विश्वास की कच्ची डोर बनाम गोफ में समाती जिंदगी

धन से आबाद धनबाद की अर्थव्यवस्था ऐसी नहीं कि कोई व्यक्ति कहीं भी बस कर जीविकोपार्जन कर ले. यहां कमाने-खाने के लिए सबसे ज्यादा कोयले पर निर्भरता है. अधिकांश उद्योग-धंधे (चाहे वैध हों या अवैध) भी इसी पर आधारित हैं. बसावट भी उसी के हिसाब से है.

By Prabhat Khabar News Desk | August 20, 2023 3:18 PM
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जीवेश रंजन सिंह, धनबाद. हाल के दिनों धनबाद के आसपास के इलाके में लगातार गोफ बनने की घटनाएं हो रही हैं. इससे जान-माल की क्षति भी जारी है. एक व्यक्ति गोफ में समा कर भूमिगत तपन से जल-भुन कर जान से हाथ धो बैठा, तो दूसरी जगह अपने दो बच्चों के साथ गोफ में समाये पिता की किस्मत अच्छी थी कि तीन युवकों ने स्वयं को जोखिम में डाल तीनों को सकुशल बचा लिया. कई मकान व धार्मिक स्थल भी क्षतिग्रस्त हो गये हैं. ये घटनाएं इस इलाके के लिए नयी नहीं हैं, पर हाल में इनकी निरंतरता ने चिंता में डाल दिया है. दरअसल, ये इलाके अतिसंवेदनशील हैं. भूमिगत आग के कारण खोखले हो चुके हैं. इनको खाली करने व यहां के लोगों को दूसरी जगह बसाने की बात लगभग सभी सुरक्षा एजेंसियां व जांच टीम ने कह दी है, पर अभी भी अधिकांश जगह हालत जस का तस है. कई जगह तो हालत यह है कि कुछ ही दूरी पर आग की लपटें या गैस का रिसाव जब-तब होते रहता है, पर लोग हटने को तैयार नहीं.

रोटी की खातिर जीवन को खतरे में डाला

इसके पीछे कई कारण हैं, पर सबसे महत्वपूर्ण कारण आर्थिक और मानसिक है. दरअसल, धन से आबाद धनबाद की अर्थव्यवस्था ऐसी नहीं कि कोई व्यक्ति कहीं भी बस कर जीविकोपार्जन कर ले. यहां कमाने-खाने के लिए सबसे ज्यादा कोयले पर निर्भरता है. अधिकांश उद्योग-धंधे (चाहे वैध हों या अवैध) भी इसी पर आधारित हैं. बसावट भी उसी के हिसाब से है. विभिन्न कोलियरियों में दूर-दूर से आये लोग उसी के आसपास बस कर यहीं के हो कर रह गये. तब कहा भी जाता था कि कहीं नौकरी नहीं मिले, तो धनबाद आइये, नौकरी पक्की है. अधिकांश लोग इन्हीं कोलियरियों से किसी न किसी रूप में जुड़ कर कमाने-खाने वाले रहे. यानी कि कोयलांचल की जिंदगी इन्हीं खदानों, कोयले की खुशबू और पसीने से लथपथ पर संतुष्ट चेहरे में सिमटी रही. अब ऐसे हालात नहीं. बावजूद इसके, आज भी कहीं और बसने या बसाये जाने के ख्याल से ही सबकी रूह कांप जाती है. अब भी अपने इलाके से आर्थिक और मानसिक मोह जीवन को खतरे में डाले रखने पर विवश कर रहा.

विश्वास जीतने में पिछड़ी व्यवस्था

लगभग रोज अखबारों में गोफ, लोगों को कहीं और बसाने और विरोध की खबरें जगह पा रही हैं. कहीं-कहीं से पुनर्वास के नाम पर भयादोहन-अर्थ दोहन के भी आरोप-प्रत्यारोप आ रहे हैं. कुछ स्थानों पर आरोप है कि बसाने के लिए ऐसी जगहों की तलाश की गयी है, जो सुरक्षा और अन्य कारणों से रहने योग्य नहीं. दरअसल, सरकारी तौर पर पुनर्वास की बेहतर योजना झरिया पुनर्वास योजना भी गंभीर प्रचार-प्रसार या कुछ लोगों के कारण लोगों का विश्वास नहीं जीत पायी है. इस योजना के तहत अति संवेदनशील इलाकों में वैध या अवैध रूप से बसे सभी लोगों को लाभ मिलना है, पर जरूरत है बेहतर तरीके से सबको इसकी जानकारी देने की.

और अंत में….

अब भी समय है योजनाओं की सही जानकारी जनप्रतिनिधि के साथ मिल कर लोगों तक पहुंचायी जाये. कहीं कोई कमी है, तो उसकी भी चर्चा हो और वो कमियां दूर हों. साथ ही लोभ-लाभ से अलग हो एक बार सब मिल कर गलत को गलत और सही को सही कहें, लोगों को समझायें-बतायें, जरूरत के अनुसार चीजों में परिवर्तन करें, तो कमजोर होती विश्वास की यह डोर निश्चय ही मजबूत होगी और फिर कोई गोफ किसी जिंदगी या आशियाने को लील नहीं पायेगा.

नोट : लेखक प्रभात खबर धनबाद के स्थानीय संपादक हैं.

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