नई दिल्ली : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आगामी एक फरवरी को संसद में वित्त वर्ष 2023-24 के लिए केंद्रीय बजट पेश करेंगी. उम्मीद की जा रही है कि इस बजट में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि के लिए संरचनात्मक सुधारों पर ध्यान देने की जरूरत है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि के लिए विभिन्न एजेंसियों द्वारा 5.7 फीसदी से 6.6 फीसदी तक अनुमान लगाया गया है. फिलहाल, विनिर्माण विकास और चालू खाता घाटा (कैड) उम्मीद के अनुरूप नहीं है. इसलिए वित्त वर्ष 2023-24 के लिए वृद्धि के अनुमान को संशोधित किया जा सकता है. हालांकि, रोजगार संकट को हल करने के लिए भारत को वित्त वर्ष 2023-24 में 7 फीसदी से अधिक और 2024-25 में 8 फीसदी बढ़ना चाहिए. विशेषज्ञों की मानें, तो जीडीपी वृद्धि के लिए अनुमानित इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार को इस साल के बजट में वर्ष 1991 के बजट की तरह कई संरचनात्मक सुधारों की घोषणा करने की जरूरत है.
इसके साथ ही, विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि इस तरह के सुधारों को जीडीपी के 33.7 फीसदी के निवेश (जीएफसीएफ) अनुपात को बहाल करने में मदद करनी चाहिए, जैसा कि वर्ष 2010-13 के दौरान किया गया था. इस दौरान कैड जीडीपी 1.2 फीसदी से नीचे था. इसके अलावा, पूंजीगत व्यय के लिए बजट आवंटन बढ़ रहा है, लेकिन किसी भी सरकार के लिए बजटीय संसाधनों पर निवेश का पूरा बोझ उठाना संभव नहीं है. अलबत्ता, बजट में बुनियादी ढांचा आवंटन को पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) के तहत चार से पांच गुणा तक बढ़ाया जा सकता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि हालांकि, बुनियादी ढांचे पर खर्च करने वाले विभागों और निगमों जैसे रेलवे, एनएचआईडीसीएल, एनएचआईए आदि का निगमीकरण किया जा सकता है और इन्हें सार्वजिनक इकाई के रूप में सूचीबद्ध किया जा सकता है. इसके साथ ही, उनकी संपत्ति का पुनर्मूल्यांकन किया जा सकता है और एक विशेष अधिनियम के माध्यम से एक उपयुक्त मिश्रण में इक्विटी और लोन में परिवर्तित किया जा सकता है. इसके बाद ये सार्वजनिक इकाइयों के बजटीय संसाधनों पर बोझ डाले बिना आसानी से पूंजी बाजार और कर्जदाताओं से कर्ज उठा सकते हैं. हालांकि, व्यवहार्य परियोजनाओं जैसे ग्रामीण और सिंचाई के बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता और पेयजल आदि के लिए बुनियादी ढांचे के लिए बजटीय सहायता प्रदान की जा सकती है.
इसके अलावा, निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए बजट में व्यापार और कराधान कानूनों के कई उपायों की घोषणाएं की जा सकती हैं. व्यापार और कराधान कानूनों के अपराधीकरण की समीक्षा की जानी चाहिए और नागरिक दंड के साथ प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए. इसके साथ ही, अवास्तविक और उच्च कर की मांग और नेटवर्थ को कम और नियंत्रित किया जाना चाहिए. इससे लंबे समय से चलने वाले मुकदमों में कमी आएगी. इन बाधाओं ने व्यावसायिक जोखिमों को बढ़ा दिया है.
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि भारत को ब्रिटिश औपनिवेशिक बेड़ियों को तोड़कर विजय प्राप्त करनी चाहिए और उद्यमशीलता की भावना को फिर से जगाना चाहिए. उन्होंने कहा कि 1000 करोड़ रुपये तक की परियोजनाओं के लिए पर्यावरण अनुमोदन में छूट दी जा सकती है और भूमि, जल और स्वीकृतियों में तेजी लाई जा सकती है. उम्मीद की जा रही है कि बोझिल खनन बानूनों में ढील दी जा सकती है, जो उच्च विकास व्यवस्था को प्रोत्साहित करने वाले मुख्य उद्योगों को बढ़ावा देगा.
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एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2022 के दौरान सकल बैंक ऋण जीडीपी के 47.6 फीसदी स्तर तक मुश्किल से पहुंच पाया है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह 89 फीसदी और चीन में करीब 160 फीसदी है. पिछले वर्षों में यह 50 से 55 फीसदी के बीच रहा है. बजट में इसे जीडीपी के कम से कम 60 फीसदी और अगले तीन-चार सालों में करीब 75 फीसदी तक बढ़ाया जाना चाहिए. इसके साथ ही, निजी निवेश के लिए उदार बैंक ऋण की आवश्यकता है. एक विकासशील देश में अस्थायी नुकसान और व्यावसायिक जोखिम संभावित है. इसलिए कड़े एनपीए मानदंड के साथ-साथ बैंकों और उद्यमियों पर पूरे बोझ को स्थानांतरित करना प्रति-उत्पादक हो गया है. इसलिए लिहाज से एनपीए मानदंडों में ढील दी जानी चाहिए और भारत को एक विकसित देश बनने तक ऋण पुनर्गठन के लिए उदारतापूर्वक अनुमति दी जानी चाहिए.