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इस पहलवान ने घर-घर हाथ फैलाया, नहीं थे ओलंपिक में जाने के लिए पैसे, मकान गिरवी रख भारत को दिलाया था मेडल

Tokyo olympic 2020, Olympic Count down, KD Jadhav : 15 जनवरी, 1926 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के गोलेश्वर नामक गांव में पहलवानों के परिवार में जन्मे जाधव के पिता उस समय के एक प्रसिद्ध पहलवान दादासाहेब जाधव ने 5 साल की उम्र में उन्हें फ्रीस्टाइल कुश्ती सीखने के लिए भेजी.

नॉ र्मन प्रिजार्ड द्वारा पेरिस 1900 ओलिंपिक की व्यक्तिगत स्पर्धा में दो मेडल जीतने के बाद 1948 तक सिर्फ हॉकी ने भारत को मेडल दिलाये. 1952 में व्यक्तिगत स्पर्धा में इस पदक के सूखे को खत्म किया पहलवान खाशाबा दादासाहेब जाधव ने. पहलवानों के परिवार में जन्म लेनेवाले जाधव के पास हेलसिंकी ओलिंपिक में भाग लेने जाने के लिए पैसे नहीं थे. घर-घर हाथ फैलाया, मकान गिरवी रखी. फिर शानदार प्रदर्शन कर व्यक्तिगत स्पर्धा में पदक जीतनेवाले स्वतंत्र भारत के पहले एथलीट बन गये.

ओलिंपिक में तिरंगा लहराने का लिया था प्रण

15 जनवरी, 1926 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के गोलेश्वर नामक गांव में पहलवानों के परिवार में जन्मे जाधव पांच बेटों में सबसे छोटे थे. उनके पिता उस समय के एक प्रसिद्ध पहलवान दादासाहेब जाधव ने 5 साल की उम्र में उन्हें फ्रीस्टाइल कुश्ती सीखने के लिए भेजी. कुश्ती तो इनकी रगों में दौड़ती थी. आठ साल के हुए तो अपने इलाके के सबसे धाकड़ पहलवान को महज दो मिनट में धूल चटा दी. थोड़ा बड़े हुए और वक्त आजादी के लिए संघर्ष का आया, तो सब छोड़छाड़ खुद को इसमें झोंक दिया. देश आजाद हुआ. हर ओर तिरंगा लहरा रहा था. इनके अंदर का पहलवान फिर जाग गया. प्रण लिया कि विश्व की सबसे बड़ी प्रतियोगिता यानी ओलिंपिक में तिरंगा लहराऊंगा और तिरंगा लहराके ही माने.

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खाशाबा दादासाहेब जाधव की ऊंचाई 5.5 फीट थी. वह ज्यादा लंबे नहीं थे, लेकिन बहुत फुर्तीले थे. 23 साल की उम्र में महाराष्ट्र के कोल्हापुर में राजा राम कॉलेज में काफी अनुरोध के बाद उन्हें वार्षिक स्पोर्ट्स मीट में हिस्सा लेने का मौका मिला. अपने से ताकतवर प्रतिद्वंद्वियों को भी हरा कर उन्होंने अपने खेल का लोहा मनवाया. जाधव बेहतर तकनीक के दम पर कई राज्यस्तरीय और राष्ट्रीय खिताब जीते. राजा राम कॉलेज में उस इवेंट को जीतने के बाद कोल्हापुर के महाराज उनसे बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने जाधव को लंदन 1948 ओलिंपिक में हिस्सा लेने के लिए आर्थिक सहायता की.

लंदन में छठे स्थान पर आये

जाधव लंदन 1948 ओलिंपिक में कमाल नहीं दिखा सके. इस बार भी हॉकी में भारत गोल्ड मेडल जीतने में सफल रहा था. व्यक्तिगत स्पर्धा में अन्य खिलाड़ियों का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा. 52 किलो की कैटेगरी में वो लंदन ओलिंपिक में छठे नंबर पर आये. पहली बार बड़े मंच पर हारने के बाद उन्होंने और अधिक मेहनत करने का फैसला किया. हर चार घंटे के लिए दिन में दो बार प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया. उनके देसी मगर फुर्तीले दांवपेच देखकर ही उन्हें अमेरिका के पूर्व कुश्ती विश्व चैंपियन रईस गार्डनर ने कोचिंग भी दी. लखनऊ में दो बार के राष्ट्रीय फ्लाइवेट चैंपियन निरंजन दास को हराने के बाद जाधव को 1952 ओलिंपिक गेम्स के लिए क्वालिफाइ कर लिया.

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