-अरविंद कुमार सिंह-
Union Budget 2023: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2023-24 के बजट में 2.40 लाख करोड़ पूंजीगत परिव्यय के साथ दावा किया है कि यह अब तक का सर्वाधिक परिव्यय है, जो 2013-14 की तुलना में नौ गुना ज्यादा है. रेलवे के बुनियादी ढांचे में विकास के दृष्टिकोण से 2014 के बाद उल्लेखनीय बदलाव आया है, जिसके चलते भारतीय रेलवे के आधुनिकीकरण में अभूतपूर्व प्रगति हुई. पहले मौजूदा बुनियादी ढांचे का उपयोग करते हुए पुरानी व्यवस्था को बनाये रखने तक अधिक ध्यान केंद्रित होता था, लेकिन अब जोर नयी प्रौद्योगिकियों पर है, जो क्षमता विकास में बेहद मददगार बन रही हैं. रेलवे ट्रैक को ज्यादा स्पीड के लिए सक्षम बनाया जा रहा है, जिससे सेमी हाईस्पीड ट्रेन चलाना संभव हो रहा है. अब भारतीय रेल हाई स्पीड ट्रैक और टेक्नॉलॉजी की तरफ तेजी से आगे बढ़ रही है. इस काम के लिए बजट भी काफी बढ़ाया गया है. साथ ही आत्मनिर्भरता पर फोकस करने के नतीजे भी अब सामने आ रहे हैं.
इस बजट के केंद्र में रेलवे की जगह पीएम गति शक्ति मास्टर प्लान है, जिसका सपना अरुण जेटली के आखिरी बजट में तैयार हुआ था. यह भारी भरकम करीब 100 लाख करोड़ रुपये से अधिक की योजना है. इसमें सड़क, रेल, हवाई अड्डा, बंदरगाह, सार्वजनिक परिवहन, जलमार्ग और लॉजिस्टिक ढांचा शामिल है. बजट से एक दिन पहले जारी आर्थिक सर्वेक्षण में पीएम गति शक्ति को भावी अर्थव्यवस्था के लिहाज से काफी अहम माना गया है. फिलहाल बजट में जो व्यवस्था की गयी है, वो रेलवे को मजबूती देगा, लेकिन काफी बड़ी तादाद में लंबित रेल परियोजनाओं को और अधिक धन की दरकार है. अभी जिस तरह निजी निवेश का खाका बुना गया है, वह जमीन पर नहीं उतरा तो अपेक्षित बदलाव को झटका लग सकता है.
फिलहाल रेलवे बेहतर सेहत की ओर अग्रसर है. सरकार द्वारा धन आवंटन में बढ़ोतरी होने से रेलवे में काफी काम हो रहा है. कोविड महामारी के बाद यात्री और माल ढुलाई बढ़ी है. संभावना है कि तेज गति ट्रेनों की मांग से आने वाले सालों में यात्री यातायात बढ़ेगा. भारतीय रेलवे के तहत चल रही प्रमुख परियोजनाओं में मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल परियोजना, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर परियोजना, मल्टी मॉडल कार्गो टर्मिनल, वंदे भारत रेलगाड़ी आदि है. इसमें डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर यूपीए सरकार में आरंभ किया गया था और यही रेल परिवहन के कायाकल्प वाली सबसे अहम परियोजना भी है, जो देर से सही पूरी होने के कगार पर है. लेकिन सेमी हाई स्पीड वंदे भारत एक्सप्रेस 2022-23 तक 42 चलनी थी, अभी एक दर्जन भी नहीं हो सकी हैं.सरकार की चिंता देश में लॉजिस्टिक लागत में कमी की है, जो अभी जीडीपी के 14 से 18 प्रतिशत के बीच है. दुनिया में तमाम जगहों पर 8 प्रतिशत है.
उच्च परिवहन लागत दुनिया के बाजारों में हमारे उत्पादों को टिकने नहीं देती. भले हमारी परिवहन प्रणाली में रेलवे के अलावा दूसरे साधन भी अहम हैं, लेकिन इनमें बेहतर तालमेल नहीं है. रेलवे की क्षमता और अहमियत अलग है. लेकिन हकीकत यह है कि पीएम गतिशक्ति में सड़कों पर ज्यादा जोर है, जो 60 प्रतिशत से ज्यादा माल ढुलाई कर रहा है. 2014 से 2022 के दौरान सालाना औसतन 1835 किमी लाइनें बनीं. दिसंबर 2023 तक रेलवे की बड़ी लाइन का 100 फीसदी विद्युतीकरण साकार करने की योजना है. 2024-25 तक रेलवे की अहम परियोजनाओं को साकार किया जा सकता है, जिसके बाद भीड़- भाड़ में 51 प्रतिशत तक कमी आयेगी. इसी हिसाब से 2024-25 तक रेलवे 1600 मिलियन टन माल ढुलाई की परिकल्पना कर रही है. तमाम चुनौतियों के बाद भी रेलवे यात्री और माल यातायात में सबसे ज्यादा किफायती है. वही सस्ती दर पर यात्रा कराती है.
रेलवे में निजीकरण को लेकर चिंता है, जो इसके मूल स्वरूप को प्रभावित कर सकता है. 2020-2021 के आम बजट के बाद पीपीपी के तहत 150 यात्री गाड़ियों के प्रचालन का फैसला हुआ, तो कई कयास लगे. हालांकि उसमें अभी बाधाएं हैं, पर स्टेशनों को निजी क्षेत्र को सौंपने का काम शुरू हो चुका है. इस बार भी 100 नयी योजनाओं की शुरुआत निजी क्षेत्र की मदद से करने का खाका तैयार किया गया है.
कोरोना के बाद के झटके से रेलवे फिलहाल उबर चुकी है. उसने पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 42,370 करोड़ रुपये अधिक राजस्व हासिल किया. कोरोना के दौरान वरिष्ठ नागरिकों समेत तमाम रियायतों को बंद कर दिया, जो अभी शुरू नहीं हुई हैं. रेलवे के साथ वित्तीय मोर्चे पर कई दिक्कतें हैं. पहले से ही रेलवे का कुल बजट में आंतरिक राजस्व का हिस्सा 5 प्रतिशत से घट कर 2 प्रतिशत पर आ गया था. 2020-21 में आंतरिक राजस्व सृजन वार्षिक योजना का केवल 3.4 प्रतिशत रहा और बाजार से उधारी पर रेलवे की निर्भरता बढ़ी. उसका सामाजिक दायित्व 2018-19 में 55,857 करोड़ तक पहुंच गया और बढ़ता जा रहा है. वहीं रेलवे का प्रचालन अनुपात चिंताजनक है. सीएजी ने 2019 में ही कहा कि यह रेलवे के वित्तीय स्वास्थ्य के विफल होने का संकेत है. जरूरी है कि रेलवे आंतरिक राजस्व बढ़ाने का सतत प्रयास करे ताकि अतिरिक्त बजटीय संसाधनों पर निर्भरता कम कर सके.
रेलवे महाबली है पर उसे कई आवश्यक मदों को सस्ते में ढोना पड़ता है. बहुत जरूरी थोक मदों और लंबी दूरी के माल परिवहन पर ही उसकी निर्भरता है.1950-51 के दौरान रेलवे 88 प्रतिशत और सड़कें 10 प्रतिशत माल ढुलाई कर रहे थे. रेलों का माल 27 प्रतिशत पर आ गया. आजादी के बाद से रेलवे में यात्री यातायात 1344 फीसदी और माल यातायात में 1642 फीसदी बढ़ा, लेकिन रेलमार्ग महज 23 फीसदी बढ़ा. 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय रेल के कायाकल्प को सरकार की प्राथमिकता का हिस्सा बनाया. लेकिन, अभी जो संसाधन मिल रहे हैं, वे भावी चुनौतियों के लिहाज से नाकाफी हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सलाहकार, भारतीय रेल हैं)