर्ज हुए हैं. यह भली बात है. 'उसका जाना' और 'चार आने की खुशी' कहानियां रेखा चित्र का भास देते हुए भी संवेदन तरलता के कारण अपेक्षित करुणा तक पहुंचने में सफल हो जाती हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 7, 2022 4:02 PM

-भालचंद्र जोशी-

नई पुस्तकों को पढ़ने में मेरी बहुत दिलचस्पी रहती है, विशेषकर नए लेखकों की पुस्तकें मैं बहुत रुचि से पढ़ता हूं. मुझे यह जानने की बहुत उत्सुकता रहती है कि एक नया लेखक अपने समय और समाज को कैसे देख रहा है. उसके अनुभव क्या हैं. कथ्य, शिल्प और भाषा की उसके पास पूंजी कितनी है? और सबसे महत्वपूर्ण बात कि उस पूंजी को समृद्ध करने के लिए उसकी संवेदन दृष्टि कितनी मददगार है? यह रश्मि शर्मा की रचना कुशलता है कि वे भूमंडलीकरण के उत्तर समय की प्रत्यक्ष छवियां अपनी कहानियों में दर्ज नहीं करतीं, बल्कि उनके संकेत अपनी कहानियों में छोडती चलती हैं. कई बार यह सांकेतिकता ही रचना को अपने समय से मुखापेक्षी बताती है.

मैंग्रोव वन अद्भुत कहानी

सेतु प्रकाशन से हाल ही में छपकर आये इनके पहले कहानी संग्रह ‘बंद कोठरी का दरवाजा’ में संकलित ‘मैंग्रोव वन’ एक ऐसी ही कहानी है. नायक को अपने कमरे में रात को रुकने की अनुमति देती नायिका स्त्री स्वतंत्रता की पक्षधरता के संकेत तो देती ही है, लेकिन एक स्त्री के आत्मविश्वास को भी प्रकट करती है. प्रेम के अनेक संकेत इस कहानी में मौजूद हैं. बावजूद इस बात के कि बारिश की अंधेरी रात में लड़के और लड़की को एकांत हासिल था. रश्मि शर्मा ने  इस एकांत को सेंसेशन में बदलने की अपेक्षा प्रेम की एक करुण ध्वनि में बदला है.

बरता गया लेखकीय संयम

देह संबंधों के दृश्य रचाव से तात्कालिक और चालू लोकप्रियता हासिल करने के मोह से खुद को मुक्त करने का जो लेखकीय संयम यहां रखा गया है, वह लेखिका के कथा कौशल और खुद के लेखन के प्रति भरोसे को भी प्रकट करता है. देह संबंधों के दृश्यों की कथा प्रस्तुति कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन यह लेखक की सनसनीप्रियता की खोज की अपेक्षा कहानी की जरूरत होना चाहिए. इस कहानी में यह लेखकीय संयम, संकोच नहीं कथा समझ के परिणाम में आया है. इसलिए भारती का सोच ‘यादों के पश्मीने  में ढंकी खुद को पुरसुकून पा रही हूं’ पाठक का भी सुकून है.

अर्थ बदल-बदलकर कहानियों में आता है पानी

युवा कथाकार रश्मि शर्मा के इस संग्रह की कहानियों में  जीवन अनुभव प्रत्यक्ष प्रकट न होकर स्मृतियों के अनुभव की भांति दर्ज हुए हैं. यह भली बात है. ‘उसका जाना’ और ‘चार आने की खुशी’ कहानियां रेखा चित्र का भास देते हुए भी संवेदन तरलता के कारण अपेक्षित करुणा तक पहुंचने में सफल हो जाती हैं. पानी अर्थ बदल-बदल कर रश्मि की कहानियों में आता है. यह लेखिका की उस मानवीय मार्मिकता के भी संकेत हैं, जिसे वह अपने कथ्य और पात्रों के साथ कहानी में जगह देती है. बारिश और पानी इस संग्रह की कहानियों को कविता की तरह कोमल बनाते हैं.

भाषा और विचार संवेदना में द्वंद्वात्मकता की कमी

‘निर्वसन’ कहानी में केंद्रीय विचार को एक जरूरी कला संयम में भाषा और विचार संवेदना की कथ्यात्मकता के साथ जिस द्वंद्वात्मकता की जरूरत थी, सीता के प्रति लेखिका की भावप्रवणता की पक्षधरता ने उसके लिए जरूरी स्पेस रचने में संकट पैदा किया है. ईश्वर या कहें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के विराट व्यक्तित्व को स्त्री स्वतंत्रता के संदर्भ में संदिग्ध करने के लिए इस कथा श्रम  के लिए भाषा और शिल्प के अधिक बड़े उपकरणों की जरूरत थी. ऐसा मैं सोचता हूं. जरूरी नहीं कि सब इससे सहमत हों. बहरहाल, कोई भी संग्रह अपने आप में संपूर्ण नहीं होता है. इसलिए किसी संग्रह में एक आध कहानी का कच्चा रह जाना बड़ा अर्थ नहीं रखता है.

भविष्य में प्रभावी होंगी कहानियां

यदि बाजार की इच्छा के अनुरूप रचना को चमकीला बनाने के लोभ से रश्मि शर्मा खुद को इसी तरह बचाए रखती हैं, तो मुझे लगता है इनकी कहानियां भविष्य में और प्रभावी होंगी. मुझे उम्मीद है की संवेदन दृष्टि के दबाव, रचना की निरंतरता और श्रम की  निरंतरता से वे ऐसा अवश्य कर पाएंगी. प्रथम कहानी-संग्रह के लिए रश्मि शर्मा को बहुत-बहुत बधाई और भविष्य के लिए शुभकामनाएं.

पुस्तकः बंद कोठरी का दरवाजा (कहानी-संग्रह)

लेखिकाः रश्मि शर्मा

प्रथम संस्करण : 2022

पृष्ठ: 200

मूल्य: 260 रुपये

प्रकाशक: सेतु प्रकाशन, 305, प्रियदर्शिनी अपार्टमेंट, पटपड़गंज, दिल्ली-110092

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