रांची : जनगणना के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 10 वर्षों के दौरान बाल श्रमिकों की संख्या में 78 प्रतिशत की गिरावट आयी है. राज्य गठन के बाद हुई 2001 की जनगणना में यहां पांच से 14 साल के बाल श्रमिकों की संख्या 4.07 लाख थी. 2011 में हुई जनगणना के दौरान राज्य में बाल श्रमिकों की संख्या 4.07 लाख से घट कर 90.99 हजार हो गयी.
बाल श्रम को समाप्त करने के उद्देश्य से सबसे पहले 1986 में कानून बना. इसके बाद 2016 में इसमें कई संशोधन हुए. बाल श्रमिकों को शिक्षा व रोजगार से जोड़ कर उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार लाने का नियम लागू किया गया.
इससे बाल श्रमिकों की संख्या में कमी आयी. वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार, देश में बाल श्रमिकों की कुल संख्या 1.26 करोड़ थी. इसमें झारखंड की भागीदारी 3.21 प्रतिशत थी. 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में बाल श्रमिकों की संख्या 1.26 करोड़ से घट कर 43.53 लाख हो गयी. इसमें झारखंड की भागीदारी भी 3.21 प्रतिशत से घट कर 2.09 प्रतिशत हो गयी.
राज्य सरकार ने श्रम कानून में निहित प्रावधानों के तहत बच्चों से काम लेनेवाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की. इसके तहत संबंधित लोगों के खिलाफ मुकदमे किये गये और उनसे जुर्माना वसूला गया.
सरकार ने पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान राज्य के विभिन्न जिलों से 72 बाल श्रमिकों को मुक्त कराया. उनसे काम लेनेवाले 32 लोगों के खिलाफ मुकदमा दायर किया और दंड के रूप में 33.66 लाख रुपये की वसूली की. 2009 में शिक्षा अधिकार अधिनियम के सहारे बाल श्रमिकों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा से जोड़ा गया.
पांच से आठ साल के बच्चों को सर्व शिक्षा अभियान से जोड़ा गया. बाल श्रमिकों के पुनर्वास के लिए राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (एनसीएलपी) लागू की गयी. बाल श्रमिकों की शिकायतें सुनने और कार्रवाई के लिए 2017 में पेंसिल नाम से पोर्टल की शुरुआत की गयी. इस पोर्टल पर शिकायत मिलने के बाद संबंधित जिले के सक्षम पदाधिकारी बाल श्रमिक को मुक्त कराने और आवश्यक कानूनी कार्रवाई करते हैं.
2001 की जनगणना में यहां पांच से 14 साल के बाल श्रमिकों की संख्या 4.07 लाख थी
बाल श्रम के मामले में वर्ष 2001 में नौवें स्थान पर था झारखंड, 2011 में 16वें स्थान पर
अच्छे संकेत : झारखंड में लगातार घट रहे हैं बाल श्रमिक, 10 वर्षों में 78 प्रतिशत कम हुए
तीन साल में 33 प्राथमिकी, देश में कुल 18 सौ मामले दर्ज
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, पिछले तीन वर्ष में झारखंड में बाल श्रम निषेध व विनियमन, सीएलपीआरए के तहत 33 मामले दर्ज किये गये है़ं नोबेल पुरस्कार विजेता और बाल श्रम मुक्ति अभियान चलानेवाले अग्रदूत कैलाश सत्यार्थी के संगठन के अनुसार, देश भर में 2016 से 2018 तक 1879 मामले दर्ज कराये गये थे़
वहीं झारखंड में 33 मामले सामने आये़ वर्ष 2016 में बाल श्रम कानून के तहत एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ था़ वहीं 2017 में 16, 2018 में 17 मामले दर्ज हुए़ उल्लेखनीय है कि बाल श्रमिकों के खिलाफ होनेवाली हिंसा और अधिकारों के हनन को देखते हुए केंद्र सरकार ने 2016 में बाल श्रम कानून में संशोधन किया़ 14 वर्ष तक के बच्चे को काम पर रखे जाने पर प्रतिबंध लगाया़
Post by : Pritish Sahay