Utpanna Ekadashi 2022: उत्पन्ना एकादशी पर बन रहें 5 शुभ योग, जानें पारण का शुभ समय
Utpanna Ekadashi: 2022मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस साल उत्पन्ना एकादशी 20 नवंबर 2022, रविवार को है. मान्यताओं के अनुसार उत्पन्ना एकादशी व्रत के कुछ खास नियम बताए गए हैं जिसका पालन करना जरूरी होता है.
मुख्य बातें
Utpanna Ekadashi: 2022मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस साल उत्पन्ना एकादशी 20 नवंबर 2022, रविवार को है. मान्यताओं के अनुसार उत्पन्ना एकादशी व्रत के कुछ खास नियम बताए गए हैं जिसका पालन करना जरूरी होता है.
लाइव अपडेट
उत्पन्ना एकादशी पारण का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि समाप्त - 20 नवंबर 2022 को 10 बजकर 41 मिनट पर रात
उत्पन्ना एकादशी व्रत- रविवार, 20, नवंबर 2022 को
21 नवंबर को पारण का समय - 06:48 सुबह से 08:56 सुबह तक
पारण के दिन द्वादशी समाप्ति मुहूर्त - 10:07 सुबह
कौन है उत्पन्ना माता, जानें उत्पन्ना एकादशी की कथा
सतयुग की कथा के अनुसार एक मुर नाम के राक्षस ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था. इंद्र का मदद के लिए विष्णुजी ने मुर दैत्य से युद्ध किया. युद्ध की वजह से विष्णुजी थक गए. इस कारण वे बद्रिकाश्रम की एक गुफा में विश्राम करने चले गए. भगवान के पीछे मुर दैत्य भी पहुंच गया. विष्णुजी सो रहे थे, तब मुर ने उन पर प्रहार किया, लेकिन वहां एक देवी प्रकट हुईं और उसने मुर दैत्य का वध कर दिया. जब विष्णुजी की नींद पूरी हुई तो देवी ने पूरी घटना की जानकारी दी. तब विष्णुजी ने वर मांगने के लिए कहा. देवी ने मांगा कि इस तिथि पर जो लोग व्रत-उपवास करेंगे, उनके पाप नष्ट हो जाए, सभी का कल्याण हो. तब भगवान ने उस देवी को एकादशी नाम दिया. इसी तिथि से एकादशी उत्पन्न हुई थीं, इसीलिए इस तिथि को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है.
उत्पन्ना एकादशी पर करें ये उपाय
अगर आपके घर से रोग खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है, तो आपको तुलसी के जड़ से थोड़ा सा मिट्टी लेकर उसे शरीर में लगाएं और फिर स्नान कर लें. उसके बाद पीले वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु की अराधना करें.
अगर आपके घर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, तो आपको भगवान विष्णु का पूजा करते समय दस मुखी रुद्राक्ष की भी पूजा करें, इससे घर में चारों तरफ सकारात्मकता बनीं रहेगी.
यदि धन की कमी से जूझ रहे हैं तो एकादशी के दिन भगवान लक्ष्मीनारायण का केसर मिश्रित दूध से अभिषेक करना चाहिए. इससे गरीबी दूर होती है और आय के नए स्रोत खुलते हैं.
घर से नेगेटिव एनर्जी दूर करने के लिए एकादशी के दिन यह उपाय करें. रात को सोते समय घर के सभी कमरों में अलग-अलग लगभग 100 ग्राम सेंधा नमक एक अखबार पर रख दें. सुबह उस अखबार सहित नमक को उठा कर घर से दूर किसी गंदे नाले में फेंक दें और बिना पीछे देखे घर लौट आएं. इससे घर में मौजूद सभी तरह की नेगेटिव एनर्जी हमेशा के लिए घर से दूर हो जाती है.
उत्पन्ना एकादशी व्रत का महत्व
शास्त्रों के अनुसार उत्पन्ना एकादशी के दिन जो व्यक्ति व्रत रखकर पूरी श्रद्धा और निष्ठा से पूजा-पाठ करता है, उसके सभी पाप मिट जाते हैं और कष्टों से मुक्ति मिलती है. इतना ही नहीं इस व्रत के पुण्य प्रभाव से व्यक्ति को विष्णु लोक में स्थान प्राप्त होता है.
उत्पन्ना एकादशी की कथा
सतयुग की कथा के अनुसार एक मुर नाम के राक्षस ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था. इंद्र का मदद के लिए विष्णुजी ने मुर दैत्य से युद्ध किया. युद्ध की वजह से विष्णुजी थक गए. इस कारण वे बद्रिकाश्रम की एक गुफा में विश्राम करने चले गए. भगवान के पीछे मुर दैत्य भी पहुंच गया. विष्णुजी सो रहे थे, तब मुर ने उन पर प्रहार किया, लेकिन वहां एक देवी प्रकट हुईं और उसने मुर दैत्य का वध कर दिया. जब विष्णुजी की नींद पूरी हुई तो देवी ने पूरी घटना की जानकारी दी. तब विष्णुजी ने वर मांगने के लिए कहा. देवी ने मांगा कि इस तिथि पर जो लोग व्रत-उपवास करेंगे, उनके पाप नष्ट हो जाए, सभी का कल्याण हो. तब भगवान ने उस देवी को एकादशी नाम दिया. इसी तिथि से एकादशी उत्पन्न हुई थीं, इसीलिए इस तिथि को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है.
उत्पन्ना एकादशी के दिन से सालाना व्रत प्रारंभ
मान्यता के अनुसार उत्पन्ना एकादशी के दिन ही एकादशी माता का जन्म हुआ था या प्रकट हुई थीं. इसलिए इस दिन से ही एकादशी व्रत रखा जाने लगा. उत्पन्ना एकादशी व्रत को सबसे श्रेष्ठ व्रतों में से एक माना जाता है, क्योंकि भगवान विष्णु से उनको वरदान प्राप्त है. ऐसे में जो साधक पूरे साल भर एकादशी व्रत रखना चाहते हैं, उनको उत्पन्ना एकादशी व्रत से प्रारंभ करना चाहिए. वैसे वर्ष के बीच में शुक्ल पक्ष की एकादशी से व्रत प्रारंभ करने के लिए शुभ माना जाता है, लेकिन उत्पन्ना एकादशी व्रत सालाना व्रत प्रारंभ के लिए उत्तम दिन है.
उत्पन्ना एकादशी के क्या है पूजा नियम
उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत रखा जाता है. उनकी पूजा की जाती है.
यह व्रत दो प्रकार से रखा जाता है. एक निर्जला और दूसरा फलाहरी या जलीय व्रत.
सामान्यत: निर्जला व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति को ही रखनी चाहिए.
अन्य सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय व्रत रखना चाहिए.
उत्पन्ना एकादशी का शुभ मुहूर्त
मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी
एकादशी तिथि प्रारंभ - नवंबर 19, 2022 को 10:29 शाम
एकादशी तिथि समाप्त - 20 नवंबर 2022 को 10 बजकर 41 मिनट पर रात
उत्पन्ना एकादशी व्रत- रविवार, 20, नवंबर 2022 को
21 नवंबर को पारण का समय - 06:48 सुबह से 08:56 सुबह तक
पारण के दिन द्वादशी समाप्ति मुहूर्त - 10:07 सुबह
उत्पन्ना एकादशी पर पांच शुभ योग कौन से हैं
उत्पन्ना एकादशी का व्रत इस बार 20 नवंबर को पड़ रहा है, इस दिन पांच शुभ योग बन रहे हैं, जिसमें प्रीति योग, आयुष्मान योग, द्विपुष्कर योग, अमृत सिद्धि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बनते जा रहे हैं.
प्रीति योग का शुभ मुहूर्त: 20 नवंबर को प्रात:काल से रात 11 बजकर 04 मिनट तक
आयुष्मान योग: 20 नवंबर से रात 11 बजकर 04 मिनट से 21 नवंबर, रात 09 बजकर 07 मिनट तक
सर्वार्थ सिद्धि योग: 20 नंवबर को सुबह 06 बजकर 47 मिनट से देर रात 12 बजकर 36 मिनट तक
अमृत सिद्धि योग: 20 नंवबर से सुबह 06 बजकर 47 मिनट से देर रात 12 बजकर 36 मिनट तक
द्विपुष्कर योग: 20 नवंबर को देर रात 12 बजकर 36 मिनट से 21 नवंबर, सुबह 06 बजकर 48 मिनट तक है
उत्पन्ना एकादशी से शुरू करें साल का व्रत
मान्यता के अनुसार उत्पन्ना एकादशी के दिन ही एकादशी माता का जन्म हुआ था या प्रकट हुई थीं. इसलिए इस दिन से ही एकादशी व्रत रखा जाने लगा. उत्पन्ना एकादशी व्रत को सबसे श्रेष्ठ व्रतों में से एक माना जाता है, क्योंकि भगवान विष्णु से उनको वरदान प्राप्त है. ऐसे में जो साधक पूरे साल भर एकादशी व्रत रखना चाहते हैं, उनको उत्पन्ना एकादशी व्रत से प्रारंभ करना चाहिए. वैसे वर्ष के बीच में शुक्ल पक्ष की एकादशी से व्रत प्रारंभ करने के लिए शुभ माना जाता है, लेकिन उत्पन्ना एकादशी व्रत सालाना व्रत प्रारंभ के लिए उत्तम दिन है.
उत्पन्ना एकादशी
एकादशी के दिन भगवान विष्णु की सच्चे मन से अराधना करने से साधक की सारी मनोकामना पूरी होती है. इस साल उत्पन्ना एकादशी 20 नवंबर 2022 पड़ रहा है. उत्पन्ना एकादशी 19 नवंबर 2022 यानी शनिवार की सुबह 10 बजकर 29 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 20 नवंबर को सुबह 10 बजकर 41 मिनट पर खत्म होगी.
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
सतयुग की कथा के अनुसार एक मुर नाम के राक्षस ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था. इंद्र का मदद के लिए विष्णुजी ने मुर दैत्य से युद्ध किया. युद्ध की वजह से विष्णुजी थक गए. इस कारण वे बद्रिकाश्रम की एक गुफा में विश्राम करने चले गए. भगवान के पीछे मुर दैत्य भी पहुंच गया. विष्णुजी सो रहे थे, तब मुर ने उन पर प्रहार किया, लेकिन वहां एक देवी प्रकट हुईं और उसने मुर दैत्य का वध कर दिया. जब विष्णुजी की नींद पूरी हुई तो देवी ने पूरी घटना की जानकारी दी. तब विष्णुजी ने वर मांगने के लिए कहा. देवी ने मांगा कि इस तिथि पर जो लोग व्रत-उपवास करेंगे, उनके पाप नष्ट हो जाए, सभी का कल्याण हो. तब भगवान ने उस देवी को एकादशी नाम दिया. इसी तिथि से एकादशी उत्पन्न हुई थीं, इसीलिए इस तिथि को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है.
उत्पन्ना एकादशी का महत्व (Utpanna Ekadashi Importance)
एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. पुराणों के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने उत्पन्न होकर राक्षस मुर का वध किया था. इसलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने से मनुष्यों के पिछले जन्म के पाप भी नष्ट हो जाते हैं. साथ ही उत्पन्ना एकादशी आरोग्य, संतान प्राप्ति और मोक्ष प्राप्ति के लिए किया जाने वाला व्रत है.
भगवान विष्णु को हल्दी मिले हुए जल से ही दें अर्घ्य
उत्पन्ना एकादशी के दिन की शुरूआत भगवान विष्णु को अर्घ्य देकर करते हैं. अर्घ्य केवल हल्दी मिले हुए जल से ही दे चाहिए. रोली या दूध का प्रयोग नहीं करना चाहिए. इस व्रत में दशमी को रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए. एकादशी को प्रात: काल श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है. इस व्रत में केवल फलों का ही भोग लगाने की परंपरा है.
उत्पन्ना एकादशी व्रत नियम (Utpanna Ekadashi Vart Niyam)
उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत रखा जाता है. उनकी पूजा की जाती है.
यह व्रत दो प्रकार से रखा जाता है. एक निर्जला और दूसरा फलाहरी या जलीय व्रत.
सामान्यत: निर्जला व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति को ही रखनी चाहिए.
अन्य सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय व्रत रखना चाहिए.
उत्पन्ना एकादशी पूजा विधि (Utpanna Ekadashi Puja Vidhi)
उत्पन्ना एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें, स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
धूप, दीपक, फूल, चंदन, फल, तुलसी से भगवान विष्णु की पूजा करें.
इस दिन भक्त भगवान विष्णु को खुश करने के लिए एक विशेष भोग भी तैयार करते हैं.
हर दूसरी पूजा की तरह इस दिन अनुष्ठान किए जाते हैं और व्रत कथा पढ़ी जाती है.
अगले दिन पारण के समय उपवास खोला जाता है.
इस दिन पवित्र जल में डुबकी लगाना शुभ माना जाता है. ऐसा करने से सभी दोष नष्ट हो जाते हैं और मनचाहा वरदान मिलता है.
उत्पन्ना एकादशी व्रत मुहूर्त (Utpanna Ekadashi 2022 Shubh Muhurat)
मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी
एकादशी तिथि प्रारंभ - नवंबर 19, 2022 को 10:29 शाम
एकादशी तिथि समाप्त - 20 नवंबर 2022 को 10 बजकर 41 मिनट पर रात
उत्पन्ना एकादशी व्रत- रविवार, 20, नवंबर 2022 को
21 नवंबर को पारण का समय - 06:48 सुबह से 08:56 सुबह तक
पारण के दिन द्वादशी समाप्ति मुहूर्त - 10:07 सुबह
Utpanna Ekadashi: उत्पन्ना एकादशी कल
प्रत्येक महीने की एकादशी तिथि को अलग-अलग नामों से जाना जाता है. मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहते हैं. इस साल उत्पन्ना एकादशी 20 नवंबर 2022, दिन रविवार को है. धार्मिक मान्यताओं की बात करें तो इसी दिन माता एकादशी ने राक्षस मुर का संहार किया था. अन्य एकादशी व्रत की भांति ही उत्पन्ना एकादशी व्रत करने वालों के लिए कुछ नियम हैं जिसका पालन करना आवश्यक बताया गया है. आगे जानें उत्पन्ना एकादशी व्रत के नियम, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि.