UPSC Civil Services Examination 2019 result : गोड्डा (निरभ किशोर) : गोड्डा जिले के लिए मंगलवार (4 अगस्त, 2020) का दिन खुशियों भरा रहा है. गोड्डा के बसंतराय प्रखंड के डेरमा गांव के रहने वाले कुमार सोम्य ने यूपीएससी की परीक्षा में सफलता अर्जित की है. परीक्षा में सोम्य को 696वां रैंक प्राप्त हुआ है. हालांकि, सोम्य वर्ष 2018 में पहली बार सिविल सेवा परीक्षा में शामिल होकर सफलता अर्जित किया था. उन्हें 979वां रेंक प्राप्त हुआ था. वर्तमान में सोम्य मिनिस्ट्री आफ डिफेंस में कार्यरत हैं. सोम्य अपने जीवन में हमेशा साकारात्मक सोच रखने वाला युवा हैं. लोगों के बीच आत्मविश्वास के साथ एटीट्यूट को बनाये रखने और हमेशा संघर्ष करने की प्रेरणा देने वाले इस युवा ने ऐसे युवाओं को अभिप्रेरित किया है.
सोम्य ने 12वीं की परीक्षा 2009 में रामकृष्ण मिशन देवघर से पास की. 2015 में मुंबई से आईटी की. इसके बाद कैंपस सलेक्शन हो जाने पर एक वर्ष आईसीआईसीआई लुम्बार्ड में नौकरी किया. 2016 में नौकरी छोड़ कर दिल्ली शिफ्ट हो गये. इस दौरान पूरी तरह से सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में जुट गये. 2017 में यूपीएससी की आयोजित परीक्षा में सफलता प्राप्त की और 2018 में इसका परिणाम सामने आया. सोम्य इस परीक्षा में सफल हो जाने के बाद मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस में नौकरी शुरू किया. इसी बीच पढ़ाई करते रहे. सिविल सेवा परीक्षा, 2018 में सोम्य शामिल हुए. 2019 में परिणाम आने पर सफल नहीं होने के बावजूद अपने मन में निराशा नहीं आने दी. इसके बाद 2019 की होने वाली परीक्षा में शामिल हुए और आज परिणाम पुन: उनके पक्ष में आया है.
सोम्य का कहना है कि वो कभी भी निराश नहीं हुए है. लगातार अपने लक्ष्य को निर्धारित कर तैयारी करते रहे हैं. आज उन्हें अपनी सफलता पर काफी अच्छा लग रहा है. एक अलग तरह की फिलिंग्स उनके अंदर है जिन्हें वे बता कर काफी खुश हो रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि पहली बार यूपीएससी में सफल होने के बाद प्रभात खबर ने उनके साथ बातचीत को प्रकाशित किया था. इससे वो और भी खुश थे. एक बार फिर से प्रभात खबर में उनकी इंटरव्यू छप रही है, जो युवाओं को इस बात के लिए आकर्षित करता है.
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कुमार सोम्य के पिता हीराकांत झा वर्तमान में हजारीबाग में कार्यपालक अभियंता के पद पर कार्यरत हैं. मां शिप्रा कुमारी गृहणी हैं. अपने माता-पिता को आदर्श मानने वाले कुमार सोम्य अपने जीवन में खरा उतरा हैं. उन्होंने कहा कि मुझे हमेशा माता-पिता का स्पोर्ट मिलता रहा है.
कुमार सोम्य दिव्यांग हैं. दिव्यांगता उन्हें जन्म से नहीं मिली है. बताते हैं कि चिकित्सीय भूल की वजह से बचपन में वे दिव्यांगता के शिकार हुए. उन्होंने अपने जीवन में हमेशा लाचारी की बात को कभी सामने आने नहीं दिया, जबकि लोग लाचारी का रोना रोकर कनसिडर कर लेते हैं. बचपन में फुटबॉल हो या क्रिकेट दोस्तों के द्वारा खेलने से मना किये जाने पर जिद्द कर या तो गोलकीपर की भूमिका या फिर क्रिकेट में रनर की भूमिका में रहे और इस जिद्द ने क्रिकेट के मेन स्ट्रीम का खिलाड़ी बना दिया. सोम्य अच्छे खिलाड़ी भी हैं. जब वो खेलते थे, तो माता- पिता को हमेशा उनके गिरने या परेशानी का डर बना रहता था, मगर इस बात के लिए वो अपने माता- पिता को भी मना लेते थे.
सोम्य ने युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि जीवन में लोगों को हार नहीं माननी चाहिए. मैंने कभी हार नहीं माना और जो चाहा वो कर पाया. डिफेंस की नौकरी में भी वो कभी भी अपने आपको कमजोर साबित होने नहीं दिया. ऐसे युवा जो अपने आप को दया का पात्र समझ लेते हैं या फिर आत्मसमर्पण कर देते हैं, वो सब कुछ खो देते हैं. सोम्य का यह भी कहना है कि इस कोरोना संकट में उनके जीवन को और भी बेहतर बना दिया है. उन्हें ठीक से भोजन बनाने नहीं आता था, मगर कोरोना काल में इस भोजन बनाने के मामले में भी महारत हासिल कर लिया.
Posted By : Samir Ranjan.