अजब-गजब: भालू कर रहा खेतों की रखवाली, जानें फसल बचाने के लिये किसान ने क्या भिड़ाई जुगत
भालू की पोशाक वाली युक्ति अच्छी तरह से काम कर रही है. क्षेत्र में लोकप्रिय हो रही है. हालांकि, रेक्सिन से बनी भालू की पोशाक पहनना आसान नहीं है और गर्म और आर्द्र मौसम में खेतों में चलना या दौड़ना मुश्किल है.
बरेली : लखीमपुर खीरी जिले के कुछ गांवों के किसानों ने अपनी खड़ी फसलों को बर्बाद करने वाले जानवरों, खासकर बंदरों से बचाने के लिए एक पुरानी चाल चली है. किसानों ने भालू के रूप में कपड़े पहनना शुरू कर दिया है. इन कपड़ों में अपने खेतों में घूमने लगे हैं. फसल को मार से बचाने के लिए कई किसान 250 रुपये प्रति दिन के हिसाब से पुरुषों को भी काम पर रख रहे हैं. बजरंगगढ़ गांव के संजीव मिश्रा ने शाहजहांपुर से 5,000 रुपये में “भालू की पोशाक” खरीदी है. मिश्रा ने कहा, “बंदरों या खेतों में आवारा मवेशियों से महीनों की मेहनत बेकार हो सकती है. भालू की पोशाक वाली युक्ति अच्छी तरह से काम कर रही है. क्षेत्र में लोकप्रिय हो रही है. हालांकि, रेक्सिन से बनी भालू की पोशाक पहनना आसान नहीं है, और गर्म और आर्द्र मौसम में खेतों में चलना या दौड़ना मुश्किल है.
भालू के भेष में नौ घंटे ड्यूटी दे रहे मजदूर
भालू की पोशक पहनकर फसल की रखवाली करने वाले श्रमिकों में से एक, 26 वर्षीय राजेश कुमार ने कहा, “मैं इस भेष को रोजाना पहनता हूं, और खेतों के पांच चक्कर लगाता हूं . फिर एक पेड़ के नीचे बैठकर बाकी समय बिताता हूं. मेरी नौ घंटे की ड्यूटी के दौरान मेरी पत्नी कई बार मेरे साथ रहती है, चूँकि मेरा पूरा शरीर ढका हुआ है, मैं जानवरों पर चोट लगने के डर के बिना उन पर हमला भी कर सकता हूं. धधौरा गांव के एक किसान लवलेश सिंह ने कहा, “यह तरीका दिन के समय अच्छा काम करता है, लेकिन हम अभी भी रात में आवारा मवेशियों को दूर रखने के तरीके खोज रहे हैं.
किसानों ने रोस्टर तक बनाया
खीरी जिले के मितौली प्रखंड के फरिया पिपरिया और धधौरा गांव के किसानों ने भी इस नवीन तकनीक का सहारा लिया है. फरिया पिपरिया के विनय सिंह ने कहा, ‘बंदरों के आतंक को लेकर हमने कई बार वन विभाग से संपर्क किया था, लेकिन अधिकारियों ने फंड की कमी का हवाला देकर समस्या से निपटने में असमर्थता जताई. अब, हमने इस मामले को अपने हाथों में ले लिया है और बंदरों के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए एक सस्ता विकल्प अपनाया है. विनय सिंह कहते हैं कि हमने एक रोस्टर तैयार किया है और हर किसान भालू की पोशाक पहनकर खेतों में घूमता है.
वन विभाग ने बजट की कमी बताई
खीरी के प्रभागीय वन अधिकारी संजय बिस्वाल ने कहा, “हम जानते हैं कि किसान बंदरों को दूर रखने के लिए एक अनूठा आइडिया लेकर आए हैं. वर्तमान में, हमारा विभाग धन की कमी के कारण पशुओं को पकड़ने के लिए अभियान चलाने में असमर्थ है. करीब तीन साल पहले शाहजहांपुर जिले के जलालाबाद के सिकंदरपुर गांव के लोगों ने आवारा पशुओं को भगाने के लिए भालुओं की पोशाकें खरीदीं और पूरे दिन वेश में पुरुषों को तैनात किया.
रिपोर्ट- मुहम्मद साजिद