20.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बंगाल: आदिवासी सेंगल अभियान ने दिखायी ताकत, राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने की ये मांग

आदिवासी सेंगल अभियान में लोगों की मांग थी कि झारखंड का मरांग बुरु (पारसनाथ पहाड़) को जैनियों से मुक्त कराया जाये. असम व अंडमान के सभी झारखंडी आदिवासियों को एसटी का दर्जा दिया जाये.

कोलकाता: आदिवासी सेंगल अभियान (एएसए) ने महानगर के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में जनसभा कर सरना धर्म कोड को मान्यता देने सहित विभिन्न मांगों के समर्थन में आवाज बुलंद की. ‘कोलकाता चलो’ अभियान के तहत बड़ी तादाद में समर्थक राज्य के अन्य जिलों के अलावा दूसरे राज्यों ओड़िशा, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, नगालैंड, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह से भी आये थे. सभा में नेपाल, भूटान व बांग्लादेश से भी समर्थक पहुंचे थे. आदिवासी सेंगल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने इस अवसर पर कहा कि भारत के लगभग 13 करोड़ आदिवासियों को सच्ची आजादी तभी मिलेगी, जब भारतीय संविधान में प्रदत्त आदिवासी अधिकारों को अमलीजामा पहनाया जायेगा.

ये हैं मांगें

आदिवासी सेंगल अभियान में लोगों की मांग थी कि झारखंड का मरांग बुरु (पारसनाथ पहाड़) को जैनियों से मुक्त कराया जाये. असम व अंडमान के सभी झारखंडी आदिवासियों को एसटी का दर्जा दिया जाये. इसके अलावा झारखंड की पहली सरकारी भाषा (राजभाषा) के तौर पर संथाली भाषा को मान्यता दी जाये. इसके अलावा 2006 का वन अधिकार कानून सुनिश्चित किया जाये. ट्राइबल सेल्फ रुल सिस्टम (टीएसआरएस) में सुधार की मांग की गयी. साथ ही कुर्मियों के एसटी स्टेटस की मान्यता का भी विरोध जताया गया.

सरना धर्म कोड को मिले मान्यता

आदिवासी सेंगल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने इस अवसर पर कहा कि भारत के लगभग 13 करोड़ आदिवासियों को सच्ची आजादी तभी मिलेगी, जब भारतीय संविधान में प्रदत्त आदिवासी अधिकारों को अमलीजामा पहनाया जायेगा. तभी उन्हें सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक आजादी मिलेगी. उन्होंने कहा कि 2011 की जनगणना में जब प्रकृति पूजक आदिवासियों ने लगभग 50 लाख की संख्या में सरना धर्म लिखाया था और जैन धर्म लिखाने वालों की संख्या लगभग 44 लाख थी. तब आदिवासियों को सरना धर्म कोड की मान्यता से अब तक वंचित क्यों किया गया है? उन्होंने कहा कि नया आदिवासी समाज बनाना जरूरी है. प्रत्येक आदिवासी गांव- समाज में व्याप्त नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा आदि को समाप्त करना होगा. इसके लिए आदिवासी स्वशासन व्यवस्था या ट्राइबल सेल्फ रूल सिस्टम में जनतांत्रिक और संवैधानिक सुधार भी अनिवार्य है, ताकि प्रत्येक आदिवासी गांव-समाज में वंशानुगत नियुक्त माझी परगना, मानकी मुंडा आदि की जगह गांव-समाज के सभी स्त्री-पुरुष मिलकर अपने स्वशासन के अगुआ का चयन कर कुप्रथाओं को दूर करते हुए प्रगतिशील समाज का निर्माण कर सकें. उन्होंने कहा कि यूनिफार्म सिविल कोड के मामले में आदिवासी सेंगल अभियान फिलहाल न समर्थन में है, न ही विरोध में है. वे संविधान के समर्थक हैं. समय पर अंतिम फैसला लेंगे. फिलहाल उन्हें सरना धर्म (प्रकृति पूजा) कोड चाहिए.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें