बरेली : उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव 2023 को भाजपा, सपा, कांग्रेसऔर बसपा सभी दल लोकसभा चुनाव 2024 का सेमीफाइनल मानकर सियासी रण जीतने की कोशिश में हैं. इस बार नगर यूपी नगर निकाय चुनाव में सभी प्रमुख दलों को दलित (एससी) और अल्पसंख्यक मतदाता (मुस्लिम) से काफी उम्मीदें हैं. यूपी में एससी और मुस्लिम मतदाता करीब 40 फीसद से अधिक है. यह दोनों वोट जिधर भी घूमेंगे, उसी दल, और प्रत्याशी की जीत तय है. क्योंकि, यूपी में एससी 22. 5 फीसद है, तो वहीं मुस्लिम 12 जिलों में 35 से 52 फीसद और 24 जिलों में 20 फीसद से अधिक है.
यह दोनों वोट किसी भी दल या प्रत्याशी की जीत और हार तय करने में सक्षम हैं. इसीलिए सभी सियासी दलों की निगाह एससी और अल्पसंख्यक मतदाताओं पर लगी हैं. इन दोनों वोटों को अपनी अपनी तरफ आकर्षित करने में दल जुटे हुए हैं. भाजपा ने एससी वोट को साधने के लिए दलित समाज के केंद्र प्रदेश के मंत्री, सांसद विधायक और एमएलसी के साथ तमाम प्रमुख लोगों को लगाया है. केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कौशांबी में दलित सम्मेलन कर दलितों को साधने की कोशिश की. उन्होंने दलित समाज की योजना की जानकारी दी. इसके साथ ही हर नगर निगम क्षेत्र में सामाजिक सम्मेलन की तैयारी है, तो वहीं मुस्लिम मतदाताओं को साधने के लिए पसमांदा समाज को जोड़ने की कोशिश चल रही है.
नगर निकायों में मुस्लिम प्रत्याशियों को चुनाव भी लड़ाया जा रहा है. सपा ने दलित वोट को साधने के लिए संविधान में परिवर्तन किया है. इसके साथ ही बसपा संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण कर दलितों को साधने की कोशिश की. उन्होंने बसपा के पुराने नेताओं को पार्टी में लेकर दलित वोट पर पकड़ बनाने का काम शुरू कर दिया है. नगर निकाय चुनाव में एससी समाज के प्रत्याशियों को भी बड़ी संख्या में टिकट देने की तैयारी चल रही है.
कांग्रेस ने राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष तक दलित समाज से बनाया है. दलितों को साधने के लिए उनमें काम किया जा रहा है. दलित समाज को आरक्षण से लेकर कांग्रेस के केंद्र सरकार में दी गई योजनाओं की जानकारी दी जा रही है. इसके साथ ही राहुल गांधी ने बसपा संस्थापक कांशीराम की बहन से मुलाकात कर दलितों को एक बड़ा संकेत दिया है. कांग्रेस लगातार एकता का संदेश देने के लिए भारत जोड़ो यात्रा से लेकर तमाम कार्यक्रम कर रही है. इससे मुस्लिम मतदाताओं का रुख कांग्रेस की ओर बढ़ा है. बसपा भी मुस्लिम कार्ड खेल रही है. यूपी की 17 नगर निगम में से 10 मेयर प्रत्याशी मुस्लिम उतारने की तैयारी है. इसके साथ ही संगठन में भी मुस्लिमों को पद दिए जा रहे हैं.
भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा को मुस्लिमों को नगर निकाय में अधिक संख्या में जोड़ने का जिम्मा दिया गया है. खासतौर से पसमांदा समाज के मुसलमानों पर फोकस किया जा रहा है.ईद के बाद सम्मेलन भी कराए जाएंगे. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने जब यूपी प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान संभाली थी तभी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रशिक्षण वर्ग के कार्यक्रम में संकेत दे दिए थे कि इस बार निकाय में मुस्लिमों को भी टिकट दिया जाएगा.उसी दिशा में अल्पसंख्यक मोर्चा ने अपना काम भी शुरू कर दिया.
बसपा ने पिछले निकाय चुनाव में मुस्लिम दलित समीकरण बनाया था. इसका फायदा मिला था. इसी समीकरण से बसपा ने मेरठ और अलीगढ़ में महापौर की सीट जीती थी. इन सीटों पर मुस्लिमों ने बसपा को जमकर वोट किया. हालांकि, 2022 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से काडर वोट और मुस्लिम वोट बसपा से दूर हुए, उसने पार्टी के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है.
विधानसभा चुनाव 2022 में 34 मुस्लिम विधायक चुनाव जीत गए, जबकि वर्ष 2017 के चुनाव में मुस्लिम विधायकों की संख्या 24 थी. यानी इस बार 10 मुस्लिम विधायकों की संख्या बढ़ गई. हालांकि,शहरी निकाय चुनाव की बात करें, तो सपा का एक भी उम्मीदवार मेयर पद पर नहीं जीत पाया.अलीगढ़, मुरादाबाद जैसी सीटों पर सपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे लेकिन वह भी नहीं जीत सके.इस बार सपा फिर से मुस्लिमों पर फोकस करने की कवायद में जुटी है.
उत्तर प्रदेश के बरेली, श्रावस्ती, बहराइच, बलरामपुर, संभल, सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, मेरठ, अमरोहा, और रामपुर में मुस्लिम आबादी सबसे अधिक है. अलीगढ़, फिरोजाबाद, शामली सहित कई जिलों में नगर पंचायतों में मुस्लिम वोटर बड़ी संख्या में है. पिछली बार नगर निगम में 980 पार्षद पदों की तुलना में 844 पर ही बीजेपी ने चुनाव लड़ा था, क्योंकि बाकी वार्ड मुस्लिम बाहुल्य थे. जहां बीजेपी के पास उम्मीदवार नहीं थे, लेकिन इस बार बीजेपी सभी वार्ड में चुनाव लड़ेगी. मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में मुस्लिम उम्मीदवार उतारे जाएंगे.
रिपोर्ट मुहम्मद साजिद बरेली