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UP News : अलीगढ़ का नाम हरिगढ़ होने की कीमत होगी रुपये 300 करोड़

अलीगढ़ का नाम हरिगढ़ रखे जाने को लेकर चर्चा हो रही है. प्रस्ताव अभी नगर निगम से पास होकर प्रशासन के पास पहुंचा है. यदि शहर का नाम बदला गया तो करोड़ों रुपये खर्च होंगे. इलाहाबाद को प्रयागराज नाम देने में करीब 300 करोड़ रुपए खर्च हुए थे.

अलीगढ़ : इस समय अलीगढ़ का नाम हरिगढ़ रखे जाने को लेकर व्यापक चर्चा हो रही है, हालांकि इस प्रक्रिया में खर्च कितना होता है यह भी लोग जानना चाहते हैं. एक आंकलन के अनुसार जब इलाहाबाद का नाम प्रयागराज में बदल गया था तो इसमें 300 करोड रुपए खर्च हुए थे. जैसे रेलवे स्टेशन का नाम, बस स्टेशन, एयरपोर्ट, पोस्ट ऑफिस का नाम भी बदल जाता है. छोटे शहरों का नाम बदलने में करीब 200 करोड़ करोड रुपए का खर्चा आता है. वहीं अगर अलीगढ़ का नाम बदल गया तो कितना खर्चा आएगा ? यह सवाल जिज्ञासा भरा है. हालाकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी अलीगढ़ शब्द लगा है , जो कि पार्लियामेंट एक्ट के तहत पारित किया गया है. बड़ा सवाल यह है कि जिले का नाम हरिगढ़ किया गया तो क्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का नाम भी बदला जाएगा. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है.


शहर का नाम बदलने पर  औसत खर्च 200 करोड़ से अधिक

शहर का नाम बदलने का प्रचलन यूपी में बसपा और सपा सरकार ने भी किया था. उस समय भी जनता से पूछ कर शहर का नाम नहीं बदल गया था. शहरों का नाम बदलने का फैसला चुनी हुई सरकार लेती है. इसका खर्च जरूर जनता के टैक्स के पैसे से जाता है. इसमें होने वाला खर्च कम नहीं है. औसतन एक शहर का नाम बदलने में 200 करोड रुपए तक खर्च होते हैं. यदि बड़ा शहर हो तो धनराशि और बढ़ जाती है. बताया जाता है कि इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करने में करीब 300 करोड़ का खर्चा आया.

सबसे ज्यादा आंध्र प्रदेश में बदले गये है नाम

देश के अन्य हिस्सों में नाम बदलने पर सियासत इतनी सियासत नहीं होती है. जितनी उत्तर प्रदेश के शहर का नाम बदलने पर सवाल खड़े किए जाते हैं. हालांकि यूपी नाम बदलने में सबसे आगे नहीं है. सबसे ज्यादा आंध्र प्रदेश में 76 जगह के नाम बदले गए हैं, तमिलनाडु में 31 और केरल में 26 जगह का नाम बदला है. महाराष्ट्र में भी 18 जगह का नाम बदला है. वही आजादी के बाद से उत्तर प्रदेश के केवल आठ शहरों का नाम बदल गया है.

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शहर का नाम बदलने की होती है एक प्रक्रिया

किसी शहर का नाम बदलने का अधिकार राज्य की कैबिनेट के पास होता है. नियम के अनुसार शहर की जनता मांग उठाएं तो ही ऐसे प्रस्ताव पर विचार होता है. हालांकि विधायक की मांग पर भी सरकार प्रस्ताव कैबिनेट में ले आती है. कैबिनेट से प्रस्ताव पारित होने के बाद राज्य विधानसभा में लाती है. इसके बाद यह प्रस्ताव केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास जाता है. केंद्रीय गृह मंत्रालय अन्य संबंधित मंत्रालय और विभागों से एनओसी लेता है. इसमें रेलवे, पोस्टल डिपार्टमेंट, सड़क, परिवहन मंत्रालय आदि शामिल होते हैं. सबकी एनओसी मिलने के बाद नाम में परिवर्तन लागू हो जाता है.

पड़ोसी राज्यों में भी सड़कों के साइन बोर्ड बदलने पड़ते हैं

किसी शहर का नाम बदल जाने पर सरकारी कागज और साइन बोर्ड भी बदल जाता है. एक शहर का नाम बदलने पर करीब 200 करोड़ से ज्यादा का खर्च आता है. इस खर्च में मुख्यतः सरकारी स्टेशनरी में शहर का नाम बदलना शामिल है . इसके साथ ही शहर के सभी सार्वजनिक साइन बोर्ड बदलने पड़ते हैं. रेलवे स्टेशन का नाम बदलता है. हाईवे पर साइन बोर्ड भी बदल जाते हैं. यही नहीं पड़ोसी राज्यों में भी सड़कों के साइन बोर्ड बदलने पड़ते हैं. इन सब कामों पर खर्च जनता के टैक्स की राशि से ही जाता है.

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यूपी में 12 शहरों का नाम बदलने का प्रस्ताव सरकार के पास

मायावती ने अमेठी, हाथरस, कासगंज, कानपुर देहात का नाम बदला था लेकिन सपा सरकार ने मायावती के फैसले को पलट दिया था. हालांकि योगी सरकार ने इलाहाबाद और फैजाबाद का नाम बदला है, लेकिन यूपी में 12 अन्य शहरों का नाम बदलने का प्रस्ताव सरकार के पास है. इसमें फिरोजाबाद, शाहजहांपुर, अलीगढ़, मिर्जापुर, सुल्तानपुर, बदायूं आदि शामिल है.

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