नंदीग्राम में दांव पर दिग्गजों की प्रतिष्ठा, कौन मारेगा बाजी? ममता और शुभेंदु के बीच हो सकता है संग्राम
Paschim Bengal Chunav 2021: कांग्रेस जब सत्ता में थी, तो उस वक्त खाद्य आंदोलन की बुनियाद इसी जिले से पड़ी थी और कांग्रेस को राज्य की सत्ता से बेदखल होना पड़ा था. इसके बाद का दौर वाम मोर्चा का आया, तो यह इलाका वामपंथियों के लिए मजबूत किला बन गया. नंदीग्राम में ममता बनर्जी के आंदोलन ने राज्य की राजनीति का पासा पलट दिया और बुद्धदेव भट्टाचार्य की सरकार को सत्ता से बेदखल होना पड़ा.
कोलकाता (नवीन कुमार राय) : पश्चिम बंगाल की राजनीति में नंदीग्राम सीट अति महत्वपूर्ण हो गयी है. शुरू से ही मेदिनीपुर जिले को पश्चिम बंगाल की राजनीति में ‘गेमचेंजर’ माना जाता रहा है. उसकी वजह है, यहां के लोगों की राजनीतिक जागरूकता. स्वाधीनता आंदोलन से लेकर अभी तक मेदिनीपुर जिला राजनीति के आंगन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है.
कांग्रेस जब सत्ता में थी, तो उस वक्त खाद्य आंदोलन की बुनियाद इसी जिले से पड़ी थी और कांग्रेस को राज्य की सत्ता से बेदखल होना पड़ा था. इसके बाद का दौर वाम मोर्चा का आया, तो यह इलाका वामपंथियों के लिए मजबूत किला बन गया. नंदीग्राम में ममता बनर्जी के आंदोलन ने राज्य की राजनीति का पासा पलट दिया और बुद्धदेव भट्टाचार्य की सरकार को सत्ता से बेदखल होना पड़ा.
राज्य की कमान ममता बनर्जी के हाथ में आ गयी. लगातार दो बार राज्य की सत्ता में आने के बाद ममता बनर्जी को इस बार इसी नंदीग्राम से कड़ी टक्कर मिल रही है. वजह बने हैं शुभेंदु अधिकारी. कभी ममता के लिए यहां पर राजनीतिक जमीन बनाने वाले शुभेंदु अधिकारी, उनसे इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने पार्टी का दामन छोड़कर भाजपा का झंडा थाम लिया.
मुश्किलों में घिरी पार्टी की नैया को डूबने से बचाने के लिए ममता बनर्जी ने खुद नंदीग्राम विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का एलान कर दिया. इसका मतलब यह है कि ममता पूरे प्रदेश को यह संदेश देना चाहतीं हैं कि शुभेंदु के पार्टी छोड़ने से तृणमूल कांग्रेस पर कोई असर नहीं पड़ रहा है.
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2006 में बंगाल की राजनीति में 235 सीट लेकर बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व में सत्ता में आनेवाली वाम मोर्चा सरकार को वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त मिली थी. ममता बनर्जी सत्ता में आयीं, तो उस वक्त नंदीग्राम के भूमिपुत्र व राज्य के मत्स्य मंत्री किरणमय नंदा ने कहा था कि राज्य कि राजनीति में सिंगूर आंदोलन से कितना फर्क पड़ेगा, यह कहा नहीं जा सकता.
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मेदिनीपुर की जनता और नंदीग्राम को लेकर इतना तय है कि यहां के लोग जिद्दी और साहसी होते हैं. वे हवा का रुख मोड़ना जानते हैं. उस दौर में पुलिस की गोली और अत्याचार ने वाम मोर्चा के खिलाफ पूरे राज्य में एक माहौल बना दिया. उसके बाद से ही बुद्धदेव भट्टाचार्य का राजनीतिक कैरियर खत्म हो गया.
हालांकि, ममता बनर्जी ने जब नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का एलान किया, तो जवाब में शुभेंदु ने कहा कि वह इस सीट से सुश्री बनर्जी को आधा लाख (50 हजार) से भी ज्यादा वोट से हरायेंगे. उधर, ममता बनर्जी का दावा है कि पार्टी में जो कमियां हैं, उन्हें दूर किया जायेगा, क्योंकि इस क्षेत्र में 40 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री अपना वोट बैंक मानती हैं. यहां मुकाबले को संयुक्त मोर्चा ने और दिलचस्प बना दिया है. उसने अब्बास सिद्दिकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट को यह सीट गठबंधन के तहत दे दी है.
अब्बास सिद्दीकी की काट के रूप में ममता बनर्जी ने अजमेर शरीफ की दरगाह से ताल्लुक रखने वाले हुसैनी दरगाह के हुजूर सज्जाद नशीं से संपर्क कर उन्हें अपने पक्ष में किया है. तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि ममता बनर्जी को हुजूर सज्जाद नशीं ने चुनाव में समर्थन देने का आश्वासन दिया है. ऐसे में यदि यहां त्रिकोणीय मुकाबला हो जाये, तो परिणाम कुछ भी हो सकता है.
बंगाल में 27 मार्च से 29 अप्रैल के बीच 8 चरणों में चुनाव कराये जायेंगे. पूर्वी मेदिनीपुर के नंदीग्राम में दूसरे चरण में 1 अप्रैल को मतदान है. ममता बनर्जी खुद इस सीट से चुनाव लड़ रही हैं और 10 मार्च को वह हल्दिया में अपना नामांकन दाखिल करेंगी. इससे पहले 9 मार्च को नंदीग्राम में वह वोटरों से संपर्क करेंगी.
Posted By : Mithilesh Jha