गोरखपुर में छिपा है स्वाद का खजाना, फेमस है ‘बुढ़ऊ चाचा की बर्फी’ से लेकर मिठाई की ये दुकानें

गोरखपुर, संस्कृति और इतिहास में जितनी विभिन्नता रखता है उतना ही खानपान में भी. यहां कई ऐसी दुकान और रेस्टोरेंट मौजूद हैं. जो अपनी अलग-अलग क्वालिटी के स्वीट्स के रूप में पहचान रखते हैं. यहां जानेंगे शहर के मशहूर पूरानी दुकानों के बारें में.

By Sandeep kumar | August 24, 2023 3:00 PM

Gorakhpur: पूर्वांचल का शहर गोरखपुर अपने विविध व्यंजनों के लिए भी जाना जाता है. यहां कई ऐसी दुकान और रेस्टोरेंट मौजूद हैं. जो अपनी अलग-अलग क्वालिटी के स्वीट्स के रूप में पहचान रखते हैं. यहां आपको गोरखपुर शहर के दुकान और रेस्टोरेंट के बारे में जानकारियां देते हैं जो अपने स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए मशहूर हैं. गोरखपुर के असुरन चौराहे पर मौजूद उमेशा स्वीट्स की पहचान उसकी क्वालिटी और वैरिएशन के लिए है. दुकान पर हर वक्त करीब 50 से 60 वैरायटी की मिठाइयां मौजूद रहती हैं.

इस दुकान पर हेल्थ से रिलेटेड मिठाइयां भी बनाई जाती हैं. उसके साथ ही स्वाद का भी पूरा ध्यान रखा जाता है. पिछले 35 सालों से ये लोग इस दुकान को चला रहे हैं. वहीं इस दुकान पर हाइजीन का भी पूरा ध्यान रखा जाता है. दुकान संभालने वाले खुशाल खट्टर बताते हैं कि 1988 में उनके पिता प्रकाश चंद्र खट्टर ने इसकी शुरुआत की थी. उनके पिता खुद मिठाइयां अपने सामने बनवाते थे और हाइजीन का भी पूरा ध्यान रखते थे.

इसके साथ ही वह मिठाइयों के वेरिएशन पर ज्यादा काम किया करते थे. यहां पर सीजन के हिसाब से भी मिठाइयां बनाई जाती हैं. जैसे कि ठंडी में हेल्थ से रिलेटेड शोठ वाले लड्डू, ड्राई फ्रूट वाले लड्डू बनाए जाते हैं. इसके साथ ही और भी कई तरीके के हेल्दी स्वीट्स बनाएं जाते हैं.

लड्डू है इनकी खासियत

वैसे तो दुकान पर 50 से 60 तरह के मिठाइयां मौजूद रहती हैं, लेकिन इस दुकान की खास पहचान लड्डू के लिए ही है. खुशाल खट्टर बताते हैं कि उनके यहां की लड्डू सबसे स्पेशल होती है. वहीं लड्डू लेने के लिए ही दूर-दूर से कस्टमर उनके पास आते हैं. लड्डू को बनाने के लिए ये लोग अलग से रिफाइन भी खरीदते हैं, जो दूसरे स्टेट से मंगाया जाता है.

खुशाल बताते हैं कि लड्डू के साथ कलाकंद और बेसन वाले लड्डू भी लोग खूब पसंद करते हैं. उनके यहां मिठाइयों के दाम 200 से शुरू होकर करीब डेढ़ हजार से 2000 तक के होते हैं. उन्होंने फ्लेवर वाले लस्सी की भी शुरुआत की है, जिसका रिस्पांस भी बहुत अच्छा मिला है. इस एक लस्सी की कीमत 50 रुपये है.

बरगदवां के बुढ़ऊ चाचा की मशहूर है बर्फी

गोरखपुर के बरगदवां चौराहे पर पेट्रोल पंप के बगल में स्थित बुढ़ऊ चाचा की बर्फी की दुकान अपनी शुद्धता के लिए जानी जाती है. उनकी बर्फी पांच दशक से अपनी विश्वसनीयता बरकरार रखते हुए लोगों के जुबां पर राज कर रही है. दूध, दही, लस्सी, ताजा पनीर, देशी घी, खोवा और खोवे से बनी बर्फी इस दुकान की खासियत है. रोजाना लगभग तीन क्विंटल दूध से खोवा बनाया जाता है और इसे बेचा जाता है.

करीब 400 रुपये प्रति किलो मिलने वाली इस मिठाई के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं और मिठाइयां लेकर जाते हैं. यहां से गुजरने वाले हर अधिकारी और नेता भी यहां की बर्फी खाए बगैर आगे नहीं बढ़ते. सीएम योगी को भी इस दुकान के बने मिठाई पसंद है. पीएम मोदी इस दुकान के बर्फी का स्वाद चख प्रभावित हुए थे. बुढ़ऊ चाचा तो अब रहे नहीं, उनके नाती राकेश चौधरी अपने नाना की बनाई साख को बचाए रखने का बीड़ा उठाए हुए हैं.

क्वालिटी जलपान घर

गोरखपुर के गोलघर में बैंक ऑफ बड़ौदा के बगल में स्थित क्वालिटी जलपान घर अपने राजमा चावल, छोले भटूरा खीर और हलवा पूरी के लिए मशहूर है. यहां खाने की क्वालिटी से कोई समझौता नहीं होता. यहां के स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद लोगों को खूब पसंद आता है.

प्रिया मिष्ठान केंद्र मशहूर है बंगाली समोसे के लिए

गोरखपुर के बेनीगंज चौराहे के करीब का प्रिया टाकिज मानस बगल में मौजूद प्रिया नाम की मिठाई और समोसे की दुकान से बिकने वाले बंगाली अंदाज के समोसे का स्वाद इतना लाजवाब है कि चार दशक से भी अधिक समय से यह ग्राहकों की जुबां पर राज कर रहा है. देशी घी में तले आलू और दाल के छोटे-छोटे समोसों की मांग इस कदर है कि सुबह में एक बजे से बनना शुरू होता है और शाम पांच बजते-बजते एक भी नहीं बचता.

बंगाली कारीगर की सलाह पर हुई शुरुआत

दुकान के मालिक अनिल कुमार बरनवाल बताते हैं कि उन्होंने वह दुकान 1982 में खोली थी. उस समय प्रिया टाकिज अपने चरम पर था. इसलिए दुकान ग्राहकों द्वारा हाथों-हाथ ली गई. समोसे से दुकान की पहचान की चर्चा में अनिल ने बताया कि जब उन्होंने दुकान खोली तो समोसे के लिए कारीगर खोजने के क्रम में उनकी मुलाकात एक बंगाली कारीगर से हुई, जिसके पास उन दिनों काम नहीं था.

ऐसे में काम का आफर उसने तुरंत स्वीकार कर लिया और देशी घी में छोटे बंगाली समोसे बनवाने की सलाह दी. अनिल को यह सलाह भा गया और शुरू हुआ खास किस्म के समोसे बनने का सिलसिला. इमली व पंचफोरन की चटनी के साथ परोसा समोसा ग्राहकों को भाने लगा तो दुकान की पहचान समोसे से जुड़ती चली गई

वहीं, गोरखपुर के बालापार में स्थित मोछू का छोला की दुकान, ‘भगवती की चाट’, ‘बनारसी का कचालू’ और ‘बंसी की कचौड़ी’ का भी कोई जोड़ नहीं है.

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