Utpanna Ekadashi 2023: हिंदू धर्म में उत्पन्ना एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है. माताएं पुत्र रत्न और मोक्ष प्राप्ति के लिए उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखती हैं. वैसे तो एकादशी का नियमित व्रत रखने से मन कि चंचलता समाप्त होती है, इसके साथ ही धन और आरोग्य की भी प्राप्ति होती है, लेकिन हम यहां जानेंगे कि उत्पन्ना एकादशी व्रत कब है, कैसे करें और इसके नियम.
उत्पन्ना एकादशी व्रत 8 दिसंबर को रखा जाएगा. यह व्रत मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है. उत्पन्ना एकादशी का व्रत आरोग्य, पुत्र रत्न प्राप्ति और मोक्ष के लिए किया जाता है. यह व्रत दो तरह से रखा जाता है- निर्जला और फलाहारी या जलीय व्रत.
Also Read: Yearly Aries Horoscope 2024: मेष राशि वालों के लिए कैसा रहेगा यह साल, यहां पढ़ें वार्षिक राशिफलस्वस्थ्य व्यक्ति को ही निर्जल व्रत रखना चाहिए. अन्य लोगों को फलाहारी या जलीय व्रत रखना चाहिए. इस व्रत में दशमी को रात में भोजन नहीं करना चाहिए. एकादशी को सुबह श्री कृष्ण की पूजा की जाती है. इस व्रत में सिर्फ फलों का ही भोग लगाया जाता है. इस दिन केवल जल और फल का ही सेवन किया जाता है.
व्रती तड़के सुबह पति-पत्नी संयुक्त रूप से श्री कृष्ण की उपासना करें. उन्हें पीले फल, पीले फूल, तुलसी दल और पंचामृत चढ़ावें. इसके बाद संतान गोपाल मन्त्र का जाप करें. मंत्र होगा – “ॐ क्लीं देवकी सुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते, देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणम गता”. पति पत्नी एक साथ फल और पंचामृत ग्रहण करें.
Also Read: PHOTOS: 2024 में कब है मकर संक्रांति, 14 या 15 जनवरी, यहां दूर होगा तारीख का कंफ्यूजन, जानें शुभ मुहूर्तउत्पन्ना एकादशी के दिन तामसिक आहार पूरे दिन न करें. साथ ही किसी के साथ बुरा व्यवहार न करें. इसके अलावा प्रभु विष्णु को अर्घ्य दिए बिना दिन की शुरुआत न करें. ध्यान दें केवल हल्दी मिले हुए जल से ही अर्घ्य दें. अर्घ्य के लिए रोली या दूध का इस्तेमाल न करें. सेहत ठीक न हो तो उपवास न रखें केवल बाकी नियमों का पालन करें.
उत्पन्ना एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प लें. दैनिक नित्य क्रियाओं से निपटने के बाद भगवान की पूजा करें और कथा सुनें. पूरे दिन व्रती को बुरे कर्म करने वाले, पापी, दुष्ट व्यक्तियों की संगत से बचें. जाने-अनजाने हुई गलतियों के लिए श्रीहरि से क्षमा मांगें. द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं. साथ ही भरपूर दान-दक्षिणा देकर अपने व्रत का समापन और पारण करें.
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