तिरुलडीह गोलीकांड : हर साल ठगे जाते हैं शहीदों के परिजन, आज तक नहीं मिली सरकारी नौकरी और मुआवाजा
वर्ष 2007 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की घर आकर शहीद के परिवार से मिले और शहीद के बेटे को शिक्षा विभाग में नौकरी दिलाने का वायदा किया. लेकिन वो महज एक आश्वसन ही रहा.
चांडिल (सरायकेला-खरसांवा), हिमांशु गोप:
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा…. तिरुलडीह गोलीकंड में अजीत महतो और धनंजय महतो की शहादत पर ये लाइनें बिल्कुल फिट बैठती हैं. यूं तो 21 अक्टूबर को हर साल कुकड़ू प्रखंड के तिरुलडीह सहित राज्य के कई स्थानों में शहीद अजीत और धनंजय महतो का शहादत दिवस मनाया जाता है. शहादत दिवस में मंत्री, नेता सभी शामिल होते हैं. शहीद परिवार के लिए कई वायदे भी किये जाते हैं, लेकिन यह सब सिर्फ मंच तक ही सिमित रहता है. कई बार सरकार शहीद परिवार को नौकरी का आश्वासन मिला है, अखबारों में खबरें भी छपीं, लेकिन आजतक ना तो उन्हें सरकारी नौकरी मिली है, ना ही कोई मुआवाजा राशि और न ही शहीद का दर्जा. शहीद के नाम पर उनके परिवार को किसी तरह का सम्मान या प्रशस्ति पत्र भी नहीं दिया गया है.
झारखंड अलग राज्य बनने के बाद वर्ष 2007 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की घर आकर शहीद के परिवार से मिले और शहीद के बेटे को शिक्षा विभाग में नौकरी दिलाने का वायदा किया. इसके लिए उन्होंने उपेन महतो के सभी शैक्षणिक प्रमाण पत्र भी ले लिये. लेकिन वो महज सिर्फ एक आश्वसन ही रहा. इस कारण शहीद परिवार के लोग खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.
41 साल बाद भी अनसुलझी पहली बन कर रह गयी तिरुलडीह गोलीकांड की घटना
ईचागढ़ प्रखंड के तत्कालीन मुख्यालय तिरुलडीह (वर्तमान में कुकड़ प्रखंड) में 21 अक्टूबर 1982 को हुए गोलीकांड की घटना अब भी एक अनसुलझी पहेली बनकर रह गई है. गोलीकांड में शहीद हुए क्रांतिकारी छात्र युवा मोर्चा के दो सदस्य एवं सिंहभूम कॉलेज चांडिल के छात्र रहे अजित महतो और धंनजय महतो की याद में प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला शहादत दिवस आज भी लोगों के दिलों दिमाग में बसा हुआ है.
लेकिन किसी सरकार ने आज तक इस घटना को तवज्जो ही नहीं दी. न ही इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश की न ही दोषियों को चिन्हित किया गया. घटना के बारे में बताया जाता है कि गोली उस समय चली जब क्रांतिकारी छात्र युवा मोर्चा का एक प्रतिनिधिमंडल अंचलधिकारी के कार्यालय कक्ष में अपनी मांगों को लेकर लिखित आश्वसन की मांग कर रहे थे. गोलीकांड की घटना के बाद प्रखंड मुख्यालय में मौजूद 42 लोगों को हिरासत में लिया गया.
आंदोलन इतना उग्र हो गया कि लोग अपने घरों से भी निकलने में डरने लगे. हालांकि, आंदोलन तेज होने के बाद हिरासत में लिये गये सभी लोगों को छोड़ दिया गया और गोलीकांड की जांच करने के लिए एक टीम का गठन किया गया. लेकिन इतने वर्ष बीत जाने के लिए भी अब तक रिपोर्ट प्रकाशित नहीं हुई. हैरत की बात तो ये है कि सरकार अब तक इसके घटना के जिम्मेवार लोगों को नहीं पकड़ पायी है.
क्या था पूरा मामला
21 अक्तूबर 1982 को ईचागढ़ प्रखंड के तत्कालीन मुख्यालय तिरुलडीह में क्रांतिकारी छात्र युवा मोर्चा के छात्र शांतिपूर्ण धरना दे रहे थे. लेकिन उसी वक्त पुलिस ने धरना दे रही भीड़ पर फायरिंग कर दी. इस घटना में दो छात्र अजित महतो और धनंजय महतो शहीद हो गए. जानकारी के मुताबिक उस साल इलाके में भयंकर सूखा पड़ा था. चांडिल बांध के विस्थापितों का हाल खानाबदोश की तरह हो गया था. ऐसे में छात्रों ने गैर राजनीतिक संगठन क्रांतिकारी छात्र युवा मोर्चा के बैनर तले शांतिपूर्ण आंदोलन करने का फैसला लिया. आंदोलन के क्रम में ईचागढ़, चांडिल, नीमडीह के युवाओं ने तत्कालीन मुख्यालय इचागढ़ तिरुलडीह में धरना देने की घोषणा की. चांडिल व नीमडीह में शांतिपूर्ण धरना देने के बाद छात्रों का काफिला 20 अक्तूबर को तिरुलडीह के लिए पैदल ही चल पड़े और 21 अक्टूबर 1982 को प्रखंड मुख्यालय पहुंचे. लोगों के आक्रोश को देखते हुए अंचलधिकारी आंदोलन कर रहे कुछ छात्रों को मुलाकात करने के लिए अपने दफ्तर में बुलाया. उसी दौरान गोली चल गयी. गोली की आवाज सुनकर अंचल अधिकारी और प्रतिनिधिमंडल बाहर निकले तो देखा कि खून से लथपथ दो छात्र जमीन पर पड़े थे.
उनमें से एक चौका थाना क्षेत्र के कुरली गांव निवासी अजीत महतो एंव दूसरा ईचागढ़ प्रखंड के आदारडीह गांव के निवासी धंनजय महतो थे. शहीद धंनजय महतो विवाहित थे और उनका उस समय एक 5 माह का बेटा था. इस घटना में कई लोग घायल हो गए थे. घटना के विरोध में कई राजनीतिक दलों ने आंदोलन किया. जिसके बाद सरकार ने जांच के लिए एक टीम का गठन किया. जांच शुरू तो हुई लेकिन न ही कभी इसकी डिटेल्स रिपोर्ट आयी और न ही आश्रितों को मुआवजा और नौकरी मिली. आज भी तिरुलडीह गोलीकांड के एक अनसुलझी पहेली है.
सुखाड़ घोषित करने को लेकर कर रहे थे आंदोलन
क्रांतिकारी छात्र युवा मोर्चा के तत्कालीन महासचिव हिकीम चंद्र महतो ने बताया कि 1982 में प्रखंड क्षेत्र में धान की फसल नहीं हुई थी. सुखाड़ की मांग को लेकर हमारी संगठन ने शांतिपूर्ण आंदोलन करने का फैसला लिया. हमारी मांग थी कि क्षेत्र को सुखाड़ घोषित किया जाए. हम अपने 21 सूत्री मांग पत्र का ज्ञापन सौंपने के पश्चात रिसिव कॉपी ले ही रहे थे. तभी अचानक गोली चली जिसमें हमारे दो साथी अजीत महतो व धंनजय महतो घटना स्थल पर ही शहीद हो चुके थे.
निर्मल महतो ने शहीद अजीत-धंनजय महतो का किया था अंतिम संस्कार: सुनील कुमार महतो
संगठन के सचिव और नीमडीह प्रखंड निवासी सुनील कुमार महतो ने बताया कि 21 अक्टूबर 1982 में इलाके को सुखाड़ घोषित करने समेत कई मांगो को लेकर आंदोलन कर रहे थे. जिसका नेतृत्व क्रांतिकारी छात्र युवा मोर्चा के अध्यक्ष अशोक उरांव व महासचिव हिकीम चंद्र महतो कर रहे थे. जब हमारा संगठन अंचल अधिकारी को ज्ञापन सौंपने गया तो उसके थोड़ी देर बाद ही गोली चलने की आवाज सुनाई दी. बाहर निकल कर देखा तो गोली लगने से अजीत और धनंजय महतो की मौत हो चुकी थी. इसके बाद पुलिस ने 42 लोगों को हिरासत में ले लिया और दोनों का शव घटना स्थल पर ही पड़ा रहा.
इसके बाद आंदोलनकारी हरेंद्र महतो (जो अभी वर्तमान में रांची हाइकोर्ट के अधिवक्ता हैं) जमशेदपुर जाकर निर्मल महतो (शहीद निर्मल महतो) को सारी बात बताई. उसके बाद निर्मल महतो घटना स्तर पर पहुंचे और रातों-रात दोनों के शव को उठाकर स्वर्णरेखा नदी के तट पर लाया गया. इसके बाद पूरे विधि विधान के साथ दोनों को मुखाग्नि दी गयी. और उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया. आज भी सरकार हमारे दोनों साथी के हत्यारों का पता नहीं लगा सकी है.
आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला शहीद के परिवारों को : उपेन महतो
शहीद धंनजय महतो के पुत्र उपेन महतो ने कहा कि सिर्फ आश्वासन के सिवाय शहीद परिवार को कुछ नहीं मिला. हर साल 21 अक्तूबर को शहादत दिवस पर विभिन्न पार्टियों के छोटे बड़े नेता आकर शहीद की बेदी पर माल्यार्पण और आश्वासन देकर चले जाते हैं. लेकिन आज किसी ने भी इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की. उपेन महतो ने बताया कि वर्ष 2010-11 में झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन भी आए थे और आश्वस्त किया कि धनंजय महतो के पुत्र उपेन महतो और अजीत महतो के भतीजे जगदीश महतो को सरकारी नौकरी दी जाएगी. लेकिन आज तक शहीद के परिवारों को सरकारी नौकरी व अन्य सुविधा नहीं मिली है. उपेन महतो बताते हैं कि मेरा परिवार आज भी मजदूरी करता है. आजसू नेता हरिलाल महतो ने हमारे लिए चार कमरे पक्का मकान बनवा दिया और वर्तमान में उन्हीं की कंपनी में 15 से 16 हजार की तनख्वाह पर काम करते हैं. उसी से हमलोगों का घर चलता है.