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कारीगर डिजायन को समझकर बाजार की जरूरत के लिए तैयार होंगे उत्पाद, आईआईटी कानपुर और आईआईसीडी के साथ हुआ समझौता

एमओयू स्थानीय कारीगरों को डिजाइन की समझ विकसित करने और बाजार की जरूरतों के अनुसार अपने उत्पादों की मांग बढ़ाने में मदद करेगा.

कानपुर: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर (IIT Kanpur) ने ग्रामीण कारीगरों को सशक्त बनाने और विभिन्न उत्पादों के लिए बाजार में मांग बढ़ाने के लिए भारतीय शिल्प और डिजाइन संस्थान, जयपुर (आईआईसीडी) के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं. समझौता ज्ञापन पर आईआईटी कानपुर के डीन ऑफ रिसर्च एंड डेवलपमेंट प्रो. ए.आर. हरीश और आईआईसीडी की निदेशक डॉ. तूलिका गुप्ता के बीच हस्ताक्षर किए गए. एमओयू स्थानीय कारीगरों को डिजाइन की समझ विकसित करने और बाजार की जरूरतों के अनुसार अपने उत्पादों की मांग बढ़ाने में मदद करेगा.

रंजीत सिंह रोज़ी शिक्षा केंद्र मिशन की नोडल एजेंसी 

आईआईटी कानपुर की ओर से, रंजीत सिंह रोज़ी शिक्षा केंद्र (आरएसके) एमओयू उद्देश्यों के कार्यान्वयन की देखरेख करेगा.आरएसके आईआईटी कानपुर कई वर्षों से ग्रामीण समुदायों और कारीगरों के साथ काम कर रहा है, जिसका उद्देश्य उनकी आजीविका का उत्थान करना है. केंद्र आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करता है और ग्रामीण युवाओं के बीच उद्यमशीलता को बढ़ावा देता है. जिससे वे उच्च गुणवत्ता वाले परिधान, बैग, पोटली और पाउच, मिट्टी के बर्तन और खाने के लिए तैयार स्नैक्स का उत्पादन करने में सक्षम होते हैं.आईआईटी कानपुर ने स्थानीय और ग्रामीण उत्पादों की बाजार अपील को बढ़ाने में डिजाइन इनपुट के महत्व को ध्यान में रखते हुए आईआईसीडी के साथ इस सहयोग की शुरुआत की है.आईआईसीडी का भारत में एक प्रसिद्ध शिल्प और डिजाइन संस्थान होने के नाते पूरे देश में शिल्प क्षेत्र को सशक्त बनाने का एक समृद्ध इतिहास है. यह सहयोग कारीगरों के उत्पादों की अपील बढ़ाने के लिए उनकी विशेषज्ञता को उनके करीब लाएगा.

रिसर्च के बाद तैयार होंगे डिजायन

इस सहयोग का प्राथमिक उद्देश्य पारंपरिक कला और शिल्प रूपों को संरक्षित करना उन्नत प्रक्रियाओं को विकसित करना और स्थानीय रूप से निर्मित उत्पादों के लिए अभिनव डिजाइन तैयार करना है. जिससे कारीगरों, शिल्प समुदायों और उपभोक्ताओं के बीच एक मजबूत संबंध स्थापित हो सके. आईआईटी कानपुर और आईआईसीडी ने इन उत्पादों को अधिक उपयोगी और विपणन योग्य बनाने के उद्देश्य से शिल्प क्षेत्र के भीतर अनुसंधान डिजाइन और विकास पर सहयोगात्मक रूप से काम करने की योजना बनाई है.एमओयू पर हस्ताक्षर करने पर आईआईटी कानपुर के डीन ऑफ रिसर्च एंड डेवलपमेंट प्रोफेसर ए आर हरीश ने कहा कि हमें इस परिवर्तनकारी पहल पर भारतीय शिल्प और डिजाइन संस्थान जयपुर के साथ सहयोग करके खुशी हो रही है. शिल्प और डिजाइन क्षेत्र में उनकी समृद्ध विरासत के साथ अनुसंधान डिजाइन और विकास में हमारी विशेषज्ञता को जोड़कर हमारा लक्ष्य पारंपरिक कला रूपों को संरक्षित करके और विपणन योग्य उत्पाद बना कर ग्रामीण कारीगरों को सशक्त बनाना है. हमें उम्मीद है कि यह साझेदारी उत्तर प्रदेश में सामाजिक-आर्थिक विकास में बड़े पैमाने पर योगदान देगी.

शिल्प समुदायों के बीच डिजाइन सोच की संस्कृति विकसित होगी

उत्तर प्रदेश के शिल्प और हस्तनिर्मित उत्पाद क्षेत्र के भीतर डिजाइन सोच के विकास को बढ़ावा देने के लिए आईआईटी कानपुर और आईआईसीडी छात्र विनिमय कार्यक्रमों संयुक्त परियोजनाओं और सहयोगी गतिविधियों में शामिल होंगे. दोनों संस्थानों की विशेषज्ञता और संसाधनों का लाभ उठाकर यह पहल पूरे राज्य में कारीगरों और शिल्प समुदायों के बीच डिजाइन सोच की संस्कृति विकसित करने का प्रयास करेगी.सहयोग का प्रारंभिक फोकस अधिक बाजार अपील के साथ उत्पाद लाइन विकसित करने के लिए बिठूर के कुम्हारों के एक चुनिंदा समूह के साथ काम करने पर होगा.इसके बाद, परियोजना में धीरे-धीरे एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना के तहत उत्पादित विभिन्न उत्पादों को शामिल किया जाएगा.आईआईटी कानपुर और आईआईसीडी के बीच सहयोग से ग्रामीण कारीगरों को सशक्त बनाने पारंपरिक कला रूपों को संरक्षित करने और उनके उत्पादों की विपणन क्षमता बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं.ज्ञान कौशल और संसाधनों के संयोजन से इस साझेदारी का उद्देश्य ग्रामीण समुदायों के लिए स्थायी अवसर पैदा करना है. साथ ही उत्तर प्रदेश के सामाजिक-आर्थिक विकास में सहायता करना है.

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