झारखंड: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह आज आएंगे हजारीबाग, बीएसएफ ट्रेनिंग कैंप मेरू में कैसी है तैयारी?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 30 दिसंबर की दोपहर में बीएसएफ के विशेष विमान से हजारीबाग मेरू प्रशिक्षण केंद्र आएंगे. बीएसएफ और हजारीबाग जिला प्रशासन के अधिकारी उनका स्वागत करेंगे. एक दिसंबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सभी कार्यक्रमों में भाग लेंगे.
हजारीबाग, सलाउद्दीन: 59वें बीएसएफ स्थापना दिवस और परेड को लेकर हजारीबाग सीमा सुरक्षा बल मेरू केंद्र सजधज कर तैयार है. सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक नितिन अग्रवाल हजारीबाग पहुंच गये हैं. बीएसएफ के कई आलाधिकारी भी कई दिनों से यहां कैंप कर रहे हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आने को लेकर पूरे परिसर को सजाया गया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 30 दिसंबर की दोपहर में बीएसएफ के विशेष विमान से हजारीबाग मेरू प्रशिक्षण केंद्र आएंगे. बीएसएफ और हजारीबाग जिला प्रशासन के अधिकारी उनका स्वागत करेंगे. एक दिसंबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सभी कार्यक्रमों में भाग लेंगे. मेरू केंद्र के आईजी केएस बलियान के नेतृत्व में पिछले एक माह से तैयारी की जा रही थी, जो अब पूरी हो गयी है. आपको बता दें कि झारखंड एवं अन्य राज्यों के पुलिस पदाधिकारियों, मित्र राष्ट्रों के पुलिस पदाधिकारियों को भी यहां प्रशिक्षण दिया जाता है. 1986 में बीएसएफ मेरू हजारीबाग परिसर में नवनियुक्त प्रशिक्षुओं को ट्रेनिंग देने की व्यवस्था की गयी थी.
सीमा सुरक्षा बल प्रशिक्षण केंद्र मेरू हजारीबाग का गौरवमय इतिहास
हजारीबाग का प्राकृतिक सौंदर्य व आकर्षण के बीच सैनिकों और अर्द्धसैनिकों के प्रशिक्षण केंद्र यहां स्थापित हुए हैं. हजारीबाग का यह केंद्र सेंटर ऑफ एक्सलेंस की विशिष्ठता प्राप्त है. हजारीबाग शहर से दस किमी बगोदर पथ पर मेरू गांव में सीमा सुरक्षा बल प्रशिक्षण केंद्र और विद्यालय है. 18 नवंबर 1966 को हजारीबाग में स्थापित हुआ था. बाद में 25 मार्च 1967 ई में मेरू में स्थानांतरित किया गया. प्रशिक्षण परिसर 1189 एकड़ भूखंड में है, जो चारों तरफ से हरी-भरी वादियों के बीच है. सात बड़ी-बड़ी झील हैं. उतरी सीमा पर सिवाने नदी इसके सौंदर्य को बढ़ा देती है. सीमा सुरक्षा बल प्रशिक्षण केंद्र और विद्यालय के तीन महत्वपूर्ण संस्थान टेकनपुर, इंदौर और हजारीबाग का गौरवमयी इतिहास है. हजारीबाग प्रशिक्षण केंद्र प्रशिक्षु आवास, आउट डोर प्रशिक्षण स्थल, अस्त्र शस्त्र परिचालन की तकनीकीओं के अ्ग्रणी केंद्र है. यहां जवान को कठोर प्रशिक्षण के दौर से गुजरना पड़ता है. यहां प्रशिक्षण के तीन अंग हैं. विशेषज्ञ प्रशिक्षण विद्यालय, जिसमें सभी स्तर के सीमा सुरक्षा बल को एमएमजीयूआइपीटी, जंगल युद्ध तकनीक, क्षेत्रीय इंजीनियरिंग के विशिष्ठ प्रशिक्षण देने की व्यवस्था है. बुनियादी प्रशिक्षण केंद्र में नवनियुक्त प्रशिक्षुओं को आधारभूत प्रशिक्षण दी जाती है. प्रशासनिक संस्थान में जवानों और अधिकारियों की कार्य दक्षता में वृद्धि के लिए कार्य करती है. एंटी टेरिस्ट पुलिस कमांडो, विस्फोटक प्रयोग व बचाव का विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है. ऑटोमेटिक ग्रेनेड लाउंचर, मीडियम मशीनगंज और कई आधुनिक हथियारों का प्रशिक्षण दिया जाता है. यह केंद्र सीमा सुरक्षा बल को बम के विस्तार का भी प्रशिक्षण देता है. असैनिक पुलिस कर्मियों को भी प्रशिक्षण देने की व्यवस्था है.
प्रशिक्षुओं को ट्रेनिंग देने की व्यवस्था
झारखंड एवं अन्य राज्यों के पुलिस पदाधिकारियों, मित्र राष्ट्रों के पुलिस पदाधिकारियों को भी यहां प्रशिक्षण दिया जाता है. 1986 में बीएसएफ मेरू हजारीबाग परिसर में नवनियुक्त प्रशिक्षुओं को ट्रेनिंग देने की व्यवस्था की गयी थी. झारखंड में हॉकी और फुटबॉल की संभावनाओं को देखते हुए 1992 से मेधावी खिलाड़ियों की पहचान के लिए चयन कार्य शुरू हुआ था. ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिभावान खिलाड़ियों को यहां अवसर मिला. फुटबॉल और हाकी में खिलाड़ियों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया. अंतरराष्ट्रीय खेलों में भाग लेने के लिए भी यहां प्रतिवर्ष खिलाड़ियों को प्रशिक्षित किया जाता है. इंटर फ्रंटियर खेलकूद प्रतियोगिता कई बार यहां आयोजित हुए हैं. सीमा सुरक्षा बल के सभी फ्रंटियर से 500 से अधिक खिलाड़ी प्रतियोगिता में भाग लिया है. इस केंद्र में रानी झांसी ग्राउंड कई ऐतिहासिक पल के गवाह हैं, जहां से हजारों नव प्रशिक्षु संविधान की शपथ लेकर देश सेवा व सुरक्षा में जुटे हैं. सीमा सुरक्षा बल के जवान देश में अमर चैन कायम करने, आतंकवादियों से निबटने और युद्ध के दिनों में राष्ट्र की रक्षा करने में अपना बहुमूल्य योगदान देता रहा है.
बीएसएफ का उद्भव
सीमा सुरक्षा बल का उद्भव 1965 ई में हुआ था. उस समय सीमावर्ती राज्यों की सीमा की सुरक्षा राज्य की पुलिस किया करती थी. सुरक्षा की आवश्यकता को पूरा करने में उतना सक्षम नहीं थी. 60 के दशक में चीन और पाकिस्तान के आक्रमण के समय तत्कालीन केंद्रीय गृहसचिव एलपी सिंह और जर्नल जेएन चौधरी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ ने एक अर्द्धसैनिक बल की आवश्यकता महसूस की, जो देश की सीमाओं की सुरक्षा कर सके. सामान्य एवं युद्ध की स्थिति में सीमा सुरक्षा और देश के आतंरिक शांति के लिए उपयोग किया जा सके. वह बल सीमा पर 24 घंटे सतर्कता रखे. एक सितंबर 1665 ई को राजस्थान की सशस्त्र पुलिस, पंजाब की सशस्त्र पुलिस, त्रिपुरा की सशस्त्र पुलिस और असम की सशस्त्र पुलिस के 25 बटालियनों को इस कार्य में लगाया गया. बाद में उन्हें ही सीमा सुरक्षा बल के रूप में अभिहित किया गया. जिसका मुख्यालय दिल्ली में बनाया गया. अश्विनी कुमार को पश्चिमी सेक्टर और पीके पशु को पूर्वी सेक्टर का प्रधान बनाया गया.