UP News: ताजनगरी आगरा ने पूरे उत्तर प्रदेश में अपने नाम का डंका बजवाया है. पिछले 10 सालों से कचरे का जो पहाड़ पर्यावरण के लिए मुसीबत बना हुआ था, उसे बायो माइनिंग तकनीक से न सिर्फ हटा दिया गया, बल्कि उससे प्राप्त होने वाली मिट्टी को खेतों में और लैंड फिलिंग के काम में लिया जा रहा है. पर्यावरण के लिए अभिशाप बने कचरे के पहाड़ को हटाने की जो राह ताजनगरी आगरा ने दिखाई है, उसकी प्रशंसा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने की है. लखनऊ में तीन दिवसीय अर्बन कॉन्क्लेव 2021 में पीएम और सीएम दोनों ने ही आगरा के मॉडल में दिलचस्पी दिखाई है.
बता दें, 2011 से नगला रामबल खत्ताघर की कैपिंग के बाद कुबेरपुर लैंडफिल साइट पर कचरे के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ लग गए थे. कचरे के पहाड़ की वजह से आसपास के लोगों का जीना मुहाल हो गया था. बारिश के दिनों में तो स्थितियां और भी खराब हो जाती थी. खुद एनजीटी ने कई बार नगर निगम अधिकारियों को कचरे के पहाड़ हटाने को लेकर ताकीद की थी.
नगर आयुक्त निखिल टी फुन्दे के मुताबिक, कचरे के पहाड़ को हटाने में बायो माइनिंग कारगर तकनीक साबित हुई है. कचरे के पहाड़ के रूप में 9.57 लाख मीट्रिक टन कचरा जमा था जिसे पिछले दो साल में प्रोसेस कर 8 मीट्रिक टन कचरे को हटाया जा चुका है. शेष कचरे को भी जल्द ही खत्म कर दिया जाएगा. इस पूरे प्रोजेक्ट में 25.92 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं.
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बायो माइनिंग कचरे को खत्म करने की एक प्रक्रिया है. इसमें कचरे को पलटा जाता है, उसे बार बार कुरेदा जाता है. जब इसका विन्ड रोज बनकर तैयार हो जाता है, तब उस पर बायो एंजाइम का स्प्रे किया जाता है. स्प्रे करने के बाद कचरे का क्षरण शुरू हो जाता है. इसके बाद 5 अलग तरह की मशीन से गुजार कर कचरा एक मैटेरियल के रूप में प्राप्त होता है, जिसे मिट्टी के भर्त में काम में लिया जाता है.
आगरा नगर निगम ने स्वच्छ भारत मिशन 2 की शुरुआत में ही अपना डंका बजा दिया है. बड़े बड़े महानगरों में कचरे के पहाड़ मुसीबत बने हुए हैं, मगर आगरा नगर निगम ने कचरे के पहाड़ से निजात पाने की राह दिखाई है.
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रिपोर्ट- मनीष गुप्ता, आगरा