आगामी बजट और भारतीय कृषि
भारतीय किसानों का औसत घरेलू ऋण सात लाख रुपये अधिक है. कर्ज और आर्थिक संकट के बोझ तले दबा किसान आत्महत्या करने को मजबूर है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, 2022 में 6,083 कृषि मजदूरों और 5,207 किसानों ने आत्महत्या की थी.
बिशन नेहवाल
(आर्थिक चिंतक)
पिछले कुछ दशकों में भारत की आर्थिक संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं. सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की हिस्सेदारी 1947 में 60 फीसदी थी, जो घटकर पिछले वित्त वर्ष में 15 प्रतिशत हो गयी. यह बदलाव देश के आर्थिक परिदृश्य की उभरती अस्थिरता को दर्शाता है. कृषि क्षेत्र की प्रगति भारत की नब्ज तय करती है. कृषि का योगदान देश के आर्थिक व सामाजिक ढांचे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. एक तरफ न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी और फसल बीमा योजनाओं जैसी पहलों ने आशा जगायी है, फिर भी कृषि को प्रभावित करने वाली चुनौतियां- बढ़ती लागत, अस्थिर बाजार कीमतें, कर्ज के नीचे दबता किसान, जलवायु परिवर्तन और सीमित बुनियादी ढांचा- नवीन समाधानों की मांग करती हैं. आगामी बजट नयी जमीन तैयार करने और अधिक मजबूत और समावेशी कृषि परिदृश्य विकसित करने का महत्वपूर्ण अवसर हो सकता है. हमारे कृषि कायाकल्प के केंद्र में पर्यावरणीय स्थिरता के प्रति प्रतिबद्धता होनी चाहिए. बजट में ड्रिप सिंचाई, मृदा संरक्षण तकनीक और सूखा प्रतिरोधी फसल किस्मों को अपनाने जैसे उपायों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. जैविक खेती के उपकरण और इनपुट के लिए कर छूट और सब्सिडी किसानों को रासायनिक-गहन दृष्टिकोण से दूर जाने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है. सिंचाई और कृषि प्रसंस्करण के लिए स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में निवेश इस क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम कर सकता है. किसानों को बीज, उर्वरक, बिजली और पानी आदि पर भारी सब्सिडी देने के बावजूद अधिकतर किसान संकट में हैं. भारत की औसत प्रति व्यक्ति आय 12,500 है, जबकि किसानों की औसत आय उससे भी कम बनी हुई है. अधिकतर राज्यों में यह 10,000 प्रतिमाह से भी कम है. ओडिशा और झारखंड में किसानों की औसत आय केवल 5,000 के आसपास है. एक आंकड़े के अनुसार, कृषि परिवार की खेती से होने वाली आय का हिस्सा 48 प्रतिशत से घटकर 37 प्रतिशत हो गया है. ऐसे परिवारों के लिए आय के प्रमुख स्रोत के रूप में मजदूरी (40 प्रतिशत) ने फसल उत्पादन का स्थान ले लिया है. बजट में उन नीतियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जो उनकी आय बढ़ायें और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करें. पीएम-किसान जैसी प्रत्यक्ष आय सहायता योजनाओं के लिए आवंटन बढ़ाना जरूरी वित्तीय स्थिरता प्रदान कर सकता है. किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) और किसान सहकारी समितियों को भी मजबूत किया जाना चाहिए. पूरे देश में प्रत्येक फसल की घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद सुनिश्चित करने के लिए बजट में विशेष प्रावधान किया जाए.
भारतीय किसानों का औसत घरेलू ऋण सात लाख रुपये अधिक है. कर्ज और आर्थिक संकट के बोझ तले दबा किसान आत्महत्या करने को मजबूर है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, 2022 में 6,083 कृषि मजदूरों और 5,207 किसानों ने आत्महत्या की थी. आगामी बजट में ऋण राहत योजनाओं, ब्याज मुक्त ऋणों या फसल बीमा कार्यक्रमों के लिए ज्यादा धनराशि का प्रावधान करना जरूरी है. भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, भारत के केवल 47 प्रतिशत शुद्ध बोये गये क्षेत्र में सुनिश्चित सिंचाई तक पहुंच है और अपर्याप्त भंडारण के कारण फसल के बाद के नुकसान का अनुमान 10-25 प्रतिशत है. बजट में सड़क नेटवर्क और कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं के निर्माण और उन्नयन के लिए पर्याप्त आवंटन होना चाहिए. ग्रामीण विद्युतीकरण में निवेश और सूचना प्रौद्योगिकी तक बेहतर पहुंच डिजिटल विभाजन को पाट सकती है और किसानों को मौसम के पैटर्न, बाजार के रुझान और सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में ज्ञान से लैस कर सकती है. भविष्य के लिए नवाचार को बढ़ावा देने और बदलते परिवेश के अनुकूल ढलने के लिए ज्ञान तथा प्रौद्योगिकी से लैस कुशल कार्यबल की जरूरत है. बजट में कृषि शिक्षा और कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. कृषि उद्यमिता और एग्रीटेक स्टार्टअप को बढ़ावा देना नवाचार बढ़ाने के साथ ग्रामीण युवाओं के लिए नये अवसर पैदा कर सकता है. देश में सीमांत किसानों की संख्या सबसे अधिक है. घटती जोत कुशल खेती के लिए बड़ी बाधा है, जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है. बजट में भूमि समेकन योजनाओं का पता लगाना चाहिए. इसके अतिरिक्त, भूमि स्वामित्व रिकॉर्ड को सुव्यवस्थित करने और कुशल विवाद समाधान तंत्र को लागू करने से अनिश्चितता कम हो सकती है और क्षेत्र में निवेश आकर्षित हो सकता है. महिलाएं भारतीय कृषि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. उन्हें सशक्त बनाने के लिए बजट में महिला-विशिष्ट कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए. भारतीय कृषि को पुनर्जीवित करने के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है. कृषि में निवेश की कमी कृषि विकास और उत्पादकता में बाधा बन सकती है. कृषि बजट में राशि बढ़ाने के साथ ही उसका सफल उपयोग सुनिश्चित करना भी आवश्यक है.
(ये लेखकद्वय के निजी विचार हैं.)