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अमेरिका में बसने के ऑफर को ठुकरा दिये थे उस्ताह बिस्मिल्लाह खां, आज अपने ही शहर में हैं उपेक्षित

बनारस की गंगा- जमुनी तहजीब को जिंदा रखने वाले धर्म की सीमाओं से परे भारतरत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां मां सरस्वती के अनन्य भक्त थे. वह अक्सर मंदिरों में शहनाई बजाया करते थे.

By Prabhat Khabar News Desk | March 21, 2022 5:13 PM

Varanasi News: शहनाई सम्राट उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की आज 106वीं जयंती है. शहनाई को ग्लोबल स्टेज पर ले जाने में उनका बहुत बड़ा योगदान है. भारतीय संगीत में उनके योगदान के लिए उन्हें भारत रत्न का सम्मान भी मिला था. वाराणसी में उनकी जयंती पर परिजनों और अपनों ने कब्र पर पुष्प अर्पित करके उन्हें याद किया और फातेहाख्वानी की. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय राय भी हर बार की तरह तय समय पर दरगाह फातमान पहुंचे और उस्ताद की कब्र पर फूल चढ़ाकर उन्हें याद किया.

मां सरस्वती के अनन्य भक्त थे उस्ताद बिस्मिल्लाह खां

बनारस की गंगा- जमुनी तहजीब को जिंदा रखने वाले धर्म की सीमाओं से परे भारतरत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां मां सरस्वती के अनन्य भक्त थे. वह अक्सर मंदिरों में शहनाई बजाया करते थे. शहनाई उनके लिए अल्लाह की इबादत और सरस्वती वंदना का जरिया थी. संगीत के माध्यम से उन्होंने एकता, शांति और प्रेम का संदेश दिया था. दालमंडी के हड़हा सराय के मकान की सबसे ऊपरी मंजिल की खिड़की जब भी खुलती थी तो शहनाई के सुरों से देवत्व का साक्षात्कार कराती थी.

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उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का 21 मार्च 1916 को हुआ जन्म

उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का जन्म 21 मार्च 1916 को बिहार के डुमरांव में हुआ था. भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां जब तक रहे बाबा विश्वनाथ को शहनाई बजाकर जगाया करते थे. उस्ताद के कमरे की खिड़की तो अभी खुलती है, लेकिन बिस्मिल्लाह की शहनाई अब नहीं गूंजती है. 1947 में आजादी की पूर्व संध्या पर जब लालकिले पर देश का झंडा फहराया गया तो उनकी शहनाई ने भी वहां आजादी का संदेश बांटा था.

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कई देशों में बिखेरीं शहनाई की जादुई धुनें

अपने जीवन काल में उन्होंने ईरान, इराक, अफगानिस्तान, जापान, अमेरिका, कनाडा और रूस में अपनी शहनाई की जादुई धुनें बिखेरीं. उन्होंने गूंज उठी शहनाई, सत्यजीत रे की फिल्म जलसाघर में संगीत दिया. अखिरी बार उन्होंने आशुतोष गोवारिकर की हिंदी फिल्म स्वदेश में शहनाई का जादू चलाया था.

जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, अमेरिका में बस जाओ

उस्ताह बिस्मिल्लाह खां की शहनाई 1955 में अमेरिकी राष्ट्रपति ने सुनी तो उन्हें लंच पर आमंत्रित किया. अमेरिकी राष्ट्रपति ने उस्ताह से पूछा आपके घर में कितने लोग हैं? उस्ताद ने कहा कि 54 लोग. राष्ट्रपति ने कहा कि खाने पर कितना खर्च आता है? उस्ताद ने पूछा कि यह क्यों पूछ रहे हैं? तो राष्ट्रपति ने कहा कि जितना भी खर्च आता है, उसका दोगुना देंगे. तनख्वाह देंगे, घर देंगे, अमेरिका में बस जाओ. बिस्मिल्लाह ने जवाब दिया, साहेब बस तो जाएं, लेकिन सुबह-सुबह जब हम घर से निकलते हैं और दोनों तरफ लोग खड़े होकर आदाब-आदाब करते हैं , वो मंजर हमें यहां के अलावा कहां मिलेगा.

अपनी ही जन्म भूमि पर उपेक्षित हैं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां

अपनी सरजमीं बनारस व अपने देश से अथाह प्रेम करने वाले भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आज अपनी ही जन्म भूमि पर उपेक्षित हैं. 21 अगस्त 2006 में निधन होने के 16 साल बाद भी उनके यादों को संजोकर रखने के लिए अब तक ना तो जिला प्रशासन के अधिकारियों द्वारा और ना ही जनप्रतिनिधियों द्वारा कोई कदम उठाया गया. आज पूरे जिले में ना तो उनके नाम पर कहीं कोई भवन है और ना ही संग्रहालय. ना ही स्कूल, कॉलेज या संगीत अकादमी उस्ताद बिस्मिल्लाह खां अपने ही जिले में उपेक्षित हैं.

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चुनाव में ही उस्ताद राजनेताओं को याद आते हैं

प्रशासनिक उदासीनता के कारण आने वाली पीढ़ियां अब उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को सिर्फ किताबों के पन्नों में ही पढ़ा करेगी. उनकी यादों को संजोकर रखा जा सके, इस पर किसी ने अब तक ध्यान नहीं दिया. पूरे जिले में किसी ने भी उनके नाम पर कोई प्रतीक चिन्ह नहीं बनवाया. लोकसभा और विधानसभा चुनाव में ही उस्ताद राजनेताओं को याद आते हैं. चुनाव जीतने के साथ ही वादे जुमले हो जाते हैं.

किसी कलाकार का ध्यान नहीं दे रही मौजूदा सरकार

पूर्व कांग्रेस विधायक अजय राय ने भी मौजूदा सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार किसी कलाकार का ध्यान नहीं दे रही है. सरकार को किसी फनकार और कलाकार की सुध लेने की फुर्सत नहीं है. पहले राजनीतिक और प्रशासनिक नुमाइंदे यहां आते थे, पर इस वर्ष कोई नहीं आया. यह दुखद है.

स्थानीय लोग बड़े गर्व से कहते हैं, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां मेरे शहर के रहने वाले थे

स्थानीय लोगों ने बताया कि आज भी हम सब देश के किसी भी कोने में बड़े गर्व से कहते हैं कि उस्ताद बिस्मिल्लाह खां मेरे ही शहर के रहने वाले थे तो लोग बड़े ही सम्मान की नजर से देखते हैं. लेकिन आज अपने ही घर में उस्ताद बिस्मिल्लाह खां उपेक्षित हैं. लंबे समय से उनकी पुश्तैनी जमीन पर संगीत अकादमी खोलने की मांग प्रशासन एवं जनप्रतिनधियों से की जा रही है. लेकिन अब तक किसी ने ध्यान नहीं दिया. 21 अगस्त 2006 में उनका निधन हो गया. बिस्मिल्लाह खां के सम्मान में उनके इंतकाल के बाद उनके साथ शहनाई भी दफन की गई थी.

रिपोर्ट- विपिन सिंह, वाराणसी

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