Loading election data...

UP Election 2022: पहले कोरे कागज से पड़ते थे वोट, अब डिजिटल हुआ चुनाव, जानें कितना बदला प्रचार का तरीका

UP Election 2022: पहले प्रत्याशी बैलगाड़ी से चुनाव प्रचार को निकलते थे. चुनाव प्रचार के दौरान जहां रात हो जाती थी, उसी गांव में रुक जाते थे. मगर, अब चुनाव प्रचार डिजिटल हो चुका है. कहीं से भी मतदाताओं तक प्रचार किया जा सकता है.

By Prabhat Khabar News Desk | February 13, 2022 6:31 PM
an image

UP Vidhan Sabha Election 2022: देश की आजादी के बाद 1952 में पहला चुनाव कोरे कागज से हुआ था, लेकिन, वक्त के साथ मतदान प्रक्रिया और चुनाव प्रचार में भी लगातार बदलाव हुए हैं. उस दौरान संसाधन सीमित थे. मगर, इसके बाद संसाधन भी बढ़ते गए जिसके चलते वक्त के साथ मतदान प्रक्रिया में बदलाव किया गया. अब तक चार बार मतदान प्रक्रिया बदल चुकी है. चुनाव प्रचार बैलगाड़ी से डिजिटल तक आ गया है.

पहले प्रत्याशी बैलगाड़ी से चुनाव प्रचार को निकलते थे. चुनाव प्रचार के दौरान जहां रात हो जाती थी. उसी गांव में रुक जाते थे. मगर, अब चुनाव प्रचार ही बंद हो चुका है. चुनाव डिजिटल होने से कहीं से भी बैठ कर मतदाताओं तक प्रचार किया जा सकता है.

Also Read: बरेली मंडल की 13 सीटों पर कांग्रेस ने घोषित किया प्रत्याशी, कैंट सीट से सुप्रिया ऐरन पर लगाया दांव कोरे कागज से भाग्य का फैसला
Up election 2022: पहले कोरे कागज से पड़ते थे वोट, अब डिजिटल हुआ चुनाव, जानें कितना बदला प्रचार का तरीका 5

बता दें, 1952 में पहला चुनाव हुआ था. उस दौरान एक-एक या दो प्रत्याशी होते थे. इन प्रत्याशियों के समर्थकों को प्रत्याशियों के रंग का डिब्बा बता दिया जाता था. इन डिब्बों में प्रत्याशी के समर्थक कोरे कागज डालते थे. मतदान होने के बाद कोरे कागजों की गिनती होती थी. गिनती के बाद जीत घोषित कर दी जाती थी.

Also Read: किस्सा नेताजी का: बीजेपी नेता से चुनाव हारने वाले सिद्धराज सिंह के हाथ में कमल, बिल्सी सीट से लड़ेंगे चुनाव? 1957 में दर्ज हुए प्रत्याशियों के नाम
Up election 2022: पहले कोरे कागज से पड़ते थे वोट, अब डिजिटल हुआ चुनाव, जानें कितना बदला प्रचार का तरीका 6

देश का दूसरा विधानसभा चुनाव 1957 में हुआ था. इस चुनाव में लकड़ी के डिब्बों पर प्रत्याशियों का नाम और चुनाव चिन्ह लिखा जाने लगा. मतदाता प्रत्यशियों के नाम और चिन्ह अंकित वाले डिब्बों में कोरे कागज डालकर ही प्रत्याशियों की तकदीर का फैसला करते थे, जो ज्यादा दिन तक नहीं चली. 1962 में उसको भी बदल दिया गया.

1962 के चुनाव में बैलेट पेपर

मतदान प्रक्रिया में सबसे बड़ा बदलाव देश के तीसरे विधानसभा चुनाव में हुआ था. 1962 में निर्वाचन आयोग पूरी तरह से अस्तित्व में आ चुका था. मतदान प्रक्रिया में बड़ा बदलाव किया गया. इस चुनाव में प्रत्याशियों के नाम और चुनाव चिन्ह वाले बैलेट पेपर दिए जाने लगे. इन पर मोहर लगाने की शुरुआत हुई. यह प्रक्रिया 40 वर्ष तक चली.

2002 में आई ईवीएम
Up election 2022: पहले कोरे कागज से पड़ते थे वोट, अब डिजिटल हुआ चुनाव, जानें कितना बदला प्रचार का तरीका 7

गुजरात समेत देश के छोटे-छोटे प्रदेशों में 2002 के चुनाव में ईवीएम से वोटिंग प्रक्रिया शुरू कराई गई थी. 2004 के लोकसभा चुनाव में पूरे देश में हाईटेक वोटिंग प्रक्रिया को अपनाते हुए इलेक्ट्रिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का सहारा लिया गया. इस ईवीएम से वर्ष 2007 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव कराया गया था. इससे अभी भी चुनाव हो रहा है. अब ऑनलाइन वोटिंग की तैयारी है.

Also Read: किस्सा नेताजी का : बरेली में भाजपा के डॉ. डीसी वर्मा के नाम दर्ज सबसे बड़ी जीत, सबसे छोटी जीत 18 वोट की

देश में कोरे कागज से शुरू हुई मतदान प्रक्रिया अब तक के कई रूप बदल चुकीं है. अब इसको ऑनलाइन मतदान कराने की तैयारी चल रही है. मतदाताओं को यूनिक आइडेंटिटी कार्ड (यूआईडी नंबर) उपलब्ध करा दिए गए हैं. इन पर दर्ज नंबरों से मतदाता अपनी लॉगिन आईडी खोल कर घर बैठे मतदान कर सकेंगे. हालांकि, इस बार बुजुर्ग और दिव्यांग मतदाताओं को घर बैठकर बैलेट पेपर से मतदान करने के लिए छूट दी गई है.

15 दिन चलती थी मतगणना

1952 के चुनाव में सुबह 10:00 से शाम 5:00 बजे तक मतगणना होती थी. इसमें 15 दिन लगते थे.1962 के चुनाव में मतगणना 24 घंटे होने लगी. इसमें भी दो से पांच दिन लगते थे. मगर, अब चार से पांच घंटे में ही प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला ही नहीं, सरकार बनाने की भी तस्वीर साफ हो जाती है.

रिपोर्ट: मुहम्मद साजिद, बरेली

Exit mobile version