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राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव में जनजातीय कलाकारों ने नृत्य से जीवंत की आदिवासी संस्कृति

कलाकारों ने नृत्य के माध्यम से आदिवासी संस्कृति, परंपरा को जीवंत किया. कलाकारों ने पश्चिम ओडिशा का प्रसिद्ध गुडका नृत्य, झारखंड का मुंडारी, मागे व संथाली नृत्य नृत्य पेश किए. असम का प्रसिद्ध बिहु नृत्य आकर्षण का केंद्र बना रहा.

बड़बिल, शचिंद्र कुमार दाश. झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले से सटे क्योंझर(ओडिशा) के बड़बिल के उत्सव मैदान में सर्व भारतीय आदिवासी कम्युनिटी के तत्वावधान में तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव का आयोजन किया गया है. इस मौके पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. देशभर से आये जनजातीय कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से समां बांधा.

कलाकारों ने नृत्य के माध्यम से आदिवासी संस्कृति, परंपरा को जीवंत किया. कलाकारों ने पश्चिम ओडिशा का प्रसिद्ध गुडका नृत्य, झारखंड का मुंडारी, मागे व संथाली नृत्य नृत्य पेश किए. असम का प्रसिद्ध बिहु नृत्य आकर्षण का केंद्र बना रहा. पूर्वोत्तर राज्यों की कई नृत्य टीमों ने भी नृत्य पेश किया. जनजातीय नृत्यों को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी.

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इस दौरान मुख्य रूप से सर्व भारतीय आदिवासी कम्यूनिटी के अध्यक्ष पुरुषोत्तम गागराई, उपाध्यक्ष सुखराम पाहन, सचिव जगन्नाथ टुटी, रोहित मुंडा, रसानंद बेहरा, त्रिबिक्रम नायक, जगन्नाथ टूटी, हिमांशु सुलांकी, बबलू मुंडा, सोहन लाल हुराद, रमेश सुलांकी, सुखराम पहान, दुबराज हेमब्रम, सौरव नाग, निर्मल नाग, अनंत टुडू, घसीनाथ ओराम, सजल नाग, डुमरुधर बारीक़, रमेश नाग आदि उपस्थित थे.

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