15 करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म देख सकेंगे पर्यटक, साहिबगंज के फॉसिल्स पार्क में Eco Tourism की शुरुआत
राजमहल की पहाड़ियों में अवस्थित साहिबगंज के गुर्मी पहाड़ पर अवस्थित फॉसिल पार्क एवं ऑडिटोरियम सह म्यूजियम का उद्घाटन सीएम हेमंत सोरेन ने किया. इसके साथ ही पर्यटक 15 करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म को देख सकेंगे. साथ ही ब्रह्मांड की संरचना के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेंगे.
Jharkhand News: साहिबगंज जिले के राजमहल पहाड़ी क्षेत्र के मंडरो प्रखंड स्थित तारा पहाड़ एवं गुरमी पहाड़ पर करोड़ों वर्ष पुराने बिखरे पड़े जीवाश्म की सुरक्षा के लिए एक अच्छे पार्क का निर्माण किया गया है. यहां कई बार कई टूरिस्ट भू-वैज्ञानिकों का आगमन हो चुका है. राजमहल पर्वत श्रृंखला के मंडरो प्रखंड क्षेत्र के भुतहा वन चप्पा धौकुट्टी में अपरलेयर मोड वाले जीवाश्म की खोज हुई है. कहा जाता है कि इन पहाड़ी क्षेत्रों में डॉ बीरबल साहनी ने 14 प्रकार के जीवाश्म की पहचान की थी.
ऑडिटोरियम सह म्यूजियम का उद्घाटन
इसकी जानकारी केंद्र और राज्य सरकार को दी गयी. राज्य सरकार ने पहल करते हुए यहां घेराबंदी कराने का निर्णय लिया. यही वजह है कि अब फॉसिल्स का अस्तित्व खतरे से बाहर करने के लिए गुरमी पहाड़ पर चारदीवारी निर्माण के साथ-साथ फॉसिल्स की सुरक्षा के लिए करोड़ों की लागत से एक पार्क का निर्माण कराया गया है. पिछले दो साल से यहां पर जीवाश्म की सुरक्षा के लिए घेराबंदी कर फॉसिल्स को सुरक्षित किया जा रहा है. यहां ऑडिटोरियम सह म्यूजियम की व्यवस्था की गयी. सीएम हेमंत सोरेन ने 30 जून, 2022 को ऑडिटोरियम सह म्यूजियम का उद्घाटन किया.
पर्यटकों के लिए आकर्षक का केंद्र है फॉसिल पार्क
बताया गया है कि राजमहल की पहाड़ी क्षेत्र आश्चर्यजनक, जीवनदायिनी वनस्पति, औषधि एवं जीवाश्म से भरी पड़ी है. काफी समय से दूसरे राज्य से मंडरो प्रखंड की पहाड़ियों से दवाइयां बनाने के लिए जड़ी-बूटी लेने आते थे. अब गुरमी पहाड़ को पूरी तरह से सुरक्षित कर रखा जा रहा है, ताकि लोग दूर-दराज से यहां आकर फॉसिल्स पार्क का लुफ्त उठा सके. यहां पर टूरिस्ट के आगमन की पूरी व्यवस्था पार्क में किया गया है. लोगों के लिए मंडरो प्रखंड के गुरमी पहाड़ पर फॉसिल पार्क आकर्षक का केंद्र बना हुआ है. तारा पहाड़ पर बिखरे पड़े फॉसिल्स प्रचुर मात्रा में पाये गये हैं.
फॉसिल्स पार्क में क्या है सुविधा
पर्यटकों के लिए फॉसिल्स पार्क में म्यूजियम के साथ-साथ विजुअल ऑडिटोरियम की व्यवस्था है, ताकि यहां घूमने आने वाले लोग को पहले ऑडिटोरियम के माध्यम से ब्रह्मांड की संरचना के बारे में दिखाया जाएगा. उसी के माध्यम से लोगों को जानकारी भी मिलेगी कि किस प्रकार से हमारे ब्रह्मांड की संरचना हुई है और करोड़ों वर्ष से बिखरे पड़े फॉसिल्स की किस प्रकार से वैज्ञानिकों द्वारा खोज किया गया है. यहां पर आने वाले लोगों को रेस्टोरेंट, गेस्ट हाउस सहित अन्य चीजों की भी सुविधा मिल सकेगी. इस कार्य में मंडरो वन क्षेत्र पदाधिकारी जितेंद्र दुबे की भी इस फॉसिल्स पार्क निर्माण में अहम भूमिका रही है. उनका कहना है कि मंडरो की फॉसिल्स पार्क प्रकृति की गोद में बसा है. फॉसिल्स पार्क हर संभव लोगों का मन मोहेगा. यहां पर पक्षियों की चहकती आवाज पर्यटकों को खूब लुभाएगी.
कभी राजमहल की पहाड़ियों में लहराता था समंदर
झारखंड के गोड्डा, साहिबगंज, देवघर, दुमका और पाकुड़ में फैली राजमहल की पहाड़ियां. जीवाश्म के रूप में यहां कदम-कदम पर जैव प्रजातियों के क्रमिक विकास के साक्ष्य बिखरे हैं. पेड़-पौधों के ये जीवाश्म करीब 280 मिलियन वर्ष पुराने हैं. तब यहां समंदर भी लहराता था. चौंकिए नहीं, यह हकीकत है. लखनऊ के बीरबल साहनी पुरावनस्पतिविज्ञान संस्थान (Birbal Sahni Institute of Palaeosciences) की टीम ने शोध में इसे साबित किया है. गोंडवाना बेसिन की राजमहल पहाड़ियों में स्थित गोड्डा के ललमटिया इलाके में मौजूद कोयला भंडार के ऊपर शैल परतों में मिले जीवाश्मों का अध्ययन कर इसके सबूत तलाशे हैं. यह खोज पारिस्थितिकी तंत्र में होने वाले बदलाव, नई प्रजातियों की उत्पत्ति, मौसम परिवर्तन समेत कई गूढ़ विषयों को समझने में मदद करेगी.
नमी के साथ तापमान था ज्यादा
बकौल डॉ पिल्लई और डॉ रणजीत कहते हैं कि उस समय राजमहल की पहाड़ियों का वातावरण आज के मौसम से काफी हद तक अलग थी. तब तापमान ज्यादा था. हवा में नमी भी अधिक थी. कार्बन डाईऑक्साइड का प्रतिशत आज की तुलना में अधिक था. कार्बन डाईऑक्साइड की अधिक मात्रा तापमान की अधिकता की कारण थी. तब यहां जलस्त्रोत मीठे जल वाले थे. समुद्र के प्रवेश के बाद स्थितियां बदल गयी. हर ओर बस खारा पानी ही था.
रिपोर्ट : गुड्डू रजक, साहिबगंज.