कोलकाता : बंगाल विधानसभा के लिए हुए पहले चुनाव में वोटों की वैसी मारामारी नहीं थी, जैसी आज है. तब माहौल भी ऐसा नहीं था. देश की आजादी के बाद 1950 के दशक के शुरुआती वर्षों में तो मानो देश के लोग लोकतंत्र का पाठ पढ़ने की शुरुआत कर ही रहे थे. पुराने लोगों की मानें, तो तब राजनीतिक दलों में अपने विचार और नीति-सिद्धांत को लेकर संवेदनशीलता व प्रतिबद्धता बहुत ज्यादा थी.
उस जमाने में धर-पकड़, मार-काट जैसी बातें नहीं के बराबर थीं. तब सबका ध्येय लोकतांत्रिक पद्धति से शासन के लिए नयी सरकार बनाना ही था. 1951 में तो मामला वैसे भी अलग था. अभी-अभी देश में लोकतांत्रिक ढांचा खड़ा होने के चलते जागरूकता की कमी थी.
विधानसभा की अधिकतर सीटों पर मतदान काफी कम हुआ था. कहीं-कहीं तो तब पांच हजार वोट भी नहीं पड़ पाते थे. वैसे, एक बात यह भी थी कि वोटिंग के मामले में जागरूकता के आधार पर शहर और गांव का हिसाब बिल्कुल उलट था. शहरों में ज्यादा जागरूक लोग कम वोट कर रहे थे, गांव में बढ़-चढ़कर मतदान हुआ.
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कोलकाता के बहूबाजार में तब चुनाव लड़ने वाले राज्य के पहले मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय और महानगर कोलकाता से सटे बारानगर में चुनाव लड़ने वाले राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु को जितने मत मिले थे, उससे दो गुना से भी अधिक मत कुछ ग्रामीण उम्मीदवारों को मिले थे. कुछ जगहों पर तो यह फर्क लगभग तीन गुना तक का था.
विधानसभा के लिए 1951 में हुए चुनाव में डॉ विधानचंद्र राय कोलकाता में बहूबाजार से चुनाव लड़ रहे थे. कांग्रेस के टिकट पर. तब उनके सामने थे एफबीएल (एमजी) के उम्मीदवार सत्यप्रिय बनर्जी. बहूबाजार में सत्यप्रिय बनर्जी को 9,799 वोट ही मिले. वह दूसरे नंबर पर रहे.
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यहां से जीत दर्ज करने वाले डॉ विधान चंद्र राय, जो बंगाल के पहले मुख्यमंत्री भी कहलाते हैं, को 14 हजार से भी कम वोट मिले. 13,910 वोट. मुश्किल से वह सवा चार हजार वोटों से जीत सके थे. तब भी डॉ राय बंगाल के चर्चित नेताओं में शुमार थे. वैसे एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि तब मतदाताओं की संख्या भी आज के जितनी नहीं थी.
उसी चुनाव में ज्योति बसु भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआइ) के उम्मीदवार थे. कोलकाता के करीब बारानगर विधानसभा क्षेत्र से. वहां की दशा भी बहूबाजार से कुछ अलग नहीं थी. ज्योति बसु तब वामपंथी धड़े के बड़े और होनहार नेता के तौर पर उभर रहे थे. बसु को तब 13,968 वोट ही मिले. उनके प्रतिद्वंद्वी रहे कांग्रेसी उम्मीदवार हरेंद्र नाथ चौधरी 8,539 मत ही पा सके.
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ग्रामीण इलाका होने और जागरूकता के अभाव के बावजूद पहले विधानसभा चुनाव में खेजुरी, संकराईल और आरामबाग आदि कुछ ऐसी सीटें थीं, जहां मतदाताओं ने वोटिंग में खूब उत्साह दिखाया था. कोलकाता के मतदाताओं की तुलना में काफी अधिक. कोलकाता में जहां दिग्गज उम्मीदवारों को 13-14 हजार से अधिक वोट नहीं मिले, इन सीटों पर 26-27 हजार तक वोट पड़े.
हुगली के आरामबाग में तो 30 हजार की सीमा पार कर वोटों की संख्या करीब साढ़े 38 हजार तक जा पहुंची. अर्थात् राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों ज्योति बसु और डॉ बीसी राय को मिले वोटों की तुलना में यहां के विजेता उम्मीदवारों को दो गुना ही नहीं, तीन गुना अधिक मत भी मिले.
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वर्ष 1956 में खेजुरी में हुए उप-चुनाव में तो मतदाताओं ने सामान्य चुनाव की भांति जबर्दस्त उत्साह के साथ साढ़े 41 हजार वोट सिर्फ विजेता उम्मीदवार एलबी दास की झोली में डाल दिये.
Posted By : Mithilesh Jha