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छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाबी माने जाते हैं आदिवासी सीट, बीजेपी ने कैसे किया कब्जा, पढ़ें पूरा एनालिसिस

छत्तीसगढ़ में आदिवासी सीट सत्ता की चाबी माने जाते हैं, इस बार ये भाजपा के पाले में हैं. 2003 में छत्तीसगढ़ के पहले चुनाव में भी भाजपा ने आदिवासियों के बीच गहरी पैठ बनाई थी, लेकिन 2013 के चुनावों में आदिवासी मतदाता भाजपा से दूर हो गए थे. इस बार बीजेपी ने कैसे जीत हासिल की, इस पूरा एनालिसिस पढ़ें.

Chhattisgarh Election Results 2023: छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाबी माने जाने वाले आदिवासी सीटों पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है और 29 में 17 आदिवासी सीट जीत ली है. चुनाव विश्लेषकों के मुताबिक, आदिवासी इलाकों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा की रैलियां, आदिवासी इलाकों से पार्टी की दो परिवर्तन यात्राओं की शुरुआत और चुनाव पूर्व वादों ने भाजपा के पक्ष में काम किया है. छत्तीसगढ़ की 90 सदस्यीय विधानसभा में 29 सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं. राज्य की लगभग 32 फीसदी आबादी आदिवासियों की है. कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में 25 आदिवासी सीटों पर जीत हासिल की थी. इस बार यह घटकर 11 रह गई. भाजपा ने 2018 में अपनी संख्या तीन से बढ़ाकर 17 कर ली है, जबकि एक सीट गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को मिली है.

चुनाव विश्लेषक कृष्णा दास ने कहा, ‘‘आदिवासियों को राज्य में सरकार बनाने में महत्वपूर्ण माना जाता है. आदिवासी कल्याण के लिए कई कदम उठाने के बावजूद कांग्रेस इस बार उनका समर्थन बरकरार नहीं रख सकी.’’ उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में राज्य के आदिवासी बहुल इलाकों, विशेषकर बस्तर संभाग में धर्म परिवर्तन को लेकर आदिवासियों और ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों के बीच झड़प और मारपीट की कई घटनाएं सामने आई हैं. दास ने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान यह मुद्दा सत्ताधारी दल कांग्रेस को परेशान करता रहा क्योंकि भाजपा के शीर्ष नेताओं ने अपने चुनाव प्रचार में आक्रामक तरीके से भूपेश बघेल सरकार पर धर्मांतरण में शामिल लोगों को संरक्षण देने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि सरगुजा और बस्तर संभाग के आदिवासी इलाकों में भी खनन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन देखा गया. दास ने कहा कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) और हमर राज पार्टी (हाल में सर्व आदिवासी समाज द्वारा गठित एक संगठन) ने भी कई एसटी आरक्षित सीटों पर कांग्रेस की संभावनाओं को प्रभावित किया.

कांग्रेस के वरिष्ठ आदिवासी नेताओं को भी करना पड़ा हार का सामना

राज्य गठन के बाद से ही सीतापुर-एसटी सीट पर अजेय रहे कांग्रेस के वरिष्ठ आदिवासी मंत्री अमरजीत भगत को इस बार हार का सामना करना पड़ा. एक अन्य वरिष्ठ आदिवासी नेता और कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम अपनी सीट कोंडागांव से हार गए. एसटी समुदाय के लिए आरक्षित सीटों से जीतने वाली वरिष्ठ भाजपा आदिवासी नेता केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह (भरतपुर-सोनहत), सांसद गोमती साय (पत्थलगांव), पूर्व केंद्रीय मंत्री विष्णुदेव साय (कुनकुरी), राज्य के पूर्व मंत्री- रामविचार नेताम (रामानुजगंज), केदार कश्यप (नारायणपुर) और लता उसेंडी (कोंडागांव) हैं. चुनाव से पहले अपनी नौकरी छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी नीलकंठ टेकाम केशकाल सीट से विजयी हुए.

आदिवासियों के बीच गहरी पैठ बनाने में कामयाब रही बीजेपी

वर्ष 2000 में राज्य बनने के बाद 2003 में छत्तीसगढ़ में हुए पहले चुनाव में भाजपा उन आदिवासियों के बीच गहरी पैठ बनाने में कामयाब रही, जो कभी कांग्रेस के कट्टर समर्थक माने जाते थे, लेकिन अगले चुनावों में भाजपा उन पर पकड़ खोती चली गई. वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में 90 सदस्यीय सदन में 34 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के लिए आरक्षित थीं. भाजपा ने तत्कालीन अजीत जोगी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को हराकर 25-एसटी आरक्षित सीटों सहित 50 सीटें जीतकर शानदार जीत दर्ज की थी, तब कांग्रेस ने नौ एसटी आरक्षित सीटें जीतीं थी. इसी तरह, वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने आदिवासियों के आशीर्वाद से 50 सीटें जीतकर फिर से सरकार बनाई, तब भाजपा ने 29-एसटी आरक्षित सीटों में से 19 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस ने 10 एसटी सीटें जीती थीं. वर्ष 2008 में हुए परिसीमन ने राज्य में एसटी आरक्षित सीटों को 34 से घटाकर 29 कर दिया था.

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2013 में भाजपा से दूर हो गए थे आदिवासी मतदाता

वर्ष 2013 के विधानसभा चुनावों में आदिवासी मतदाता भाजपा से दूर हो गए और उन्होंने कांग्रेस को भारी वोट दिया, लेकिन कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी. कांग्रेस 29 आदिवासी आरक्षित सीटों में से 18 जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन उसकी संख्या 39 तक ही सीमित रही. भाजपा 90 सदस्यीय सदन में 11 एसटी आरक्षित सहित 49 सीटें जीतकर लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में सफल रही. वर्ष 2018 में कांग्रेस ने रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के 15 साल के शासन को समाप्त करते हुए 90 सदस्यीय विधानसभा में 68 सीटें जीतकर शानदार जीत दर्ज की. भाजपा 15 सीटों पर सिमट गई थी जबकि जेसीसी (जे) और बसपा (बहुजन समाज पार्टी) को क्रमशः पांच और दो सीटें मिलीं. वर्ष 2018 में 29 एसटी आरक्षित सीटों में से कांग्रेस ने 25, भाजपा ने तीन और जेसीसी (जे) ने एक सीट जीती थी. बाद में कांग्रेस ने उपचुनाव में दो और एसटी आरक्षित सीटें मरवाही और दंतेवाड़ा जीत ली थी.

2023 के चुनाव से पहले भाजपा ने क्या किया

वर्ष 2023 का चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आया, भाजपा के स्टार प्रचारकों ने राज्य के आदिवासी बहुल इलाकों का दौरा करना शुरू कर दिया. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने बस्तर क्षेत्र में रैलियों को संबोधित किया था, जबकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आदिवासी बहुल जशपुर में भाजपा की दूसरी परिवर्तन यात्रा को हरी झंडी दिखाई थी. पार्टी की पहली परिवर्तन यात्रा आदिवासी बहुल दंतेवाड़ा जिले से निकाली गई. दास ने कहा कि भाजपा ने तेंदूपत्ता संग्राहकों, जो मुख्य रूप से आदिवासी हैं, को 4,500 रुपये तक वार्षिक बोनस के साथ 5,500 रुपये प्रति मानक बोरा पर तेंदूपत्ता खरीदने का वादा किया है. कांग्रेस ने भी तेंदू पत्ता संग्राहकों को चार हजार रुपये के वार्षिक बोनस के साथ तेंदू पत्ता के लिए छह हजार रुपये प्रति मानक बोरा देने का समान वादा किया था. इसके अलावा, प्रत्येक लघु वन उपज की खरीद पर प्रति किलोग्राम 10 रुपये अतिरिक्त देने का भी वादा किया गया था. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने एमएसपी (न्यूनत समर्थन मूल्य) पर खरीदे जाने वाले लघु वनोपजों की संख्या सात से बढ़ाकर 63 कर दी थी, लेकिन इसके बावजूद वह आदिवासियों का समर्थन नहीं जीत सकी.

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