Union Budget 2023 : केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को बजट 2023 पेश करेंगी. इस साल के बजट से किसानों और कृषि क्षेत्र से जुड़े कामगारों और कारोबारियों की उम्मीदें काफी हैं. आपको बता दें कि बजट, सरकार और अर्थव्यवस्था के लिए कृषि क्षेत्र बेहद महत्वपूर्ण है. इसका कारण यह है कि खेती-किसानी से देश-दुनिया के लोगों का न केवल पेट भरता है, बल्कि यह रोजगार प्रदान करने का सबसे बड़ा संसाधन भी है. कृषि क्षेत्र के साथ किसानों के अलावा कामगार, वैज्ञानिक और कारोबारी-उद्यमी भी जुड़े हैं. इसलिए, इसका दायरा बड़ा है. आइए, जानते हैं कि बजट, सरकार और अर्थव्यवस्था के लिए कृषि क्षेत्र बेहद महत्वपूर्ण क्यों है?
बता दें कि भारत में कृषि क्षेत्र की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 15 फीसदी हिस्सेदारी है, लेकिन इस क्षेत्र में 40 फीसदी से अधिक भारतीय श्रमिकों को रोजगार मिलता है. वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार द्वारा किए गए सबसे महत्वाकांक्षी वादों में से एक 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना था. नवीनतम स्थिति आकलन सर्वेक्षण (एसएएस) के साक्ष्य से पता चलता है कि खेती-किसानी अब भी संकटग्रस्त है और तेजी से किसानों के लिए एक सीमांत व्यवसाय बनता जा रहा है. जहां तक सरकारी खर्च का संबंध है और बजट की बात है, आप इन पांच बिंदुओं के माध्यम से बेहतरीन तरीके से समझ सकते हैं.
एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2022-23 के बजट अनुमान के अनुसार, कृषि मंत्रालय का वार्षिक खर्च 1.33 लाख करोड़ रुपये का है. 2022-23 के केंद्रीय बजट के लिए कृषि और संबद्ध गतिविधियों पर खर्च करने के लिए 1.5 लाख करोड़ रुपये का प्रस्ताव किया गया था. एक मोटी गणना से पता चलता है कि इस संख्या में जल शक्ति मंत्रालय और कुछ अन्य छोटे मदों के तहत सिंचाई पर खर्च शामिल हो सकता है. निश्चित रूप से कृषि पर केंद्र सरकार का वास्तविक खर्च इस राशि से कहीं अधिक है. इसकी वजह दो प्रमुख सब्सिडी मदों, भोजन और उर्वरक पर खर्च करना है.
भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर किसानों से खरीदे गए अनाज का उपयोग करती है, जिसे लाभार्थियों को शून्य लागत पर वितरित किया जाता है. इसी तरह, सरकार किसानों को सस्ते उर्वरक उपलब्ध कराने के लिए उर्वरक निर्माताओं को सब्सिडी देती है, जबकि यह सारा खर्च सीधे किसानों तक नहीं पहुंचता है. इसका एक बड़ा हिस्सा उन्हें लाभ पहुंचाता है. इसलिए, किसानों को केंद्र सरकार के समर्थन के समग्र उपाय में इन मदों पर खर्च किए गए धन को शामिल किया जाना चाहिए. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) डेटा कृषि और संबद्ध गतिविधियों पर विभिन्न मदों के तहत खर्च का एक अलग वर्गीकरण प्रदान करता है. इससे पता चलता है कि कृषि पर कुल खर्च कृषि मंत्रालय के वार्षिक आवंटन की तुलना में काफी अधिक रहा है.
रिपोर्ट के अनुसार, औसत भारतीय किसानों की स्थिति से ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार की ओर से कृषि क्षेत्र के लिए अनुमानित बजट काफी कम है. कृषि अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) के लिए मामूली आवंटन में देखा जा सकता है. वित्त वर्ष 2022-23 में इस मद में केंद्र सरकार का खर्च 8,013 करोड़ था, जो कृषि मंत्रालय द्वारा कुल खर्च का सिर्फ 6.4 फीसदी है. कृषि अनुसंधान एवं विकास पर सरकारी खर्च महत्वपूर्ण है, क्योंकि उद्योग के मामले के विपरीत किसानों के पास इस तरह की गतिविधि को स्वयं करने के लिए आर्थिक संसाधन नहीं होते हैं. सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार, कृषि पर कुल पूंजीगत व्यय वर्ष 2022-23 में केवल 1.1 फीसदी था, जो इसमें अन्य मंत्रालयों द्वारा किया गया खर्च भी शामिल है. यह केंद्र सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय के समग्र हिस्से 19 फीसदी से काफी कम है.
रिपोर्ट के अनुसार, तकनीकी तौर कृषि संविधान में राज्य सूची के अंतर्गत है. हालांकि, खाद्य सुरक्षा के सामरिक विचारों और क्षेत्र के राजनीतिक महत्व ने यह सुनिश्चित किया है कि राज्यों द्वारा कुल मिलाकर जितना खर्च किया जाता है, केंद्र उससे कहीं अधिक इस क्षेत्र पर खर्च करता है. यह समग्र सरकारी खर्च के मामले के विपरीत है, जहां राज्य अब केंद्र से अधिक खर्च करते हैं. जब सरकार ने 2019 में पीएम-किसान योजना की घोषणा की, तो कुल कृषि खर्च में केंद्र की हिस्सेदारी को बड़ा बढ़ावा मिला.
कृषि पर कुल सरकारी खर्च में केंद्र का बहुमत हिस्सा है, राज्य के खर्च को बिल्कुल भी महत्वहीन नहीं माना जा सकता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि सरकार के दो स्तरों की खर्च प्राथमिकताएं काफी अलग हैं. सीएमआईई आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि महत्वपूर्ण कृषि और संबद्ध गतिविधियों जैसे पशुपालन, डेयरी विकास और मत्स्य पालन में केंद्रीय खर्च की तुलना में राज्य का खर्च बहुत बड़ा है.
रिपोर्ट के में कहा गया है कि कुल कार्यबल में कृषि का महत्व और किसानों की हिस्सेदारी भारतीय राज्यों में काफी भिन्न है. इसका मतलब यह भी है कि राज्यों में प्रति किसान खर्च में काफी अंतर है. इसकी तुलना करने का एक तरीका राज्यों द्वारा प्रति कृषि परिवार कुल खर्च को देखना है. नवीनतम (2019) एसएएस में, एक कृषि परिवार को एक ऐसे परिवार के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसने 4,000 रुपये से अधिक मूल्य के खेत या बागवानी फसलों, पशुधन, या अन्य निर्दिष्ट कृषि उत्पादों का उत्पादन किया है और सर्वेक्षण से पहले 365 दिनों में कृषि में स्वरोजगार करने वाला एक सदस्य था.
रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में प्रति कृषि परिवार सरकार का खर्च उत्तर प्रदेश में 9,264 रुपये से लेकर तमिलनाडु में 99,768 रुपये तक भिन्न था, क्योंकि पशु पालन पर खर्च में राज्यों का बड़ा योगदान (केंद्र सरकार की तुलना में) है. यह जांचना उपयोगी हो सकता है कि पशु पालन पर खर्च में यह बड़ा अंतर बना रहता है या नहीं. यह पशुपालन, डेयरी विकास और मत्स्य पालन पर संयुक्त व्यय की गणना करके और इसे पशुपालन करने वाले परिवारों की संख्या से विभाजित करके किया जा सकता है. यहां तक कि यह खर्च भी राज्यों में व्यापक रूप से वर्ष 2022-23 में तेलंगाना में 29,562 रुपये और उत्तर प्रदेश में 2,637 रुपये से भिन्न है.